अनुच्छेद 153: प्रत्येक राज्य का एक राज्यपाल होगा। 7वें संविधान संशोधन(1956) द्वारा यह प्रावधान किया गया कि एक ही व्यक्ति दो या अधिक राज्यों का राज्यपाल हो सकता है।
राज्य की कार्यपालिका के शीर्ष पर राज्यपाल होता है, लेकिन वास्तविक शक्ति राज्य की मंत्रिपरिषद में निहित होती है। समस्त कार्यपालिका शक्तियां राज्यपाल में निहित होती है,जिसका प्रयोग वह संवैधानिक नियमों के अनुसार करता है। (अनुच्छेद 154)
संघीय मंत्रिपरिषद की अनुशंसा पर राष्ट्रपति के द्वारा राज्यपाल की नियुक्ति अनुच्छेद 155 के तहत की जाती है। राज्यपाल की नियुक्ति का प्रावधान भारत में कनाडा से ग्रहण किया।
राज्यपाल की नियुक्ति को लेकर सरकारिया आयोग (1983) ने कुछ सिफारिशें प्रस्तुत की।
सामान्यतया राज्यपाल का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है,परंतु वास्तव में राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत तक अपने पद पर बना रहता है। अनुच्छेद 156 में राज्यपाल के कार्यकाल का वर्णन किया गया है।
राज्यपाल को उसके पद से हटाने को लेकर संविधान में कोई भी सुस्पष्ट उपबंध नहीं किया गया है, फिर भी राज्यपाल का पद एक स्वतंत्र संवैधानिक पद है।
वह भारत का नागरिक होना चाहिए। वह 35 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो।
कोई भी संसद सदस्य या राज्य विधानमंडल सदस्य राज्यपाल नहीं बनेगा। यदि वह बनता है तो पद ग्रहण की तारीख से उसका पुराना पद समाप्त हो जाएगा
राज्यपाल के कार्यकाल के दौरान उसके वेतन-भत्तों में कोई कटौती नहीं की जाएगी
राज्यपाल का वेतन राज्य की संचित निधि पर भारित होता है।
राज्यपाल को पद व गोपनीयता की शपथ संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या उसकी अनुपस्थिति में वरिष्ठतम न्यायाधीश द्वारा अनुच्छेद 159 के प्रावधानों के अनुसार दिलाई जाती है। राज्य के प्रशासन को सुचारु रुप से चलाने के लिए राज्यपाल को कुछ शक्तियां प्रदान की गई है,जो राष्ट्रपति के समान हैं,कुछ शक्तियों को छोड़ कर- राज्यपाल को कोई भी सैन्य आपातकालीन या राजनयिक शक्तियां प्रदान नहीं की गई है।
राज्य की समस्त कार्यपालिका शक्तियां राज्यपाल में निहित होती हैं। (अनुच्छेद 154)
राज्य विधानसभा में बहुमत दल के नेता को मुख्यमंत्री नियुक्त करता है, तथा उसकी सलाह पर मंत्री परिषद के अन्य सदस्यों की नियुक्ति करता है,उन्हे शपथ ग्रहण करवाता है। राजस्थान राज्य लोक सेवा आयोग, राज्य वित्त आयोग, राज्य निर्वाचन आयोग के सदस्यों और राज्य के लोक सेवकों की नियुक्ति करता है।
राज्य के समस्त कार्य राज्यपाल के नाम से संचालित किए जाते है। (अनुच्छेद- 166)
मुख्यमंत्री राज्य की शासन व्यवस्था से समय-समय पर राज्यपाल को अवगत कराता है। (अनुच्छेद 164 के प्रावधानों के अनुरूप)
राज्यपाल राज्य में संवैधानिक संकट उपस्थित होने पर राज्य की स्थिति के संबंध में राष्ट्रपति को अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करता है।
उसके प्रतिवेदन के आधार पर अनुच्छेद 356 के अंतर्गत राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है इस स्थिति में राज्यपाल संघ के अभिकर्ता के रूप में कार्य करता है। इसे राज्यपाल की आपातकालीन शक्तियां भी कहा जा सकता है।
अनुच्छेद 161 के अंतर्गत राज्यपाल राज्य सूची से संबंधित अपराध दंड को कम या दूसरे दंड में परिवर्तित कर सकता है तथा उसे समाधान प्रदान कर सकता है, परंतु फांसी की सजा प्राप्त अपराधी को पूर्ण समाधान देने की शक्ति राज्यपाल में नहीं,अपितु राष्ट्रपति में निहित होती है। राज्यपाल सैनिक न्यायालयों द्वारा दिए गए दंड को परिवर्तित नहीं कर सकता। अनुच्छेद 213 के अंतर्गत राज्यपाल के द्वारा अध्यादेश को राष्ट्रपति के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है।
