भारत ने उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य तक राष्ट्रवाद के स्वाद का अनुभव करना शुरू कर दिया। ब्रिटिश लोग ‘फूट डालो और राज करो’ की क्रूर नीति का आनंद ले रहे थे, जिससे मूल निवासियों का बहुत शोषण हो रहा था। भारतीयों को अपने उत्थान को मजबूत करने के लिए एक एकजुटता की आवश्यकता थी और ब्रिटिश साम्राज्यवादियों की प्रबलता के प्रति घृणा थी। 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गठन के बाद यह भावना पैदा हुई थी। कई अन्य संगठनों का गठन भी स्वतंत्रता के संघर्ष को एक प्रमुख रूप देने के लिए किया गया था। भारतीय स्वतंत्रता के दौरान कुछ संगठन प्रमुख बन गए। इस भाग में हम राजस्थान में विभिन्न संगठनों की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में पढ़ेंगे।
1918 में कांग्रेस के दिल्ली अधिवेशन में राजस्थान एवं मध्य प्रदेश (तत्कालीन राजपूताना एवं मध्य भारत) के कार्यकर्ताओं द्वारा चांदनी चौक में स्थित मारवाड़ी पुस्तकालय में राजपूताना मध्य भारत सभा की स्थापना की गई। यही इसका पहला अधिवेशन कहलाता है। इसे रियासती जनता का प्रथम राजनीतिक संगठन माना जाता है। इसका प्रथम अधिवेशन महामहोपाध्याय पंडित गिरधर शर्मा की अध्यक्षता में आयोजित किया गया था। इस संस्था का मुख्यालय कानपुर रखा गया, जो उत्तरी भारत में मारवाड़ी पूंजीपतियों और मजदूरों का सबसे बड़ा केन्द्र था। देशी राज्यों की प्रजा का यह प्रथम राजनैतिक संगठन था। इसकी स्थापना में प्रमुख योगदान गणेश शंकर विद्यार्थी, विजयसिंह पथिक, जमनालाल बजाज, चांदकरण शारदा, गिरधर शर्मा, स्वामी नरसिंह देव सरस्वती आदि के प्रयत्नों का था। राजपूताना मध्य भारत सभा का अध्यक्ष सेठ जमनालाल बजाज को तथा उपाध्यक्ष गणेश शंकर विद्यार्थी को बनाया गया। इस संस्था के माध्यम से जनता को जागीरदारी शोषण से मुक्ति दिलाने, रियासतों में उत्तरदायी शासन की स्थापना करने तथा जनता में राजनैतिक जागृति लाने का प्रयास किया गया। इस कार्य में संस्था के साप्ताहिक समाचार पत्र 'राजस्थान केसरी' व सक्रिय कार्यकर्ताओं की भूमिका उल्लेखनीय है।
इसका दूसरा अधिवेशन 29 दिसम्बर 1919 में अमृतसर में आयोजित गया, जबकि मार्च 1920 में तीसरा अधिवेशन जमनालाल बजाज की अध्यक्षता में अजमेर में आयोजित किया गया।
दिसंबर 1920 में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन के समय सभा ने देशी राज्यों के 400 प्रतिनिधियों का एक विशाल सम्मेलन (चौथा अधिवेशन) आयोजित किया, जिसकी अध्यक्षता गणेश नारायण सोमानी ने की थी। इस सम्मेलन से प्रभावित होकर गाँधीजी ने रियासती प्रतिनिधियों को कांग्रेस में सम्मिलित कर लिया अर्थात भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में हो रहा राजपूताना मध्य भारत सभा को कांग्रेस की सहयोगी संस्था मान लिया गया। साथ ही यह आश्वासन भी दिया कि राजाओं के अत्याचारों के विरूद्ध कांग्रेस में प्रस्ताव पास हो सकेगें, लेकिन कांग्रेस रियासतों के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगी।
