संविधान के छठे भाग में अनुच्छेद 168 से 212 तक राज्य विधान मंडल की संरचना, गठन, कार्यकाल, अधिकारियों, प्रक्रियाओं, विशेषाधिकार तथा शक्तियों के बारे में बताया गया है। संविधान के अनुच्छेद 168 के अनुसार प्रत्येक राज्य के लिए एक विधानमंडल होगा जो राज्यपाल और दो सदनों से मिलकर बनेगा। जहां किसी राज्य के विधान-मंडल के दो सदन हैं वहां एक का नाम विधान परिषद् और दूसरे का नाम विधान सभा होगा। विधान परिषद उच्च सदन है, जबकि विधानसभा निम्न सदन(पहला सदन) होता है।
वर्तमान में भारत में 28 राज्य और 8 केन्द्र शासित प्रदेश है। जिनमें से केवल 6 राज्यों(उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना) में द्विसदनीय(विधान सभा व विधान परिषद्) विधायिका है। जम्मू कश्मीर पुनर्गठन एक्ट की धारा 57 के तहत विधान परिषद को सरकार ने समाप्त कर दिया है। 7वें संविधान संशोधन अधिनियम(1956) द्वारा मध्य प्रदेश के लिए विधान परिषद के गठन का प्रावधान किया गया था किन्तु अभी तक वहां एकसदनीय विधायिका ही है।
विधानसभा के सदस्यों को प्रत्यक्ष मतदान द्वारा वयस्क मताधिकार के आधार पर चुना जाता है।
राज्यपाल आंग्ल-भारतीय समुदाय के एक व्यक्ति को विधानसभा में मनोनीत कर सकता है।(अनुच्छेद 333)
अधिकतम 500 तथा न्यूनतम 60
अरूणाचल प्रदेश, सिक्किम और गोवा के मामले में यह संख्या 30 तय की गई है।
मिजोरम के मामले में 40 व नगालैण्ड के मामले में 46 सदस्य संख्या तय है।
राजस्थान में विधानसभा की 200 सीटें हैं।
अनुसूचित जाति/जनजाति को जनसंख्या के अनुपात में राज्य विधानसभा में आरक्षण प्रदान किया गया है।(अनुच्छेद 332)
राज्यपाल, आंग्ल-भारतीय समुदाय से एक सदस्य को नामित कर सकता है। यदि इस समुदाय का प्रतिनिधि विधानसभा में पर्याप्त नहीं हो।(अनुच्छेद 333)
सामान्यतः 5 वर्ष(अस्थायी सदन)
आपातकाल में विधानसभा का कार्यकाल एक बार में एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
मंत्रिपरिषद की सिफारिश पर राज्यपाल द्वारा विधानसभा को समय से पूर्व भंग किया जा सकता है।
अनुच्छेद 170 खण्ड-2(1) - प्रत्येक राज्य के भीतर सभी निर्वाचन क्षेत्रों की जनसंख्या यथासंभव समान होनी चाहिए।
अनुच्छेद 170 खण्ड 3 - प्रत्येक जनगणना की समाप्ति पर प्रत्येक राज्य की विधानसभा में स्थानों की कुल संख्या और प्रत्येक राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों का विभाजन ऐसे प्राधिकारी द्वारा और ऐसी रीति से किया जाएगा जो संसद विधि द्वारा निर्धारित करे।
राजस्थान की प्रथम विधानसभा का कार्यकाल 29 मार्च, 1952 से 23 मार्च, 1957 तक रहा। इस समय विधानसभा की सदस्य संख्या 160 थी। जो की वर्तमान में 200 है। प्रथम विधानसभा में सर्वाधिक 17 क्षेत्रों में उपचुनाव हुए, जो अब तक का कीर्तिमान हैं। विधानसभा की प्रथम बैठक 31 मार्च, 1952 को हुई।
प्रथम अध्यक्ष - नरोत्तम लाल जोशी
प्रथम उपाध्यक्ष - लालसिंह शक्तावत
विपक्ष के नेता - कुंवर जसवंत सिंह
प्रथम महिला विधायक यशोदा देवी(प्रजा समाजवादी पार्टी) थी। जिन्होंने नवम्बर, 1953 में बांसवाड़ा से उपचुनाव जीता। दूसरी महिला विधायक कांग्रेस की कमला बेनीवाल बनी।
वर्तमान में राज्य की 15वीं विधानसभा चल रही है। इसके लिए चुनाव 7 दिसम्बर, 2018 को संपन्न हुए थे। 15वीं विधानसभा के अध्यक्ष सी.पी. जोशी हैं।
भारतीय संविधान में राज्यों को राज्य की भौगोलिक स्थिति, जनसंख्या एवं अन्य पहलुओं को ध्यान में रखते हुए राज्य विधानमंडल के अंतर्गत उच्च सदन के रूप में विधानपरिषद (वैकल्पिक) की स्थापना करने की अनुमति दी गई है। जहाँ विधानपरिषद के पक्षकार इसे विधानसभा की कार्यवाही और शासक दल की निरंकुशता पर नियंत्रण रखने के लिये महत्त्वपूर्ण मानते हैं, वहीं कई बार राज्य विधानमंडल के इस सदन को समय और पैसों के दुरुपयोग की वजह बता कर इसकी भूमिका और आवश्यकता पर प्रश्न उठते रहते हैं। राज्य विधानपरिषद की कार्यप्रणाली कई मायनों में राज्यसभा से मेल खाती है तथा इसके सदस्यों का कार्यकाल भी राज्यसभा सदस्यों की तरह ही 6 वर्षों का होता है।
