नाहरगढ़ (जयपुर) में स्थित है।
ये कछवाहा शासको की छतरियां है।
जयसिंह द्वितीय से मानसिंह द्वितीय की छतरियां है।
जैसलमेर में स्थित है।
यहां भाटी शासकों की छतरियां स्थित है।
कोटा में स्थित है।
यहां हाड़ा शासकों की छतरियां स्थित है।
रिड़मलसर (बीकानेर) में स्थित है।
राव बीकाजी व रायसिंह की छतरियां प्रसिद्ध है।
कोटा में स्थित है।
बूंदी में स्थित है।
जोधपुर में स्थित है।
सरदार सिंह द्वारा निर्मित है।
चित्तौड़गढ में स्थित है।
करौली में स्थित है।
बांडोली (उदयपुर) में स्थित है।
यह वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की छतरी है।
राजस्थान में दो स्थानों पर 32-32 खम्भों की छतरियां है।
मांडल गढ (भीलवाड़ा) में स्थित 32 खम्भों की छतरी का संबंध जगन्नाथ कच्छवाहा से है।
रणथम्भौर (सवाई माधोपुर) में स्थित 32 खम्भों की छतरी हम्मीर देव चैहान की छतरी है।
अलवर में स्थित हैं
यह छतरी मूसी महारानी से संबंधित है।
बूंदी में स्थित है।
यह छतरी राजा अनिरूद के माता देव की छतरी है।
यह छतरी भगवान शिव को समर्पित है।
नागौर में स्थित हैं
यह अमर सिंह की छतरी है। ये राठौड वंशीय थे।
अलवर में स्थित हैं।
उदयपुर में स्थित हैं
इन्हे महासतियां भी कहते है।
अलवर में स्थित है।
बदनौर (भीलवाडा) में स्थित है।
आमेर (जयपुर) में स्थित है।
लालसौट (दौसा) में स्थित है।
जोधपुर में स्थित हैं।
अजीत सिंह की धाय मां की छतरी है।
स्थापना - 18 नवम्बर, 1727 को, कच्छवाहा नरेश सवाई जय सिंह द्वितीय द्वारा की गई।
उपनाम- "भारत का पेरीस" "गुलाबी नगर" "रंग श्री को द्वीप (Island of Glory)
यह 953 खिडकियों वाला महल है।
1799 ई. में सवाई प्रताप सिंह ने बनवाया।
पांच मंजिला इस इमारत को उस्ताद लालचंद कारीगर ने बनवाया।
मंजिलों के नाम क्रमश:- शरद मंदिर, रत्नमंदिर, विचित्र मंदिर, प्रकाश मंदिर हवा मंदिर है।
यह अतिथि गृह (स्वागत महल) था।
इसका निर्माण माधोसिंह ने करवाया।
इसका निर्माण जयसिंह द्वितीय ने करवाया।
इसका वास्तुकार विद्याधर था।
चैंमू (जयपुर) में स्थित है।
चित्रकला के लिए प्रसिद्ध भवन है।
मानसागर झील (जयपुर) में स्थित है।
इसका निर्माण कछवाहा राजा मानसिंह प्रथम न 1592 ई. में करवाया।
यह महल मावठा झील (जयपुर) के किनारे स्थित है।
महाकवि बिहारी ने इन्हें "दर्पण धाम" कहा है।
नाहरगढ दुर्ग (जयपुर) में स्थित है।
स्थापना - 12 मई 1459 को राव जोधा द्वारा की गई
उपनाम - "मरूस्थल का प्रवेश द्वार" "सूर्य नगरी " महरानगढ़ दुर्ग में स्थित महल
फूल महल महाराजा अभयसिंह द्वारा बनवाया गया।
इसका निर्माण महाराजा जसवंत सिंह ने करवाया।
स्वामी दयानंद सरस्वती के यहां उपदेश दिए।
इसका निर्माण महाराजा तख्त सिंह ने करवाया है।
मंडौर (जोधपुर) में स्थित तीन मंजिला भवन है।
यह भवन प्रहरी मीनार के नाम से प्रसिद्ध है।
इसका निर्माण अजीत सिंह ने करवाया।
इस भवन का निर्माण महाराजा उम्मेद सिंह ने अकाल राहत कार्यो के तहत् (1929-1940) करवाया।
निर्माण में छित्तर पत्थर प्रयुक्त होने के कारण यह छित्तर पैलेस कहलाता है।
इसका निर्माण जैसल के पुत्र शालीवाहन द्वितीय के समय में पूरा हुआ।
प्राचीन नाम- "माड़धरा" "वल्ल मण्डल"
उपनाम- "झरोखों का शहर"
यह महल सोनारगढ़ दुर्ग में स्थित है।
स्थापना - सन् 1356 ई. में रावल वीर सिंह ने भील सरदार डूंगरिया को पराजित कर इस नगर की स्थापना की। उपनाम - "पहाडियों का नगर"
यह महल गेप सागर झील के किनारे स्थित है।
महाराजा उदयसिंह द्वारा बनवाया गया आकर्षक महल है।
उपनामः- "छोटी काशी" "बावडि़यों का शहर"
इसका निर्माण विष्णु सिंह द्वारा करवाया गया।