राजस्थान सेवा संघ का गठन 1919 में वर्धा मे श्री अर्जुनलाल सेठी, केसरी सिंह बारहठ और विजय सिंह पथिक के संयुक्त प्रयासों से किया गया था। इस संस्था ने राजस्थान में राजनीतिक प्रचार के लिए 22 अक्टूबर 1920 से वर्धा से राजस्थान केसरी नामक समाचार पत्र प्रकाशित किया गया था। विजय सिंह पथिक इस पत्रिका के संपादक थे और रामनारायण चौधरी सह संपादक थे। राजस्थान केसरी समाचार पत्र के लिए आर्थिक सहायता मुख्य रूप से जमनालाल बजाज ने की थी। यह पूर्णतः राजस्थानी लोगों को समर्पित पहला समाचार पत्र था जिसका नाम केसरी सिंह बारहठ के नाम पर रखा गया। 1920 में इस संस्था का मुख्यालय अजमेर में स्थानांतरित किया गया। राजस्थान सेवा संघ की शाखाएं बूंदी, जयपुर, जोधपुर, सीकर, खेतडी, कोटा आदि स्थानों पर खोली गई थी। राजस्थान सेवा संघ ने बिजोलिया और बेगू में किसान आंदोलन सिरोही और उदयपुर में भील आंदोलन का मार्गदर्शन किया था। श्री विजय सिंह पथिक ने 1921 में अजमेर से नवीन राजस्थान समाचार पत्रिका प्रकाशन प्रारंभ किया गया।
नवीन राजस्थान के प्रारंभ में विजय सिंह पथिक की निम्नलिखित पंक्तियां लिखी रहती थी -
ब्रिटिश सरकार द्वारा नवीन राजस्थान समाचार पत्र पर प्रतिबंध लगा दिया गया। उसके बाद यह समाचार पत्र तरुण राजस्थान के नाम से निकाला गया। तरूण राजस्थान पत्र के संपादन में शोभालाल गुप्त, रामनारायण चौधरी, जयनारायण व्यास आदि नेताओं ने योगदान दिया। मार्च 1924 में राम नारायण चौधरी और शोभालाल गुप्त को तरुण राजस्थान में देशद्रोहात्मक सामग्री प्रकाशित करने के अपराध में गिरफ्तार किया गया। 1924 में मेवाड़ राज्य सरकार द्वारा पथिक को कैद किए जाने के बाद से राजस्थान सेवा संघ के पदाधिकारियों और सदस्यों में आपसी मतभेदशुरू हो गए। धीरे-धीरे मतभेद की खाई इतनी गहरी हो गई की 1928-29 तक राजस्थान सेवा संघ पूर्णतया प्रभावहीन हो गया।
इसकी स्थापना चांदमल सुराणा ने की थी मारवाड़ सेवा संघ को सन् 1924 में जयनारायण व्यास ने पुनः जीवित किया और एक नई संस्था की स्थापना की जिसे ‘मारवाड़ हितकारणी सभा’ के नाम से जाना गया । मारवाड़ हितकारणी सभा की स्थापना 1929 में हुई। मारवाड़ हितकारिणी सभा द्वारा किसानों की ओर ध्यान आकर्षित करने के उद्देश्य से “पोपाबाई की पोल” और “मारवाड़ की अवस्था” नाम से दो पुस्तकें प्रकाशित की गई थी।
1922 में पूना में देशी राज्यों के लिए एक संगठन बनाने का विचार किया गया। 1926 में संगठन बनाने की प्रक्रिया को लेकर एक अस्थाई समिति का गठन किया गया। इस समिति की सिफारिशों पर 17/18 दिसंबर 1927 को बॉम्बे में अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद की स्थापना की गई। अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद के प्रथम अध्यक्ष दीवान बहादुर रामचंद्र राव थे और विजय पथिक को उपाध्यक्ष बनाया गया। श्रीराम नारायण चौधरी राजपूताना और मध्य भारत के प्रांतीय सचिव बनाए गए। देशी राज्य लोक परिषद् का मुख्यालय मुंबई में रखा गया था।
1928 में अजमेर में राजपूताना देशी राज्य लोक परिषद की स्थापना की गई।
प्रथम अधिवेशन - 1931 अजमेर में - अध्यक्ष रामनारायण चौधरी।
इसी समय से राजस्थान में प्रजामंडल आंदोलनों की शुरुआत मानी जाती है।
1938 में सुभाष चंद्र बोस की अध्यक्षता में हरिपुरा अधिवेशन में कांग्रेस ने प्रजामंडल आंदोलनों को अपना समर्थन प्रदान किया।
1939 में पंडित जवाहरलाल नेहरू अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद के अध्यक्ष(1939-46 तक) बने।
मित्र मंडल नामक संगठन की स्थापना बाबू मुक्ता प्रसाद ने बीकानेर में की थी।
इसके द्वारा बीकानेर स्टेशन पर पानी पिलाने व लावारिस मृतकों का दाह संस्कार आदि कार्य किया जाता था।
किंतु यह संस्था वास्तव में कांग्रेस के सिद्धांतों के प्रचार का कार्य करती थी।
