देश नोक (बीकानेर) में इनका मंदिर है।
चुहों वाली देवी के नाम से प्रसिद्ध है।
बीकानेर के राठौड़ वंश की कुल देवी मानी जाती है।
करणी माता के मंदिर का निर्माण कर्ण सिंह न करवाया तथा इस मंदिर का पूर्निर्माण महाराजा गंगा सिंह द्वारा करवाया गया।
पुजारी - चारण समाज के लोग होते है।
सफेद चूहे काबा कहलाते है।
चैत्र व आश्विन माह के नवरात्रों के दौरान मेला आयोजित होता है।
रेवासा ग्राम (सीकर) में मंदिर है।
अजमेर के चैहानों की कुलदेवी मानी जाती है।
अढाई प्याले शराब चढ़ाने की रस्म अदा की जाती हैं
मंदिर का निर्माता हटड़ को माना जाता है।
जीण माता का लोकगीत सर्वाधिक लम्बा हैं
जीण माता के मेले में मीणा जनजाति के लोग मुख्य रूप से भाग लेते है।
इनका मंदिर करौली में है।
यादव वंश की कुल देवी मानी जाती है।
लांगूरिया भक्ति गीत मेले का प्रमुख आकर्षण है।
चाकसू (जयपुर) में इनका मंदिर है।
चेचक की देवी, बच्चों की पालनहार व सेढ़ल माता इनके उपनाम है।
यह देवी खण्डित रूप में पूजी जाती है।
मंदिर का निर्माण माधोसिंह द्वितीय द्वारा करवाया गया।
इनका वाहन गधा हैं
पुजारी-कुम्हार समाज के लोग होते है।
बासडिया प्रसाद बनाया जाता हैं
चैत्र कृष्ण अष्टमी (श्ीतल अष्टमी) के दिन मेला भरता है।
इसी दिन मारवाड़ में घुडला पर्व मनाया जाता है।
इनका मुख्य मंदिर उदयपुर वाटी (झुनझुनु) में है।
खण्डेलवाल समाज की कुल देवी मानी जाती हैं।
शाक /सब्जियों की रक्षक देवी इनका उपनाम है।
इन्हें चैहानों की भी कुल देवी माना जाता है।
इनका एक मंदिर सांभर (जयपुर) में है।
आमेर (जयपुर ) में इनका मंदिर हैं
इनका उपनाम अन्नपूर्णा देवी है।
इस माता के मंदिर का निर्माण कच्छवाह शासक मानसिंह प्रथम द्वारा करवाया गया।
इनका प्रमुख मंदिर आमेर के किले में स्थित है।
इनकी मूर्ति केदारनाथ (बंगाल का शासक) से छीन कर लाई गई थी।
प्रसाद - 'शराब' , जल भक्त की इच्छाानुसार दिया जाता हैं।
कुण्डा ग्राम को हाथी गांव के रूप में विकसित किया गया है।
इनका मंदिर झुनझुनू में है।
इन्हें दादी जी के उपनाम से भी जाना जाता है।
इनका वास्तविक नाम नारायणी बाई अग्रवाल है।
इनके पति का नाम तनधनदास है।
इनके परिवार में 13 सतियां हुई।
भाद्रपद अमावस्या को मेला भरता था।
1988 में राज्य सरकार, द्वारा सती प्रथा निवारण अधिनियम -1987 के द्वारा मेंले पर रोक लगा दी गई।
इनका मंदिर बरखा डूंगरी, राजगढ़ तहसील (अलवर) मे है।
नाई समाज की कुल देवी मानी जाती हैं।
मीणा समाज की अराध्य देवी मानी जाती है।
इनका मंदिर बिलाडा (जोधपुर) में है।
सिरवी समाज की कुल देवी है।
इनके मंदिर थान/ दरगाह/बढेर कहलाते है।
इनके दिपक से केसर टपकती है।
इनका मंदिर भू-गांव (जैसलमेर) में है।
इनका उपनाम तेमडे़राय था।
इन्हें हिंगलाज माता का अवतार माना जाता है।
कहा जाता है कि हकरा नदी पर गुस्सा आने पर आवड़ माता नदी का सारा पानी एक घूंट में पी गई थी।
इनके मंदिर नाडौल (पाली), पोकरण (जैसलमेर), मोदरा/महोदरा (जालौर) में स्थित है।
यह माता नाडौल तथा जालौर के सोनगरा चैहानों की कुल देवी मानी जाती है।
मोदरां मंदिर (जालौर) में इनकों महोदरी माता कहा जाता है।
इनका मंदिर औंसिया (जोधपुर) में है। उपलदेव ने इसका निर्माण करवाया।
औसवाल समाज की कुल देवी मानी जाती है।
इस मंदिर का निर्माण प्रतिहार वंश के शासकों द्वारा करवाया गया।
मंदिर सोरसण (बांरा) में स्थित है।
विश्व का एक मात्र मंदिर नही जहां देवी की पीठ की पूजा की जाती है।
महाराजा केहर ने अपने पुत्र तणु के नाम से तन्नौर नगर बसाकर तनोटिया देवी की स्थापना करवाई।
तनोटिया माता का मंदिर तन्नौट (जैसलमेर) में है।
थार की वैष्णों व सेना के जवानों की देवी इनका उपनाम है।
जैसलमेर की है।
भाटी वंश की कुल देवी है।
स्वांग का अर्थ भाला है।
गजरूप सागर के किनारे मंदिर स्थित है।
पोकरण वाली आसपुर माता बिस्सा समाज की कुल देवी है।
त्रिपुरा सुन्दरी पांचाल जाति की कुल देवी है।
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