अंजना देवी अग्रवाल का जन्म सीकर जिले के श्रीमाधोपुर में हुआ। राजस्थान सेवा संघ के कार्यकर्ता रामनारायण चौधरी से इनका विवाह हुआ। अंजना देवी ने बिजौलिया तथा बेगूं किसान आन्दोलन में महिलाओं का नेतृत्व किया। 1921-24 में मेवाड़, बूंदी राज्यों की स्त्रियों में राष्ट्रीयता, समाज सुधार की भावना को बढ़ावा दिया। 1924 ई. में बिजौलिया में लगभग 500 स्त्रियों के जत्थे का नेतृत्व करके नाजायज हिरासत से किसानों को छुड़या। ये समस्त रियासती जनता में गिरफ्तार होने वाली पहली महिला थी। इन्हें बूंदी राज्य से निर्वासित भी होना पड़ा। 1934-36 ई. तक अजमेर के नारोली आश्रम में रह कर हरिजन सेवा कार्यो में भाग लिया।
रतन व्यास का जन्म खाचरोद, मध्य प्रदेश में हुआ। इनका विवाह हीरालाल शास्त्री से हुआ। रतन शास्त्री ने सन् 1939 ई. में जयपुर राज्य प्रजामण्डल के सत्याग्रह आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया और सन् 1942 ई. के भारत छोड़ो आन्दोलन में भूमिगत कार्यकत्र्ताओं और उनके परिवारों की सेवा की। सन् 1955 ई. में इन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। 1975 ई. में पद्म विभुषण से सम्मानित राजस्थान की प्रथम महिला बनी।
नगेन्द्रबाला केसरीसिंह बारहठ की पौत्री थी। 1941-1947 ई. तक किसान आंदोलन में सक्रिय रही। स्वतंत्रता के पश्चात् ये कोटा की जिला प्रमुख रहीं। इन्हें राजस्थान की प्रथम महिला जिला प्रमुख होने का गौरव प्राप्त है। ये राजस्थान विधानसभा की सदस्य भी रहीं हैं।
जानकी देवी का जन्म मध्यप्रदेश के जावरा कस्बे में हुआ। इनका विवाह जमनालाल बजाज के साथ हुआ और इन्हें वर्धा में आना पड़ा। बजाज जी के देहान्त के बद इनको गौसेवा संघ की अध्यक्षा बनाया गया। ये जयपुर प्रजामण्डल के 1944 ई. के अधिवेशन की अध्यक्षा चुनी गई। विनोबा भावे के भूदान आन्दोलन के दौरान 108 कुओं का निर्माण करवाया। 1956 ई. में सरकार ने इन्हें ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया।
नारायणी देवी का जन्म सिंगोली मध्य प्रदेश में हुआ। इनका विवाह श्री माणिक्यलाल वर्मा से हुआ। बिजौलिया किसान आन्दोलन के समय इन्हें कुम्भलगढ़ के किले में बन्दी बना लिया गया। नवम्बर 1944 ई. में महिला शिक्षा तथा जागृति के लिए भीलवाड़ा में ‘महिला आश्रम’ नाम की संस्था स्थापित कर महिलाओं के सर्वागीण विकास का कार्य अपने हाथ में लिया। 1970 में राज्यसभा से निर्वाचित किया गया।
शांता देवी जन्म नागपुर महाराष्ट्र में हुआ। इनका विवाह उदयपुर के परसराम त्रिवेदी के साथ हुआ। शांता त्रिवेदी ने 1947 ई. में उदयपुर में ‘राजस्थान महिला परिषद्’ की स्थापना की।
मिस लूटर का पूरा नाम लिलियन गोडाफ्रेडा डामीथ्रोन लूटर था। इनका जन्म क्यामो, बर्मा में हुआ था। द्वितीय विश्व युद्ध के समय ये भारत आ गयी।उन्हीं दिनों जयपुर की महारानी गायत्री देवी ने राजपूत घराने की लड़कियों की शिक्षा के लिए एक स्कूल शुरू किया। मिस लूटर को 1934 ई. में महारानी गायत्री देवी स्कूल में प्राचार्य पद पर नियुक्त किया गया। वे जीवन पर्यनत इस पद पर रही। महिला जगत में शिक्षा के प्रसार के लिए भारत सरकार ने 1970 ई. में इन्हें ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया। 1976 ई. में ब्रिटिश सरकार ने भी महिला शिक्षा के लिए सम्मानित किया।
