अमरचन्द बांठिया का जन्म 1791 में बीकानेर में हुआ था। इन्हें ग्वालियर नगर सेठ कहा जाता है। 1857 की क्रांति में इनहोंने लक्ष्मीबाई व तांत्याटोपे का सहयोग किया। इस कारण इन्हें भामाशाह द्वितीय या 1857 की क्रांति के भामाशाह का भामाशाह कहा जाता है। अंग्रेजों ने इन्हें जून, 1857 में ग्वालियर पेड़ के नीचे फांसी दे दी। ये 1857 की क्रांन्ति में राजस्थान से शहिद होने वाले प्रथम व्यक्ति थे इसलिए इन्हें राजस्थान का मंगल पांडे कहा जाता है।
अर्जुन लाल सेठी का जन्म 1880 ई. में जयपुर के जैन परिवार में हुआ। इन्होंने इलाहबाद काॅलेज से बी.ए. किया। इन्हें चौमू के जिलाधीश का पद मिला। ये पद इन्होंने ये कहते हुए ठुकरा दिया कि ‘सेठी नौकरी करेगा तो अंग्रेजो को बाहर कौन निकालेगा।’ अर्जुन लाल सेठी को जयपुर में जनजागृति का जनक, राजस्थान का दधीची, राजस्थान का लोक मान्य तिलक(राम नारायण चौधरी ने कहा) कहा जाता है। अर्जुन लाल सेठी चौमू में देवी सिंह के यहां शिक्षक भी रहे। 1905 में अर्जुन लाल सेठ ने जैन शिक्षा प्रचारक समिति की स्थापना की। बाद में इसे सोसायटी नाम से अजमेर में स्थानान्तरित किया। 1908 में वापस जैन वर्धन पाठ्यशाला के नाम से जयपुर में स्थानान्तरित किया इस संस्था का मुख्य उद्देश्य क्रान्तिकारी युवक तैयार करना था इसमें अध्यापक विष्णुदत्त थे। 1912 हार्डिंग बम काण्ड में अमीरचन्द नामक मुखबीर ने बताया कि यह अर्जुन लाल सेठी के दिमाग की उपज है। 1915 में सहशस्त्र क्रांति की राजस्थान में जिम्मेवारी अर्जुन लाल सेठी को सौंपी गयी। अर्जुन लाल सेठी ने मोतीचन्द व चार विद्यार्थियों को ‘आरा’ बिहार मुगलसराय जैन सन्त को लूटने के लिए भेजा। इसमें मोतीचन्द को फांसी, विष्णुदत्त को आजीवन कारावास, अर्जुन लाल को 5 साल की सजा हुयी व ‘वेल्लूर जेल’, तमिलनाडु भेजा गया। वैल्लूर जेल में सेठी जी ने 70 दिन तक भूख हड़ताल भी की थी। वेल्लूर से वापस आते समय महाराष्ट्र में बाल गंगाधर तिलक ने इनका स्वागत किया। बारदौली(गुजरात) में सरदार वल्लभ भई पटेल के नेतृत्व में सेठी जी का स्वागत हुआ। सेठी जी की बग्गी में घोड़ों के स्थान पर छात्रों ने स्वयं बग्गी खींचकर पूरे शहर में घुमाया। इसके बाद सेठी जी अजमेर आ गए व अपना नाम करीम खान रख लिया। काकौरी ट्रेन डकैती(अगस्त 1925) से भागे आसफाक उल्ला व मेरठ षड़यन्त्र केस से भागे शौकत अली को सेठी जी ने शरण दी। इनकी मृत्यु अजमेर में हुई। सेठी जी हिन्दू मुस्लिम समन्वयकारी क्रान्तिकारी थे। इनकी पुस्तकें शुद्र मुक्ति, परामर्श यज्ञ, मदन पराजय है।
नोट - शुद्र मुक्ति नाटक महेन्द्र कुमार ने लिखा था।
हीरालाल शास्त्री का जन्म 1899 में जोबनेर, जयपुर में हुआ। इन्होंने 1935 ई. में ‘शान्ता बाई जीवन कूटीर संस्थान(निवाई, टोंक)’ की स्थापना की जिसे वर्तमान में वनस्थली विद्यापीठ कहा जाता है। भारत छोड़ो आंदोलन के समय जयपुर सरकार के प्रधानमंत्री मिर्जा इस्माइल व शास्त्री जी के मध्य ‘जेन्टलमेन एग्रीमेन्ट’ हुआ। इस समझौते के अनुसार, जयपुर प्रजामण्डल भारत छोड़ों आन्दोलन में भाग नहीं लेगा। शास्त्री जी राजस्थान के प्रथम मनोनीत मुख्यमंत्री थे इनको शपथ राजपुमख मानसिंह द्वितीय ने दिलायी थी। शास्त्री जी ने ‘प्रत्यक्ष जीवन शास्त्र’ के नाम से आत्मकथा लिखी व ‘प्रलय प्रतिक्षा नमोः नमः’ नामक गीत लिखा।