संविधान के छठे भाग में अनुच्छेद 168-212 तक राज्य विधानमंडल (दोनों सदनों) के गठन, कार्यकाल, नियुक्तियों, चुनाव, विशेषाधिकार एवं शक्तियों की व्याख्या की गई है।
इसके अनुसार, विधानपरिषद उच्च सदन के रूप में राज्य विधानमंडल का स्थायी अंग होता है।
वर्तमान में देश के 6 राज्यों -आंध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश में विधानपरिषद है, केन्द्रशासित प्रदेश बनने से पहले जम्मू-कश्मीर में भी विधानपरिषद थी।
संविधान के अनुच्छेद 169, 171(1) और 171(2) में विधानपरिषद के गठन एवं संरचना से जुड़े प्रावधान हैं।
संविधान का अनुच्छेद 169 किसी राज्य में विधानपरिषद के उत्सादन या सृजन का प्रावधान करता है, वहीं अनुच्छेद 171 विधानपरिषदों की संरचना से जुड़ा है।
संविधान के अनुच्छेद 169 के अनुसार, राज्यों को विधानपरिषद के गठन अथवा विघटन करने का अधिकार है, परंतु इसके लिये प्रस्तुत विधेयक का विधानसभा में विशेष बहुमत (2/3) से पारित होना अनिवार्य है।
विधानसभा के सुझावों पर विधानपरिषद के निर्माण व समाप्ति के संदर्भ में अंतिम निर्णय लेने का अधिकार संसद के पास होता है।
विधानसभा से पारित विधेयक यदि संसद के दोनों सदनों में बहुमत से पास हो जाता है तब इस विधेयक को राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर के लिये भेजा जाता है।
राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद इस विधेयक (विधानपरिषद का गठन अथवा विघटन) को संवैधानिक मान्यता प्राप्त हो जाती है।
इस प्रक्रिया के दौरान संविधान में आए परिवर्तनों को अनुच्छेद 368 के तहत संविधान का संशोधन नहीं माना जाता।
संविधान के अनुच्छेद 171 के अनुसार, विधानपरिषद के कुल सदस्यों की संख्या राज्य विधानसभा के सदस्यों की कुल संख्या के एक-तिहाई (1/3) से अधिक नहीं होगी, किंतु यह सदस्य संख्या 40 से कम नहीं होनी चाहिये।
विधानपरिषद के सदस्यों का कार्यकाल राज्यसभा सदस्यों की ही तरह 6 वर्षों का होता है तथा कुल सदस्यों में से एक-तिहाई (1/3) सदस्य प्रति दो वर्ष में सेवानिवृत्त हो जाते हैं।
राज्यसभा की तरह ही विधानपरिषद भी एक स्थायी सदन है जो कभी भंग नहीं होता है।
राज्यसभा की ही तरह विधानपरिषद के सदस्यों का निर्वाचन प्रत्यक्ष चुनावों द्वारा नहीं होता है।
संविधान के अनुच्छेद 171 के तहत विधानपरिषद के गठन के लिये सदस्यों के चुनाव के संदर्भ में निम्नलिखित प्रावधान किये गए हैं-
1/3 सदस्य राज्य की नगरपालिकाओं, ज़िला बोर्ड और अन्य स्थानीय संस्थाओं द्वारा निर्वाचित होते हैं।
1/3 सदस्यों का चुनाव विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा किया जाता है।
1/12 सदस्य ऐसे व्यक्तियों द्वारा चुने जाते हैं जिन्होंने कम-से-कम तीन वर्ष पूर्व स्नातक की डिग्री प्राप्त कर लिया हो एवं उस विधानसभा क्षेत्र के मतदाता हों।
1/12 सदस्य उन अध्यापकों द्वारा निर्वाचित किया जाता है, जो 3 वर्ष से उच्च माध्यमिक (हायर सेकेंडरी) विद्यालय या उच्च शिक्षण संस्थानों में अध्यापन कर रहे हों।
1/6 सदस्य राज्यपाल द्वारा मनोनीत होंगे, जो कि राज्य के साहित्य, कला, सहकारिता, विज्ञान और समाज सेवा का विशेष ज्ञान अथवा व्यावहारिक अनुभव रखते हों।
सभी सदस्यों का चुनाव ‘अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली’ के आधार पर एकल संक्रमणीय गुप्त मतदान प्रक्रिया से किया जाता है।
संविधान के अनुच्छेद 173 के अनुसार, किसी भी व्यक्ति के राज्य विधानपरिषद में नामांकन के लिये निम्नलिखित अहर्ताएँ बताई गई हैं-
वह भारत का नागरिक हो।
उसकी आयु कम-से-कम 30 वर्ष होनी चाहिये।
मानसिक रूप से असमर्थ और दिवालिया नहीं होना चाहिये।
जिस क्षेत्र से वह चुनाव लड़ रहा हो वहाँ की मतदाता सूची में उसका नाम होना चाहिये।
राज्यपाल द्वारा नामित होने के लिये व्यक्ति को संबंधित राज्य का निवासी होना अनिवार्य है।
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