डूंगरपुर जिले के रास्तापाल गांव की भील कन्या कालीबाई अपने शिक्षक सेंगाभाई को बचाने के प्रयास में पुलिस द्वारा गोलियों से छलनी कर दी गई। इनकी मृत्यु 20 जून, 1947 हुई। रास्तापाल में इनकी स्मृति में एक स्मारक बना हुआ है।
महिलाओं के प्रति अमानवीय व्यवहार करने वालों के विरोध में सीकर जिले के कटराथल नामक स्थान पर किशोरी देवी की अध्यक्षता में एक विशाल महिला सम्मेलन 1934 ई. में आयोजित किया गया। जिसमें क्षेत्र की लगभग 10,000 महिलाओं ने भाग लिया। किशोरी देवी स्वतंत्रता सेनानी सरदार हरलाल सिंह खर्रा की पत्नी थी।
बूंदी के स्वतंत्रता सेनानी नित्यानन्द नागर की पुत्रवधु सत्यभामा ने ब्यावर-अजमेर आन्दोलन(1932 ई.) का नेतृत्व किया। सत्यभामा को गांधी जी की मानस पुत्री के रूप में भी जाना जाता है।
इनको राजस्थान की प्रथम महिला पत्रकार के रूप में जाना जाता है। इन्होंने ने अजमेर से प्रकाशित होने वाले ‘प्रकाश’ पत्र से लेखन कार्य किया।
बीकानेर के स्वतंत्रता सेनानी वैद्य मघाराम की बहन, जिन्होंने दूधवा खारा किसान आन्दोलन में महिलाओं का नेतृत्व किया और आजीवन खादी धारण करने का प्रण लिया।
इनका जन्म जयपुर में वैद्य गंगासहाय के घर में हुआ। ये मात्र 11 वर्ष की आयु में विधवा हो गइ। बाद में गांधी विचारधारा रखने वाले नेता लादूराम जोशी से पुनर्विवाह हुआ। विवाह के बाद इन्होंने खादी पहनना प्रारम्भ किया तथा नौकरी छोड़ पति के साथ राजस्थान सेवा संघ का कार्य किया। 1931 ई. में बिजौलिया किसान आंदोलन में भाग लेने बिजौलिया गई जहां इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
कलकत्ता में स्थापित बीकानेर प्रजामण्डल की संस्थापक सदस्या और अध्यक्ष भी रही। सविनय अवज्ञा आन्दोलन और स्वदेशी आन्दोलन में भाग लिया।
बांसवाड़ा के स्वतंत्रता सेनानी धूलजी भाई भावसार से विधवा विवाह कर आदर्श प्रस्तुत किया। इनके नेतृत्व में प्रजामण्डल की सहयोगी संस्था ‘महिला मण्डल’ का गठन किया गया।
महाबलिदानी पन्नाधाय का जन्म चित्तौड़ के पास ‘माताजी की पांडोली’ नामक गाँव मे वर्ष 1501 ई. में एक गुर्जर परिवार मे हुआ था। महाराणा सांगा के पुत्र और महाराणा प्रताप के पिता उदयसिंह की रक्षा के लिये पन्नाधाय ने अपने पुत्र चंदन का बलिदान देकर संपूर्ण विश्व में अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया। मेवाड़ के सामन्त बनवीर ने महाराणा विक्रमादित्य की हत्या कर युवराज उदयसिंह की हत्या का भी प्रयास किया। पन्नधाय ने अपने पुत्र चंदन का बलिदान कर उदयसिंह को किले से बाहर भेजकर उसकी प्राण रक्षा की। चित्तौड़गढ़ ज़िले में पन्नाधाय के पैतृक स्थल पाण्डोली में 4 करोड़ रुपए की लागत से ‘पन्नाधाय पेनोरमा’बनेगा।
जोधपुर के अजीतसिंह को बचाने के लिए अपने पुत्र का बलिदान देने के कारण ‘मारवाड़ की पन्ना धाय’ भी कहा जाता है।
सलूम्बर(मेवाड़) के जागीरदार रतनसिंह चूंडावत की पत्नी जिसने अपना सिर काटकर निशानी के रूप में युद्ध में जाते हुए पति को दे दिया।
रानी पद्मिनी चित्तौड़ की रानी थी, जिन्हें पद्मावति के नाम से जाना जाता है। जिनके पति रतन सिंह थें। इनकी साहस और बलिदान की गौरवगाथा की मिसाल आज भी राजस्थान में दी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि जब खिलजी वंश का क्रूर शासक अलाउद्दीन खिलज़ी रानी पद्मावति को पाने के लिए चित्तौड़ के किले को घेर लिया था, तब रानी ने आग में कूदकर अपने प्राण की आहुति दे दी। लेकिन अपने सतीत्व पर आंच नहीं आने दिया।