जमनालाल बजाज का जन्म काशी का बास, सीकर में हुआ। इनको राजस्थान के भामाशाह के नाम से भी जाना जाता है। इन्हें 1920 के नागपुर अधिवेशन में गांधी जी के 5वें पुत्र की उपाधि मिली। बजाज जी अपने आप को गुलाम न. 4(पहला गुलाम भारत, दूसरा - देवी राजा, तीसरा सीकर) कहते थे। बजाज जी ने 1921 में वृद्वा में सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की। 1925 में चरखा संघ की स्थापना की। बजाज जी ने सर्वप्रथम उतरदायी शासक की स्थापना की मांग की थी।
जयनारायण व्यास का जन्म 1899 ई. में जोधपुर में हुआ। इनको ‘लक्कड़ का फ्क्कड़, धून के धनी, लोकनायक, शेर ए राजस्थान, मास्साब’ आदि नामों से जाना जाता है। 1924 ई. में इन्होंने मारवाड़ हितकारिणी सभा की स्थापना की। 1927 में तरूण राजस्थान पत्रिका के प्रधान सम्पादक बने। विजयसिंह पथिक भी इसके सम्पादक थे। व्यास जी ने 1936 में मुम्बई से अखण्ड भारत पत्रिका निकाली। जयनारायण व्यास राजस्थान के एकमात्र मनोनित व निर्वाचित मुख्यमंत्री है। इन्होंने राजस्थानी भाषा का प्रथम समाचार-पत्र आगीबाण प्रकाशित किया और पोपाबाई री पोल व मारवाड़ की अवस्था नामक पुस्तिकाएं प्रकाशित की।
बालमुकुन्द बिस्सा का जन्म नागौर की डीडवान तहसील के पीलवा गांव में हुआ। 1924 में चरखा एजेन्सी व खादी भण्डार की स्थापना की। 1942 में श्री जयनारायण व्यास के नेतृत्व में शुरू हुए जनान्दोलन के दौरान श्री बिस्सा को 9 जून, 1942 को भारत रक्षा कानून के अन्तर्गत बंदी बनाकर जेल में डाल दिया गया। जोधपुर जेल में भूख हड़ताल के कारण स्वास्थ्य खराब हुआ और बिन्दल अस्पताल में मृत्यु हो गयी। इन्हें राजस्थान का जतिन दास कहा जाता है।, जतिन दास ने लाहौर जेल में 63 दिन तक भूख हड़ताल की थी।
सागरमल गोपा का जन्म 1900 ई. में जैसलमेर में हुआ। इन्होंने जैसलमेर में गुण्डाराज, आजादी के दीवानें, रघुनाथ सिंह का मुकदमा पुस्तकें लिखी। जिसमें इन्होंने जैसलमेर राजशाही के काले कारनामों की आलोचना की। जिसके चलते इन्हें राजद्रोह के आरोप में 24 मई, 1941 को जेल में डाल दिया गया। इनके समय में जैसलमेर का शासक जवाहर सिंह था व जेलर गुमान सिंह था। इन्होंने गोपा जी पर मिट्टी का तेल डालकर जिंदा जला दिया। इसकी जांच के लिए गोपाल स्वरूप पाठक आयोगी की स्थापना की गयी। इनकी मृत्यु के बाद खून का बदला खून नारा दिया गया।
सेठ दामोदर दास राठी का जन्म 1884 ई. में जैसलमेर के पोकरण में हुआ। बाद में ये ब्यावर आ गए थे। यहां इन्होंने राजस्थान की प्रथम सूती वस्त्र मिल ‘द कृष्णा मिल’ की स्थापना की। 1915 में इन्होंने सहस्त्र क्रान्ति में गोपालसिंह खरवा की मदद की। इस कारण इन्हें सहस्त्र क्रान्ति का भामाशाह कहा जाता है। राठी जी ने 1916 में ब्यावर में होमरूल लीग की स्थापना की। ब्यावर में ही सनातन धर्म व नवभारत विधालय की स्थापना की।
