होली के अवसर पर खेली जाती है।
- ढोल व नगाडे।
प्रसंग- चैमासा, लावणी, गणपति वंदना
मूलस्थान- बीकानेर व जैसलमेर
बीकानेर के पुष्करणा ब्राहा्रण तथा जैसलमेर की रावल जाति रम्मत में दक्ष मानी जाति है।
प्रमुख रम्मते व उनके रचनाकार
स्वतंत्र बावनी, मूमल व छेले तम्बोलन - तेज कवि (जैसलमेर) द्वारा लिखित है।
अमरसिंह राठौड़ री रम्मत - बीकानेर के आचार्य चैक में खोली जाती है।
हिड़ाऊ मेरी री रम्मत - जवाहरलाल पुरोहित द्वारा रचित है।
प्रसंग - आदर्श पति-पत्नी के जीवन पर आधारित है।
फक्कड़ दाता री रम्मत- बीकानेर के मुस्लिम सम्प्रदाय की है।
रम्मत में पाटा संस्कृति बीकानेर की देन है।
श्शाब्दिक अर्थ- खेल तमाशा है।
नागौर क्षेत्र की लोकप्रिय ख्याल है।
इस ख्याल का जनक लच्छी राम है।
इस ख्याल का अन्तर्राष्ट्रीय कलाकार उगमराज है।
यह हास्य प्रधान ख्याल है।
इस ख्याल का जनक नानू राम है।
इस ख्याल का जनक नानूराम का शिष्य दुलिया राणा है।
इस ख्याल का मूल स्थान लालसोट (दौसा) है।
इस ख्याल सवाई माधोपुर में लोकप्रिय है।
इस ख्याल का जनक शायर हेला है।
यह ख्याल घोसुण्डी (निम्बाहेडा- चित्तौडगढ) की प्रसिद्ध है।
यह ख्याल हिन्दू-मुस्लिम एकता की परिचायक है।
तुर्रा (शिव का पात्र) की भूमिका हिन्दू कलाकार द्वारा अदा की जाती है।
कलगी (पार्वती का पात्र) की भूमिका मुस्लिम कलाकार द्वारा अदा की जाती है।
तुर्रा-भगवे रंग के तथा कलंगी- हरे रंग के वस्त्र धारण करते है।
इस ख्याल में तुर्रा का जनक - तुकनगीर व कलंगी का जनक शाहअली है।
इस ख्याल का मूल क्षेत्र अलवर का क्षेत्र है।
ख्याल के जनक अली बक्ष है।
अली बक्ष को "अलवर का रसखान" कहते है।
अलवर क्षेत्र में लोकप्रिय है।
अजमेर व जयपुर के आस-पास का क्षेत्र इस ख्याल के लिए प्रसिद्ध है।
इस ख्याल का जनक बंशीधर शर्मा है।
ख्याल का जनक मोती लाल है।
भगवान श्री कृष्ण से संबंधित है।
पूर्वी क्षेत्र में लोकप्रिय है।
रासलीला का अन्तर्राष्ट्रीयय कलाकार शिवलाल कुमावत (भरतपुर) है।
रासलीला का प्रधान केन्द्र फुलेरा (जयपुर) है।
रामलीला के लिए पूर्वी क्षेत्र प्रसिद्ध है।
भगवान श्रीराम से संबंधित है।
प्रसिद्ध कलाकार हरगोविन्द स्वामी व रामसुख दास स्वामी।
मूकाभिनय पर आधारित रामलीला का केन्द्र बिसाऊ (झुनझुनु) है।
कार्तिक मास में इस लीला का आयोजन बस्सी (चित्तौड़गढ) में है।
आश्विन मास में इस लीला का आयोजन घोसुण्डी (चित्तौड़गढ) में है।
गौर लीला गणगौर पर्व (चैत्र शुक्ल तृतीया) पर की जाती है।
गौर लीला का मंचन गरासिया जाति द्वारा किया जाता है।
इस नाट्य को नाट्यों का नाट्य अथवा मेरूनाट्स भी कहते है।
भील जनजाति इस लोकनाट्य से जुडी हुई है।
यह धार्मिक लोकनाट्य है। इसका मंचन केवल दिन के समय होता है।
इस लोकनाट्य का मंचन 40 दिन तक (भाद्र माह व आश्विन कृष्ण नवमी) तक होता है।
यह पुरूष प्रधान लोक नाट्य है।