यह महल जैत सागर झील के किनारे बना है।
कोटिया भील के नाम पर इस स्थान का नाम कोटा रखा गया।
उपनाम - "राजस्थान का कानपुर" "उद्यानों का नगर" "औद्योगिक नगरी" "शिक्षा का तीर्थ स्थल"
यह कोटा दूर्ग में स्थित है।
राव मुकुन्द सिंह द्वारा निर्मित है।
महल दर्रा अभ्यारण्य में स्थित है।
इसका निर्माण महारानी बृजकंवर द्वारा 1140 ई. में करवाया गया।
यह भवन किशोर सागर झील में निर्मित है।
स्थापना - इस राज्य का निर्माण झाला जालिम सिंह व अंग्रेजो के मध्य हुई एक संधि के परिणाम स्वरूप हुआ।
उपनाम - "राजस्थान का नागपुर"
इसका निर्माण देहरादून की वन शोध संस्थान द्वारा करवाया गया।
यह किशनसागर झील (झालावाड़) के किनारे स्थित है।
इसे रैन बसेरा कहा जाता है।
उपनामः- "राजस्थान का प्रेवश द्वार"
डीग के जल महलों का निर्माण सूरजमल जाट ने करवाया।
डीग को जलमहलों की नगरी भी कहते है।
डीग के महलों को निर्माण बदन सिंह ने करवाया।
स्थापना:- सन् 1559 ई. में महाराजा उदयसिंह ने इस नगर की स्थापना की ।
उपनाम - "राजस्थान का कश्मीर" "भारत का दूसरा कश्मीर" "पूर्व का वेनिस" "झीलों की नगरी"
महाराणा जगत सिंह द्वितीय ने यह महल सन् 1746 ई. में बनवाया।
वर्तमान में यहां लैक पैलेस होटल संचालित है।
इस महल का निर्माण महाराणा कर्णसिंह ने सन् 1620 ई. में शुरू करवाया तथा जगत सिंह प्रथम ने 1651 ई. में पूर्ण करवाया।
जग मंदिर व जग निवास महल पिछौला झील में स्थित है।
इतिहासकार फग्र्यूसन ने इन्हें राजस्थान के विण्डसर महलों की संज्ञा दी।
ये महल पिछौला झील के तट पर स्थित है।
स्थापना - देवड़ा राजा रायमल के पौत्र व शिवभान के पुत्र ने सन् 1425 ई. में सिरोही नगर की स्थापना की।
उपनाम - अर्बुद प्रवेश
स्थापना - राव जोधा के पुत्र राव बीका ने इस नगर की स्थापना की।
उपनाम - राती घाटी ,ऊन का घर,जागंल प्रदेश
गंगासिंह ने अपने पिता लालसिंह की स्मृति में इस महल का निर्माण करवाया।
स्थापना- चैहान राजा अजयराज (अजयपाल) ने सन् 1113 ई. इस नगर की स्थापना की।
उपनाम - राजस्थान का ह्रदय, भारत का मक्का,राजपूताना की कुंज्जी
मेग्जीन दुर्ग का उपयोग 1908 ई. से राजकीय संग्रहालय के रूप में हो रहा है।
"भिलाड़ी टकसाल "के कारण इसका नाम भीलवाड़ा पडा।
उपनाम- "राजस्थान का मैनचेस्टर" "तालाबों का शहर"' "टैक्सटाइल सिटी" "वस्त्र नगरी"
यह बनेड़ा दुर्ग में स्थित है।
स्थापना - अलवर की स्थापना राव प्रतापसिंह ने 1770 ई. में की।
उपनाम- राजस्थान का सिंह द्वार, पूर्वी राजस्थान का कशमीर , राजस्थान का स्काॅटलैण्ड
इसका निर्माण विनय सिंह द्वारा करवाया गया।
उपनाम - राजस्थान का गौरव, खिज्राबाद
इस महल का निर्माण मेवाड़ के महाराणा ??फतेह सिंह ने करवाया।
यह महल चित्तौडगढ दुर्ग में स्थित है।
चित्तौडगढ दुर्ग में स्थित है।
राज्य सरकार द्वारा 10 अप्रैेल 1991 को उदयपुर से अलग कर इस जिले का निर्माण किया गया।
प्राचीन नाम - राजनगर
यह महल कुम्भलगढ़ दुर्ग (राजसमंद) में बना हुआ है।
सन् 1451 से 1488 के बीच झूझा नामक जाट के नाम पर झुनझुनू बसाया गया।
उपनाम - शेखावटी का सिरमौर
झुनझुनू नगर में स्थित इस महल का निर्माण राजा भोपाल सिंह ने करवाया।
इस महल को राजस्थान का दूसरा हवामहल कहते है।
उपनाम - नवाबों का शहर
यह महल बनास नदी के किनारे पर स्थित है।
इस महल के पास बनास डाई और खरी नदियों का त्रिकोण है।
इसके समीप गोकर्णेश्वर महादेव मंदिर, बीसलदेव का मंदिर पौराणिक एवं धार्मिक स्थल है।
इसका निर्माण नवाब बजीउद्दौला ने करवाया।
पहले यह शीशमहल के नाम से जानी जाती थी।
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