रेजी अथवा खादी के कपडे़ पर लोक देवता के जीवन को चित्रों के माध्यम से प्रस्तुत करना फड़ चित्रांकन कहलाता है।
फड़ चित्रांकन में मुख्य पात्र को लाल रंग में तथा खलनायक को हरे रंग में दर्शाया जाता है।
फड का वाचन करने वाले भोपा तथा भोपी कहलाते है।
राज्य में निम्न प्रकार की फड प्रचलित है।
किसी व्यक्ति विशेष के पात्र को लकड़ी के ढांचे के रूप में प्रस्तुत करना ।
कठपुतली का निर्माण उदयपुर चित्तौडगढ़, कठपुतली नगर (जयपुर) में किया जाता है।
कठपुतली नाटक का मंचन नट अथवा भाट जाति द्वारा किया जाता है।
कठपुतली कला के विकास के लिए कार्यरत संस्था भारतीय लोक कला मण्डल - उदयपुर है।
इस संस्था की स्थापना सन् 1952 में देवीलाल सांभर ने की।
लकड़ी से निर्मित सिंहासन जिस पर ठाकुर जी की मूर्ति को श्रंृगारित करके बैठाया जाता है तथा देव झुलनी एकादशी (भाद्र शुक्ल एकादशी) के दिन किसी तालाब के किनारे ले जाकर नहलाया जाता है।
बेवाण का निर्माण बस्सी (चित्तौड़गढ) में होता है।
लकड़ी से निर्मित चार अथवा छः खाने युक्त मसाले रखने का पात्र है, जिसे पश्चिमी राजस्थान में हटड़ी कहते है।
कपाटों युक्त लकड़ी से निर्मित मंदिरनुमा आकृति जिसे चलता फिरता देवधर भी कहा जाता है।
इसके विभिन्न कपाटों पर पौराणिक कथाओं का चित्रण किया जाता है।
कावडिये भाट इन कपाटों को खोलते हुए पौराणिक कथाओं कावाचन करते है।
कावड़ का निर्माण बस्सी (चित्तौडगढ़) में होता है।
कावड़ का निर्माण खैराद जाति के लोगों द्वारा किया जाता है।
मांगीलाल मिस्श्री - प्रसिद्ध कावड़ निर्माता है।
विवाह के अवसर पर वर द्वारा वधु के घर के मुख्य प्रवेश द्वार पर जो लकड़ी की कलात्मक आकृति लटकाई जाती है, उसे तौरण कहते है।
तौरण पर सामान्यतः मयूर की आकृति अंकित होती है।
तौरण को वर द्वारा तलवार अथवा हरी टहनी से स्पर्श करवाया जाता है।
मारना शौर्य अथवा विजय का प्रतीक माना जाता है।
लकड़ी की चैकी अथवा शाट जिसे भोजन के समय अथवा पूजा के समय प्रयुक्त किया जाता है।
विवाह के समय वर व वधू को बाजौट पर बैठाने की परम्परा है।
लकड़ी से निर्मित तलवारनुमा आकृति जिसका उपयोग रामलीला नाटक में तलवार के स्थान पर किया जाता है।
राजस्थान में होली के अवसर पर कारीगर द्वारा गांव में खाण्डे बांटने की परम्परा है।
गुलाबी रंग से रंगा खाण्डा शौर्य का प्रतीक माना जाता है।
पूर्वी राजस्थान में दुल्हन द्वारा दुल्हे के घर खाण्डे भेजने की परम्परा है।
काष्ठ कला का प्रधान केन्द्र बस्सी (चित्तौड़गढ) है।
यहां की खैराद जाति द्वारा कला में संलग्न है।
मांगलिक अवसरों पर विभिन्न रंगो के माध्यम से उकेरी गई कलात्मक आकृतियां माण्डणे कहलाती है।
दीपावली के समय लक्ष्मी पूजन से पूर्व देवी के घर में आगमन के रूप में पगल्ये बनाए जाते है।
विवाह के समय लगन मंडप में तैयार किया गया मांडणा ताम कहलाता है।
यह दाम्पत्य जीवन में खुशहाली का प्रतीक माना जाता है।
होली के अवसर पर बनाए गए मांडणे जिसमे चार कोण होते है जो चारों दिशाओं में खुशहाली का प्रतीक माने जाते है।
मांगलिक अवसरों पर महिलाओं द्वारा घर की चैखट पर कुमकुम तथा हल्दी से बनाए गये हाथों के निशान थापे कहलाते है।
दक्षिणी तथा पूर्वी राजस्थान में मीणा जनजाति की महिलाओं द्वारा घरों में बनाई गई मोर की आकृति मोरड़ी माण्डणा कहलाती है।
मोर को सुन्दरता, खुशहाली तथा समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
उत्तरी व पश्चिमी राजस्थान में सांखिया, तथा पूर्वी राजस्थान में सातिया कहते है।
मांगलिक अवसरों पर ब्राहाणों के द्वारा मन्त्रोचार से पूर्व पूजा के स्थान पर स्वास्तिक का अंकन किया जाता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में लोकदेवताओं के चबुतरेनुमा थान "देवरा" कहलाते है।
ग्रामीण क्षेत्रों में गांव के बाहर रास्ते में मिट्टी से बनाया गया स्थान जिसे तीर्थ यात्रा पर जाने से पूर्व पूजा जाता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में कुवांरी कन्याओं द्वारा अच्छे वर की कामना हेतू दीवार पर उकेरे गए रंगीन भित्ति चित्र सांझी कहलाते है।