अनुच्छेद 356 के अंतर्गत राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता का प्रतिवेदन राज्यपाल के द्वारा भेजा जाता है तथा राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्यपाल राज्य की समस्त शक्तियों का प्रयोग करता है।
अनुच्छेद 371 के अंतर्गत महाराष्ट्र, गुजरात और उत्तर पूर्व के राज्यों के विकास के लिए वहां के राज्यपालों को विशेषाधिकार प्रदान किए गए हैं। राष्ट्रपति के द्वारा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति में राज्यपाल से परामर्श लिया जाता है।
अनुच्छेद 168 के अंतर्गत राज्यपाल राज्य विधानमंडल का एक अंग होता है अर्थात् विधान मंडल का गठन राज्यपाल, विधानसभा और विधान परिषद से होता है।
अनुच्छेद 333 के अंतर्गत राज्यपाल के द्वारा विधानसभा में सदस्य (उन राज्यों में जहां पर आंग्ल-भारतीय वर्ग का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं हुआ हो) तथा अनुच्छेद 171 के अंतर्गत विधान परिषद में 1/6 सदस्यों को मनोनीत किया जाता है, जिनका संबंध साहित्य कला विज्ञान समाज सेवा और सहकारिता से हो।
अनुच्छेद 174 के अंतर्गत राज्यपाल के द्वारा विधानमंडल का अधिवेशन बुलाया जाता है। सत्रावसान तथा विधानसभा को भंग करने की शक्ति भी राज्यपाल में ही निहित होती है।
अनुच्छेद 175 के अंतर्गत राज्यपाल को विधानमंडल में संदेश भेजने तथा भाषण देने का अधिकार प्राप्त है। हर वर्ष विधान मंडल के प्रथम सत्र तथा विधानसभा के आम चुनाव के पश्चात विधान सभा की प्रथम बैठक में राज्यपाल द्वारा विशेष अभिभाषण अनुच्छेद 176 के अंतर्गत प्रदान किया जाता है।
अनुच्छेद 180 के अंतर्गत, जब विधानसभा में अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष दोनों पद रिक्त हो तो राज्यपाल के द्वारा विधानसभा के किसी भी सदस्य को उसका कार्यवाहक अध्यक्ष नियुक्त किया जाता है।
अनुच्छेद 184 के अंतर्गत यदि विधान परिषद में सभापति एवं उपसभापति दोनों का पद रिक्त है, तो राज्यपाल के द्वारा विधान परिषद के किसी भी सदस्य को उसका कार्यवाहक अध्यक्ष नियुक्त किया जाता है।
अनुच्छेद 192 के अंतर्गत राज्यपाल के द्वारा केंद्रीय निर्वाचन आयोग के परामर्श पर राज्य विधानमंडल के सदस्यों की निर्योग्यता का निर्धारण किया जाता है। राज्य विधानमंडल द्वारा पारित सभी विधेयक राज्यपाल की सहमति से ही कानून का रूप धारण करते हैं।
अनुच्छेद 200 के अंतर्गत राज्यपाल राज्य विधानमंडल द्वारा पारित किसी भी विधेयक को राष्ट्रपति की सहमति के लिए आरक्षित कर सकता है। जब विधानमंडल सत्र में ना हो तथा किसी भी कानून का निर्माण आवश्यक हो गया हो, तो अनुच्छेद 213 के अंतर्गत राज्यपाल को अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गई है।
यह अध्यादेश राज्य सूची और समवर्ती सूची का होना चाहिए। इसकी अधिकतम अवधि 6 माह तक तथा सत्र आयोजित होने पर 6 सप्ताह तक है। राज्य के समस्त आयोग अपना वार्षिक प्रतिवेदन राज्यपाल को सौंपते हैं,जिसे वह विधानमंडल के समक्ष रखवाता है।
भारतीय संविधान के द्वारा अनुच्छेद 163 के अंतर्गत राज्यपाल को स्वविवेकी शक्तियां प्रदान की गई है,जिसे वह बिना मंत्रिपरिषद की सहायता के करता है तथा इसके लिए वह किसी के प्रति उत्तरदाई नहीं होता है।
राज्यपाल की स्वविवेकी शक्तियों को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।
1. संविधान प्रदत्त
अनुच्छेद 200 के अंतर्गत राज्यों की विधायिका द्वारा पारित विधेयक राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा। वह इस पर अपनी सम्मति दे सकता है या इसे अस्वीकृत कर सकता है। वह इस विधेयक को संदेश के साथ या बिना संदेश के पुनर्विचार हेतु विधायिका को वापस भेज सकता है, पर पुनर्विचार के बाद दोबारा विधेयक आ जाने पर वह इसे अस्वीकृत नहीं कर सकता। इसके अतिरिक्त वह विधेयक को राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भी भेज सकता है।