इन्होंने स्वतन्त्रता बावनों ग्रन्थ लिखा था। जिसे इन्होंने गांधी जी को भेंट किया था। तेज कवि ने कमिश्नर के घर के आगे जाकर कहा था ‘कमिश्नर खोल दरवाजा हमें भी जेल जाना है, हिन्द तेरा है न तेरे बाप का, लगाया कैसा बंदीयाना है।’
गोपाल सिंह खरवा का जन्म खरवा ठिकाना अजमेर में हुआ। इन्हें ‘सहशस्त्र क्रान्ति’ का जनक कहा जाता है। इन्होंने 1910 ई. में केसरीसिंह बारहठ के साथ मिलकर वीर भारत सभा की स्थापना की। ये विजय सिंह पथिक के साथ टाॅडगढ़ जेल में भी रहे थे। वीर भारत समाज की स्थापना विजय सिंह पथिक ने की थी।
केसरीसिंह बारहठ का जन्म 1872 ई. को भीलवाड़ा की शाहपुरा रियासत के देवखेड़ा गांव में हुआ। 1903 ई. में वायसराय लार्ड कर्जन ने दिल्ली में दरबार लगाया। महाराजा फतेहसिंह को भी दरबार में बुलाया। फतेहसिंह जब दरबार में जा रहे थे उस समय केसरीसिंह बारहठ ने डिंगल भाषा में ‘चेतावनी चुंगठिया’ नामक 13 सोरठे गोपाल सिंह खर्वा के हाथों भिजवाए जिन्हें पढ़कर महाराजा का स्वाभिमान जागा और उन्होंने दरबार में भाग नहीं लिया। केसरीसिंह बारहठ ने 1910 ई. में वीर भारत सभा की स्थापना की। गोपाल सिंह खर्वा के साथ मिलकर की थी।
जोधपुर के महन्त प्यारेलाल की हत्या के आरोप में केसरीसिंह बारहठ को 20 वर्ष की सजा के तौर पर हजारीबाग केन्द्रीय जेल, झारखंड में भेजा गया। इन्हें पुत्र प्रतापसिंह की शहादत का पता जेल में चला था तब इन्होंने कहा था कि भारत माता का पुत्र भारत माता के लिए शहीद हो गया। केसरीसिंह बारहठ को योगीपुरूष व राजस्थान केसरी भी कहा जाता है।(मेवाड केसरी - महाराणा प्रताप)
रास बिहारी बोस ने कहा था - ‘एकमात्र बारहठ परिवार है जिसने भारत मां को आजाद कराने के लिए पूरे परिवार को झोंक दिया। वर्तमान में बारहठ जी का परिवार माणकमहल कोटा में रहता है। केसरीसिंह बारहठ की पुस्तक - प्रताप चरित्र, राजसिंह चरित्र, दुर्गादास चरित्र, रूठी रानी।
जोरावरसिंह बारहठ का जन्म 1883 ई. में उदयपुर में हुआ। 1912 में दिल्ली के चांदनी चौक में पीएनबी बैंक के उपर से हार्डिग पर बम फेंका। इसके बाद ये अमरदास वैरागी नाम से भूमिगत रहे थे। इनकी मृत्यु निमोनिया के कारण कोटा के अंतलिया हवेली में हुई थी। जोरावर सिंह बारहठ को राजस्थान का चन्द्रशेखर कहा जाता है।
विजय सिंह पथिक का जन्म 1882 ई. में गांव गुठावली, जिला बुलन्दशहर, उत्तर प्रदेश में हुआ। विजयसिंह पथिक का मूल नाम भूपसिंह गुर्जर था। विजय सिंह पथिक भारत में किसान आन्दोलन के जनक माने जाते हैं। राजस्थान में किसान आन्दोलन के जनक साधु सीताराम दास माने जाते हैं। विजयसिंह पथिक को टाॅडगढ़ जेल में बन्दी बनाया गया, जहां से वे फरार हो गये।