सांझाी पर्व श्राद्ध पक्ष से दशहरे तक मनाया जाता है।
केले की सांझाी के लिए श्री नाथ मंदिर (नाथ द्वारा) प्रसिद्ध है।
उदयपुर का मछन्द्र नाथ मंदिर सांझी का मंदिर कहलाता है।
नाथद्वारा का श्रीनाथ मंदिर पिछवाई कला के लिए प्रसिद्ध है।
कागज पर लोक देवता अथवा देवी का चित्रण पावे कहलाते है।
भीलों में प्रचलित वैवाहिक भित्ति चित्रण की लोक देवी है।
पूर्वी क्षेत्र में दीपावली के अवसर पर बच्चे मिट्टी से निर्मित एक पात्र जिसमें बिनोले जलते रहते है, को लेकर घर-घर धुमते है। इसे खुशहाली का प्रतीक माना जाता है।
राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में छोटी वस्तुओं को संग्रहित करके रखने के लिए मिट्टी की बनाई गई महलनुमा आकृति वील कहलाती है।
मांगलिक अवसरों पर महिलाओं तथा युवतियों द्वारा हाथों तथा पैरों पर मेहन्दी लगाने की परम्परा है।
मेहन्दी को सुहाग का प्रतीक माना जाता है।
राजस्थान में सोजतनगर की मेहन्दी प्रसिद्ध है।
बूढ़ी महिलाऐं तथा बच्चियां कलात्मक मेहन्दी उकेरने की बजाय हथेली पर पंच बडे़ आकार की बिन्दियां बनाती है जिसे "पांचोटा" कहा जाता है।
गोबर से निर्मित सुखे उपलों को सुरक्षित रखने के लिए बनाई गई आकृति बटेवडे़ कहलाती है।
पश्चिमी राजस्थान में मिट्टी से बनाऐ गए पात्र जिसमें मांगलिक अवसरों पर बच्चों द्वारा तेल इकठा किया जाता है।
पश्चिमी राजस्थान में मिट्टी से निर्मित मटके जिनका मुंह छोटा/संकरा होता है, का उपयोग पानी के लिए किया जाता है मोण कहलाते है।
गरासिया जनजाति की मुख्य प्रथा है जिसमें सुई अथवा बबूल के कांटे से मानव शरीर पर विभिन्न आकृत्तियां उकेरी जाती है।
इसमें घाव को कोयले के चूर्ण अथवा खेजड़ी की पतियों के पाउडर से भरा जाता है। सुखने के बाद आकृति हरे रंग में उभर जाती है।
आदिवासियों में विशेषकर भीलों तथा गरासिया जनजाति में मनौती पूर्ण होने पर मिट्टी से बनी घोडे़ की आकृति को पूजकर लोकदेवता को चढ़ाया जाता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में गोबर से बनाई गई कलाकृति जिसको चेचक के समय पूजा जाता है।
जीआई टैग अथवा भौगोलिक चिन्ह किसी भी उत्पाद के लिए एक चिन्ह होता है जो कुछ विशिष्ट उत्पादों (कृषि, प्राक्रतिक, हस्तशिल्प और औधोगिक सामान) को दिया जाता है। जोकि एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में 10 वर्ष या उससे अधिक समय से उत्पन्न या निर्मित हो रहा है और यह सिर्फ उसकी उत्पत्ति के आधार पर होता है। राजस्थान में भौगोलिक संकेत -
S.No. | GI | Famous Places in Rajasthan |
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1 | Phulkari | Punjab, Haryana & Rajasthan |
2 | Pokaran Pottery | Pokaran(Jaisalmer) |
3 | Blue Pottery of Jaipur | Jaipur |
4 | Molela Clay Work | Molela, Nathdwara (Rajsamand) |
5 | Kathputlis of Rajasthan | Rajasthan |
6 | Sanganeri Hand Block Printing | Jaipur |
7 | Bikaneri Bhujia | Bikaner |
8 | Kota Doria | Kota |
9 | Bagru Hand Block Print | Jaipur |
10 | Thewa Art Work | Pratapgarh |
11 | Makrana marble | Makrana, Nagaur |
12 | Sojat Mehndi | Sojat, Pali |
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर सरहदी रेगिस्तानी जिले बाड़मेर की ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान की अध्यक्ष रुमा देवी को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा राष्ट्रपति भवन में भारत में महिलाओं के सर्वोच्च नागरिक सम्मान “नारी शक्ति पुरस्कार” प्रदान कर सम्मानित किया गया। पुरस्कार में उन्हें प्रशस्ति पत्र के साथ एक लाख रुपये की राशि प्रदान की गई । रुमा देवी ने ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान के माध्यम से बाड़मेर जिले में हस्तशिल्प का कार्य करने वाली हजारों महिला दस्तकारों को सशक्त करने का कार्य किया है
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