2. परिस्थिति जन्य
यदि विधानसभा के आम चुनाव के पश्चात किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त न हो
चुनाव के पश्चात कोई भी दल सरकार बनाने की स्थिति में न हो
मंत्री परिषद अल्पमत में हो
मुख्यमंत्री की पद के दौरान मृत्यु हो गई हो तथा उसके किसी भी सुनिश्चित उत्तराधिकारी का चयन नहीं हो पा रहा हो
मुख्यमंत्री के विरुद्ध मुकदमा दायर करने की अनुमति प्रदान करना
केंद्र में राष्ट्रपति के द्वारा भी स्वविवेकी शक्तियों का प्रयोग किया जाता है परंतु वह परिस्थितिजन्य होती है।
संविधान के द्वारा स्वविवेकी शक्तियां राष्ट्रपति को नहीं अपितु राज्यपाल को प्रदान की गई है।
राज्यपाल प्रत्येक 5 वर्ष पर पंचायतों और नगरपालिका की वित्तीय स्थिति की समीक्षा करने हेतु राज्य वित्त आयोग का गठन करता है,जो राज्य के राजस्व में से स्थानीय स्वशासी संस्थाओं का कुछ अंश निर्धारण एवं विशेष अनुदान की सिफारिश करता है।
राज्यपाल प्रत्येक वर्ष राज्य विधानमंडल में वार्षिक वित्तीय विवरण (राज्य का बजट) प्रस्तुत करवाना सुनिश्चित करता है,अनुच्छेद 202 के अंतर्गत
राज्य विधानमंडल में वित्त विधेयक राज्यपाल की पूर्व अनुमति से ही प्रस्तुत किया जाता है। राज्य की आकस्मिक निधि राज्यपाल के अधीन होती हैं।
केंद्र सरकार और राज्य सरकार के मध्य समन्वय और संबंध स्थापित करना।
राष्ट्रीय राजमार्ग और संचार साधनों की रक्षा करना।
राज्य प्रशासन की रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेजना।
राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश करना
राज्य का शासन संचालन करना
विधेयकों को राष्ट्रपति की स्वीकृति हेतु सुरक्षित रखना।
अध्यादेश जारी करना
संघ के हितों की रक्षा करना।
राज्य प्रशासन में राज्यपाल की महत्वपूर्ण भूमिका होती है राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है और राज्य का संपूर्ण प्रशासन उसी के नाम से संचालित किया जाता है राज्यपाल राज्य के मुख्य कार्यपालक की भूमिका का निर्वाह करता है राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्यपाल राज्य का वास्तविक प्रशासक होता है राज्य में सामान्य परिस्थितियों में राज्यपाल एक प्रशासक के रूप में कार्य करता है।
1. संवैधानिक प्रधान के रूप में
राज्य में राज्यपाल केवल एक संवैधानिक प्रधान के रूप में होता है संवैधानिक प्रधान होने के कारण राज्य प्रशासन में राज्यपाल का स्थान सबसे अधिक प्रतिष्ठित और सम्मान का होता है राज्यपाल राज्य का प्रथम नागरिक होता है।
2. राष्ट्रपति शासन में भूमिका
आपातकाल में राज्यपाल राज्य और सरकार दोनों का प्रमुख बन जाता है आपातकाल में राज्यपाल के व्यक्तित्व पर निर्भर करता है, कि वह राज्यपाल पद को किस प्रकार का स्वरूप प्रदान करता है।
3. विवादित परिस्थितियों में भूमिका
राज्य की निर्वाचित सरकार,मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद यदि संवैधानिक संकट में फंस जाते हैं तो उसमें राज्यपाल की भूमिका अति महत्वपूर्ण होती है। विवादस्पद परिस्थितियों में निर्णय लेना राज्यपाल के लिए बहुत मुश्किल एवं महत्वपूर्ण पहलू होता है।
4. वास्तविक कार्यपालक के रूप में
5. केंद्र के प्रतिनिधि के रूप में
केंद्र में जो संबंध केंद्रीय मंत्रिमंडल और राष्ट्रपति के होते हैं वही संबंध राज्य में मंत्रीपरिषद और राज्यपाल के होते हैं। राष्ट्रपति और राज्यपाल की शक्तियों का एक महत्वपूर्ण अंतर-संविधान में राष्ट्रपति को स्वविवेकी शक्तियां प्रदान नहीं की गई है जबकि संविधान ने राज्यपाल को स्वविवेकी शक्तियां प्रदान की है।