1916 में विजय सिंह पथिक जी ने किसान पंच बोर्ड की स्थापना की जिसका अध्यक्ष साधु सीताराम दास को बनाया। 1917 में उपरमाल पंचबोर्ड की स्थापना की जिसका अध्यक्ष मन्ना पटेल को बनाया। 1918 में कानपुर में राजपुताना मध्य भारत सभा की स्थापना की। 1919 में वृर्धा (महाराष्ट्र) राजस्थान सेवा संघ की स्थापना की जिसे 1920 में अजमेर में स्थानान्तरित कर दिया गया। नवीन राजस्थान(अजमेर) पत्रिका निकाली जिसका बाद में नाम तरूण राजस्थान कर दिया। वर्धा से राजस्थान केसरी समाचार पत्र निकाला। पथिक जी ने अजयमेरू नाम से उपन्यास निकाला। पथिक जी ने What are The Indian States? नामक पुस्तक लिखी। गांधी जी ने कहा था ‘बाकी सब बाते करते हैं पथिक सिपाही की तरह काम करता है।’
गोविन्द गिरी का जन्म 1858 ई. में डुंगरपुर के बणजारा परिवार में हुआ। इन्होंने 1883 ई. में सिरोही में सम्पसभा की स्थापना की, और मानगढ़ पहाड़ी(बांसवाड़ा) को अपना कार्यस्थल बनाया। पहला सम्पसभा अधिवेशन 1903 में मानगढ़ बांसवाड़ा में हुआ। डूंगरपुर व बांसवाड़ा में भील जनजाति में सामाजिक जागृति उत्पन्न करने के लिए भगत आंदोलन चलाय। नवंबर, 1913 में गोविन्द गिरी की अध्यक्षता में मानगढ़ सम्मेलन हुआ जिस पर गोलिया चलायी गयी। लगभग 1500 भील मारे गए।
मोतीलाल तेजावत का जन्म कोल्यार गांव उदयपुर के ओसवाल परिवार में हुआ। मोतीलाल तेजावत ने भीलों को अन्याय, अत्याचार व शोषण से मुक्त करने के लिए 1921 ई. में मातृकुण्डिया से ‘एकी’ आंदोलन चलाया। मोतीलाल तेजावत को आदिवासियों का मसीहा या बावजी कहा जाता है। नीमड़ा गांव में 7 मार्च, 1922 को मोतीलाल तेजावत द्वारा आयोजित सम्मेलन में अंधाधुंध फायरिंग में 1200 भील मारे गए। नीमड़ा हत्याकांड दूसरा जलियांवाला बाग हत्याकांड के नाम से जाना जाता है। मोतीलाल तेजावत ने नारा दिया था ‘ना हाकिम ना हुकुम’।
राजस्थान में सभी क्रांतिकारियों के प्रेरणा स्त्रोत एवं मार्गदर्शक थे। इन्हें ‘राजस्थान में क्रान्तिकारियों का पितामह’ भी कहा जाता है। 1885 से 1897 तक रतलाम, उदयपुर व जूनागढ़ रियासतों में दीवान पद पर रहे। ये स्वामी दयानन्द सरस्वती जी की प्रेरणा से स्वदेशी विचारधारा के प्रबल समर्थक हो गए। इन्होंने 1904 में लंदन में इण्डिया हाउस की स्थापना की।
प्रतापसिंह बारहठ(केसरीसिंह बारहठ के पुत्र) ने अपने चाचा जोरावरसिंह बारहठ के साथ मिलकर हार्डिंग की हत्या की योजना बनाई थी। हार्डिंग के जुलुस पर बम जोरावरसिंह ने फेंका था। प्रताप यहां से सिन्ध चले गए। पुनः वापस आने पर इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया व बरेली की जेल में ही इन्हें मार दिया गया। प्रसिद्ध वाक्य ‘मेरी मां रोती है तो रोने दो, जिससे सैकड़ों माताओं को न रोना पड़े’ प्रतासिंह का है।
इनकी कर्मभूमि चूरू थी 1907 में बालिका शिक्षा के लिए चूरू के पुत्री पाठशला पाठशाल बनवाई। इसी समय हरजिन शिक्षा के लिए कन्हैया लाल ढूढ़ के साथ मिलकर ‘कबीर पाठशाला’ की स्थापना की। जनता को अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए सर्वहित कारिनी सभा बनाई। 26 जनवरी 1930 को स्वामी गोपालदास व चन्दनमल बहड़ ने चूरू धर्मस्तूप पर तिरंगा लहराया।
स्वामी केशवानंद के बचपन का नाम बीरमा था। उदासी मत के गुरू कुशलनाथ से दीक्षित होने के बाद केशवानंद कहलाए। इन्होंने हनुमानगढ़ जिले की संगरिया तहसील में ग्रामोत्थान विद्यापीठ की स्थापना की और राष्ट्रभाषा हिन्दी का प्रचार-प्रसार किया।