यह लोक नाट्य भगवान शिव तथा भस्मासुर की कथा पर आधारित है।
गवरी लोक नाट्य में विभिन्न प्रसंगों को जोडने के लिए जो नृत्य किया जाता है, उसे गवरी की घाई कहते है।
लोकनाट्य का जनक कुटकुडि़या भील है।
मुख्य पात्र- झाामट्या व खटकड़या।
अन्य पात्र - कान गुजरी, मोयाबड खेड़लिया भूत ।
भीलों में जो सबसे वृद्ध व्यक्त् िहोता है, उसे शिव का अवतार माना जाता है और बुडिया देवता के रूप में पूजा जाता है।
भील लोग, शिव को पुरिया कहते है।
मूलरूप से उत्तर-प्रदेश की है।
राजस्थान में भरतपुर की नौटंकी प्रसिद्ध है।
इसमें नौ प्रकार के वाद्य यंत्र उपयोग में लिए जाते है।
नौटंकी का जनक भरतपुर का भूरेलाल है।
अन्य प्रमुख कलाकार- कामा (भरतपुर) का मास्टर गिरीराज प्रसाद है।
नौटंकी की हाथरस शैली राजस्थान में लोकप्रिय है।
मूलरूप से महाराष्ट्र का का लोक नाट्य है।
जयपुर के भूतपूर्व शासक सवाई प्रताप सिंह के शासक यह लोकनाट्य आरम्भ हुआ।
तमाशा लोकनाट्य का जनक महाराष्ट्र का बंशीधर भट्ट है।
इस लोकनाट्य में गायन, नृत्य तथा संगीत तीनों की प्रधान है।
स्त्री पात्रों की भूमिकाएं महिलाएं ही निभाती है।
मूल रूप से गुजरात का लोकनाट्य है।
राजस्थान में उदयपुर में लोकप्रिय है।
बाधो जी जाट को भवाई लोकनाट्य का जनक माना जाता है।
"जस्मा ओढ़ण" नामक भवाई नाट्य शांता गांधी द्वारा किया गया।
"बीकाजी व बाधोजी" नामक भवाई नाट्य गोपी नाथ द्वारा रचित है।
भवाई लोकनाट्य का प्रसंग सगा-सगी है।
शेखावटी के गीदड़ नृत्य के दौरान स्वांग कला का प्रदर्शन किया जाता हैं
यह हास्य प्रधान नाट्य है।
इसे बहुरूपिया कला भी कहते है।
क्षेत्र - भरतपुर व शेखावटी क्षेत्र।
भीलवाड़ा निवासी जानकी लाल भांड कला के प्रसिद्ध कलाकार है।
राजस्थान में इसका एकमात्र केंद्र टोंक है।
इस नाट्य को नवाबों की विधा कहते हैं
नवाब फैजुल्ला खां के समय यह नाट्य अस्तिव में आया।
भारत में इस कला के कलाकार अब्दुल करीम खां व खलीफा खां थे।
कठपुतली लोकनाट्य के लिए भरतपुर क्षेत्र प्रसिद्ध है।
यह लोकनाट्य नट जाति के लोगों द्वारा किया जाता है।
कठपुतली का निर्माण उदयपुर में होता हैं
कठपुतली नाट्यय का प्रशिक्षण भारतीय लोक कला मण्डल (उदयपुर ) में दिया जाता है।
भारतीय लोक कला मण्डल की स्थापना सन् 1952 में देवीलाल सांभर ने की।
रसिया दंगल , भरतपुर की प्रसिद्ध है।
कन्हैया दंगल, करौली की लोकप्रिय है।
भेंत/भेंट का दंगल, बांडी व बरसेड़ी क्षेत्र (धौलपुर) का प्रसिद्ध है
यह लोकनाट्य मारवाड़ क्षेत्र में लोकप्रिय है।
गन्धर्व लोकनाट्य जैन धर्म से जुडा है।
इस नाट्य से 24 तीर्थकारों की जीवनी का नाटक के माध्यम से मंचन होता है।
यह लोकनाट्य पूर्वी क्षेत्र में प्रसिद्ध है।
इस नाट्य में कव्वाली के समान काव्य में संवाद किए जाता है।
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