अनुच्छेद 163 के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया है कि राज्यपाल को अपने कार्यों को करने में सहायता एवं मंत्रणा देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी जिसका प्रधान मुख्यमंत्री होता है। मंत्री परिषद ने राज्यपाल को क्या सहायता दी इसकी किसी भी मामले में जांच नहीं की जा सकती।
राज्यपाल जहां पर अपने विवेक से कार्य करता है वहां पर राज्यपाल मंत्री परिषद के अनुसार कार्य करने को बाध्य नहीं है। भारत के संविधान में संसदीय शासन पद्धति को अपनाया गया इस प्रणाली में मंत्री परिषद अपने कार्यों के लिए राज्य विधानसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदाई होती हैं राज्यपाल उसके परामर्श के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य होता है।
राज्य की मंत्रीपरिषद की संरचना राज्यपाल के द्वारा की जाती है मंत्रिपरिषद के सदस्यों की नियुक्ति और मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल करता है मुख्यमंत्री राज्य मंत्री परिषद का अध्यक्ष होता है राज्य विधानसभा में बहुमत प्राप्त राजनीतिक दल के नेता को राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त करता है।
1 नवंबर 1956 को राज्य पुनर्गठन के बाद राजप्रमुख का पद समाप्त कर दिया व राज्यपाल का पद सृजित हुआ। सरदार गुरूमुख निहालसिंह राज्य के पहले राज्यपाल(मुख्यमंत्री श्री मोहनलाल सुखाड़िया) बने।
नाम | कब से | कब तक |
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सरदार गुरुमुख निहाल सिंह | 1 नवम्बर 1956 | 16 अप्रैल 1962 |
डॉ॰सम्पूर्णानन्द | 16 अप्रैल 1962 | 16 अप्रैल 1967 |
सरदार हुकम सिंह | 16 अप्रैल 1967 | 1 जुलाई 1972 |
सरदार जोगिन्दर सिंह | 1 जुलाई 1972 | 15 फ़रवरी 1977 |
वेदपाल त्यागी | 15 फ़रवरी 1977 | 11 मई 1977 (कार्यवाहक) |
रघुकुल तिलक | 17 मई 1977 | 8 अगस्त 1981 |
के डी शर्मा | 8 अगस्त 1981 | 6 मार्च 1982 |
ओमप्रकाश मेहरा | 6 मार्च 1982 | 4 जनवरी 1985 |
वसंतराव पाटील | 20 नवम्बर 1985 | 15 अक्टूबर 1987 |
सुखदेव प्रसाद | 20 फ़रवरी 1988 | 3 फ़रवरी 1990 |
मिलाप चंद जैन | 3 फ़रवरी 1990 | 14 फ़रवरी 1990 |
देवीप्रसाद चट्टोपाध्याय | 14 फ़रवरी 1990 | 26 अगस्त 1991 |
स्वरूप सिंह | 26 अगस्त 1991 | 5 फ़रवरी 1992 |
मर्री चेन्ना रेड्डी | 5 फ़रवरी 1992 | 31 मई 1993 |
धनिक लाल मंडल (अतिरिक्त प्रभार) | 31 मई 1993 | 30 जून 1993 |
बलि राम भगत | 30 जून 1993 | 1 मई 1998 |
दरबारा सिंह | 1 मई 1998 | 24 मई 1998 |
नवरंग लाल टिबरेवाल | 25 मई 1998 | 16 जनवरी 1999 (कार्यवाहक) |
अंशुमान सिंह | 16 जनवरी 1999 | 14 मई 2003 |
निर्मल चंद्र जैन | 14 मई 2003 | 22 सितंबर 2003 (कार्यवाहक) |
कैलाशपति मिश्र | 22 सितंबर 2003 | 14 जनवरी 2004 (कार्यवाहक) |
मदन लाल खुराना | 14 जनवरी 2004 | 1 नवम्बर 2004 (कार्यवाहक) |
टी॰वी॰ राजेश्वर | 1 नवम्बर 2004 | 8 नवम्बर 2004 (कार्यवाहक) |
प्रतिभा पाटील | 8 नवम्बर 2004 | 21 जून 2007 |
अख्लाक उर रहमान किदवई | 21 जून 2007 | 6 सितंबर 2007 (कार्यवाहक) |
शैलेन्द्र कुमार(एस॰के॰) सिंह | 6 सितंबर 2007 | 1 दिसम्बर 2009 |
प्रभा राव | 2 दिसम्बर 2009 | 26 अप्रैल 2010 |
शिवराज पाटिल (अतिरिक्त कार्यभार) | 26 अप्रैल 2010 | 28 मार्च 2012 |
मार्गरेट अल्वा | 12 मई 2012 | 5 अगस्त 2014 |
राम नाईक (अतिरिक्त कार्यभार) | 6 अगस्त 2014 | 26 अगस्त 2014 |
कल्याण सिंह | 4 सितम्बर 2014 | 8 सितम्बर 2019 |
कलराज मिश्र | 9 सितम्बर 2019 | वर्तमान |
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