‘आधुनिक राजस्थान के निर्माता’ मोहनलाल सुखाड़िया ने 17वर्ष तक मुख्यमंत्री रहकर ‘राजस्थान में सर्वाधिक समय तक मुख्यमंत्री’ रहने का गौरव प्राप्त किया।
हरिभाऊ उपाध्याय ने हटूण्डी(अजमेर) में गांधी आश्रम व महिला शिक्षा सदन की स्थापना की। अजमेर राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बने।
गोकुल भाई भट्ट का जन्म हाथल गांव सिरोही में हुआ। गोकुल भाई भट्ट गांधी जी के रचनात्मक कार्यों के प्रमुख सहयोगी रहे। इन्हें राजस्थान के गांधी के नाम से भी जाना जाता है। इन्होंने 1939 ई. में सिरोही प्रजामण्डल की स्थापना की।
बलवन्तसिंह मेहता का जन्म 8 फरवरी, 1900 को उदयपुर में हुआ। उन्होंने 1915 ई. में ‘प्रताप सभा’ की स्थापना की। 1938 में इन्हीं के नेतृत्व में मेवाड़ प्रजामण्डल की स्थापना की गई। 1943 ई. में उदयपुर में ‘वनवासी छात्रावास’ की स्थापना की।
टीकाराम पालीवाल ने 1929 ई. में दिल्ली में ‘विद्यार्थी यूथ लीग’ की स्थापना की। 1938 ई. में सवाईमाधोपुर में राजनीतिक गतिविधियों से जुड़ गए। 3 मार्च, 1957 को राजस्थान के प्रथम निर्वाचित मुख्यमंत्री बने।
बीकानेर रियासत में आजादी के आंदोलन का जनक कहा जाता है 1936 में इन्होंने बीकानेर प्रजामंडल की स्थापना की 1946 में यह बीकानेर राज्य प्रजा परिषद के अध्यक्ष बने और दूधवाखारा किसान आंदोलन में भाग लिया।
1857 ई. के स्वतंत्रता संग्राम में सीकर क्षेत्र के काका-भतीजा डूंगजी-जवाहरजी प्रसिद्ध देशभक्त हुए। डूंगजी शेखावटी ब्रिगेड में रिसालेदार थे। बाद में नौकरी छोड़कर धनी लोगों से देश की आजादी के लिए धन मांगने लगे और धन न मिलने पर यहां डाका डालने लगे। इस धन से वे निर्धन व्यक्तियों की भी सहायता करते। डूंगजी के साले भैरूसिंह ने उन्हें धोखे से पकड़वा दिया। अंग्रेजों ने उन्हें आगरा के दुर्ग में बंद कर दिया। जवाहरजी ने उन्हें लोटिया जाट(लोठूजी निठारवाल, सीकर) और >करणा मीणा की सहायता से छुड़वाया।
सरदार हरलालसिंह का जन्म झुंझुनूं जिले के हनुमानपुरा गांव में 1901 ई. में हुआ था। सरदार हरलालसिंह अशिक्षित थे। हरलालसिंह ने रियासती एवं जागीरदारी जुल्मों का डटकर विरोध किया। किसान एवं प्रजामण्डल आन्दोलन में इन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई। ‘विद्यार्थी भवन झुंझुनूं’ की स्थापना कर उसे राजनीतिक एवं सामाजिक गतिविधियों का केन्द्र बनाया। कुशल नेतृत्व के कारण उनके सहयोगियों ने उन्हें ‘सरदार’ उपाधि दी।
कप्तान दुर्गाप्रसाद चौधरी का जन्म 1905 ई. में नीम का थाना में हुआ। इनकी प्रारंभिक शिक्षा अर्जुनलाल सेठी की ‘वर्धमान पाठशाला’ में तथा उसके उपरान्त सांभर तथा कानपुर में हुई। चौधरी ने ‘राजस्थान सेवा संघ’ के अन्तर्गत बिजौलिया में कार्य किया और 1903 ई. में स्वाधीनता आंदोलन में शामिल हो गए। दुर्गा प्रसाद चौधरी ने एक पत्रकार के रूप में अपनी पहचान बनाई। इन्होंने अजमेर और जयपुर से प्रकाशित ‘दैनिक नवज्योति’ का लंबे समय तक सम्पादन किया।
© 2024 RajasthanGyan All Rights Reserved.