मीरा बाई जन्म 1498 में राजस्थान के पाली स्थित कुड़की गांव में हुआ था। इनका नाम कृष्ण भक्ति शाखा की अहम कवयित्रियों में लिया जाता है। ये सोलहवीं शताब्दी की विश्व चर्चित हिन्दू कवयित्री थीं। तो वहीं इन्हें कृष्ण का परम भक्त के नाम से भी जाना जाता है।
डूंगरपुर के नागर ब्राह्मण परिवार में जन्मी कृष्ण भक्त कवयित्री गवरी बाई को ‘वागड़ की मीरा’ भी कहा जाता है। डूंगरपुर के महारावल शिवसिंह ने गवरीबाई के लिए 1829 ई. में बालमुकुन्द मंदिर का निर्माण करवाया।
‘केसरिया बालम आओ नी पधारो म्हारै देस ...... ’ गीत प्रख्यात मांड गायिका अल्लाह जिलाई बाई द्वारा गाया गया है। इनका जन्म 1 फरवरी 1902 ई. को बीकानेर में हुआ। मांड गायिकी में विशिष्ट योगदान के लिए सन् 1982 में इन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। बाईजी को सन् 1983 में राॅयल अल्बर्ट हाॅल में बी.बी.सी लंदन द्वारा कोर्ट सिंगर अवार्ड दिया गया।
गवरी देवी का जन्म 1920 ई. में जोधपुर में हुआ। मास्को में आयोजित ‘भारत महोत्सव’ में गवरी देवी ने मांड गायकी से श्रौताओं को सम्मोहित कर प्रदेश का नाम रोशन किया।
राजस्थान की आन, बाण, शान कही जाने वाली प्रसिद्ध कालबेलिया नर्तकी गुलाबो ने नृत्यकला के जरिए इन्होंने राजस्थान ही नहीं बल्कि यहां की कला और संस्कृति को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर नया पहचान देने में कामयाब रही। नर्तकी गुलाबो सपेरा को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने पद्मश्री अलंकरण से सम्मानित किया जा चुका है।
रैमन मैग्सेसे पुरस्कार जीतने वाली प्रथम राजस्थानी महिला है। इन्होंने ‘सूचना का अधिकार और रोजगार गारंटी कानून’ पारित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
राजस्थान की प्रथम महिला विधानसभा अध्यक्ष चूनी गई।
2009 ई. राजस्थान की प्रथम महिला मुख्य सचिव बनी थी।
बांसवाड़ा से राज्य विधानसभा की पहली महिला विधायक बनी थी।
राजस्थान की प्रथम महिला सांसद(राज्यसभा) बनी थी।
राजस्थान की प्रथम महिला राज्यपाल और देश की प्रथम महिला राष्ट्रपति बनी।
उदयपुर की भक्ति शर्मा तैरकर इंग्लिश चैनल पार करने वाली पहली राजस्थानी महिला तैराक है।
कृष्णा पूनिया एक भारतीय डिस्कस थ्रोअर है। इन्होंने 11 अक्टूबर 2010 में दिल्ली में आयोजित किये राष्ट्रमंडल खेलों में फाइनल मैच में क्लीन स्वीप कर 61.51 मीटर में स्वर्ण पदक जीता था। इसके बाद 2011 में भारत सरकार ने नागरिक सम्मान में इन्हें पद्मश्री का पुरस्कार से नवाजा था। कृष्णा पूनिया का जन्म 05 मई 1977 को एक जाट परिवार में अग्रोहा, हिसार, हरियाणा में हुआ। पूनिया की शादी 2000 में राजस्थान के चुरू जिले के गागर्वास गांव के रहने वाले वीरेन्द्र सिंह पूनिया से हुई।
साल 2014 के कॉमनवेल्थ गेम्स में देश को स्वर्ण पदक दिलाने वाली अपूर्वी चंदेला आज पूरी दुनिया में अपनी निशानेबाजी के लिए जानी जाती है। उन्हें 2016 में अर्जुन अवार्ड से नवाजा जा चुका है।
राजस्थान के बीकानेर की रहने वाली तनुश्री पारीख ने 2014 में यूपीएससी असिस्टैंट कमांडेंट की परीक्षा पास कर बीएसएफ के 40 साल के इतिहास में पहली महिला असिस्टैंट कमांडेंट बनने का गौरव प्राप्त किया है।
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