10 मई 1931 को जोधपुर में जय नारायण व्यास के निवास स्थान पर मारवाड यूथ लीग नामक संस्था की स्थापना की गई थी। इस संस्था का प्रमुख उद्देश्य जोधपुर के साथ साथ आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में जन चेतना का प्रसार करना था। इस लीग को राज्य सरकार द्वारा अवैध घोषित करने से पूर्व ही एक अन्य संस्था बाल भारत सभा बनाई गई। बाल भारत सभा का मंत्री छगन लाल चौपासनीवाला को बनाया गया।
वीर भारत समाज (1910) : इसकी स्थापना विजयसिंह पथिक ने की थी।
वीर भारत सभा (1910) : इसकी स्थापना केसरीसिंह बारहठ़ एवं गोपालदास खरवा ने की थी।
जैन वर्द्धमान विद्यालय (1907) : इसकी स्थापना अर्जुनलाल सेठी ने जयपुर में की थी।
वागड़ सेवा मंदिर एवं हरिजन सेवा समिति (1935) : इसकी स्थापना भोगीलाल पाण्ड्या ने की थी।
चरखा संघ (1927) : इसकी स्थापना जमनालाल बजाज ने जयपुर में की थी।
सस्ता साहित्य मण्डल (1925) : इसकी स्थापना हरिभाऊ उपाध्याय ने अजमेर के हुडी में की थी।
जीवन कुटीर (1927) : इसकी स्थापना हीरालाल शास्त्री द्वारा जयपुर में की गई थी। वर्तमान में यह निवाई (टोंक) में हैं।
सर्वहितकारिणी सभा (1907) : इसके संस्थापक कन्हैयालाल ढुढँ थें। सन् 1914 में गोपालदास (बीकानेर) ने इसे पुर्नजिवित किया था।
विद्या प्रचारिणी सभा (1914) : इसकी स्थापना विजयसिंह पथिक ने की थी।
नागरी प्रचारणी सभा (1934) : इसकी स्थापना ज्वालाप्रसाद ने धौलपुर में की थी।
नरेन्द्र मण्डल (1921) : देषी राज्यों के राजाओं द्वारा निर्मित मण्डल जिसके चांसलर बीकानरे के महाराजा गंगासिंह थे।
सेवासंघ (1938) : इसकी स्थापना भागीलाल पाण्ड्या ने डुंगरपुर में की थी।
संस्था का नाम | स्थापना | स्थान | संस्थापक |
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देश हितैषणी सभा | 1877 | उदयपुर | महाराणा सज्जनसिंह(अध्यक्ष) |
परोपकारी सभा | 1883 | उदयपुर | महाराणा सज्जनसिंह(अध्यक्ष) |
राजपुत्र हितकारिणी सभा | 1888 | अजमेर | ए. जी. जी. कर्नल वाल्टर |
सर्वहितकारिणी सभा | 1907 | चूरू | स्वामी गोपालदास |
मित्र-मण्डल | - | बिजौलिया | साधु सीताराम दास |
वीर भारत सभा | 1910 | - | केसरीसिंह बारहठ |
विद्या प्रचारिणी सभा | - | बिजौलिया | साधु सीताराम दास |
प्रताप सभा | 1915 | उदयपुर | - |
हिन्दी साहित्य समिति | 1912 | भरतपुर | जगन्नाथ दास |
प्रजा प्रतिनिधि सभा | 1918 | कोटा | पं. नयनूराम शर्मा |
मरूधर मित्र हितकारिणी सभा | 1918 | जोधपुर | चांदमल सुराणा |
राजपुताना मध्य भारत सभा | 1918 | दिल्ली | अध्यक्ष-जमनालाल बजाज |
राजस्थान सेवा संघ | 1919 | वर्धा | विजयसिंह पथिक |
मारवाड़ सेवा संघ | 1920 | जोधपुर | जयनारायण व्यास, अध्यक्ष दुर्गाशंकर |
अमर सेवा समिति | 1922 | चिड़ावा | मा. प्यारेलाल गुप्ता |
मारवाड़ हितकारिणी सभा | 1923 | जोधपुर | जयनारायण व्यास |
चरखा संघ | 1927 | जयपुर | जमनालाल बजाज |
राजपूताना देशी राज्य परिषद | 1928 | अजमेर | विजयसिंह पथिक, रामनारायण चौधरी |
जीवन कुटीर | 1929 | वनस्थली | हीरालाल शास्त्री |
मारवाड़ यूथ लीग | 1929 | जोधपुर | जयनारायण व्यास |
राजस्थान हरिजन सेवा संघ | 1932 | अजमेर | अध्यक्ष-हरविलास शारदा |
खांडलाई आश्रम | 1934 | डूंगरपुर | माणिक्यलाल वर्मा |
नागरी प्रचारिणी सभा | 1934 | धौलपुर | ज्वाला प्रसाद जिज्ञासू, जौहरीलाल इन्दु |
महिला मण्डल | 1935 | उदयपुर | दयाशंकर श्रौत्रिय |
मारवाड़ लोक परिषद् | 1938 | - | रणछोड़दास गट्टानी(अध्यक्ष) |
आजाद मोर्चा | 1942 | जयपुर | बाबा हरिश्चन्द्र |
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