राजस्थान राज्य महिला आयोग की स्थापना का एक मूलभूत उद्देश्य हाशिये पर आई महिला आबादी को मुख्यधारा मे लाने का है। राजस्थान राज्य महिला आयोग का गठन, राजस्थान राज्य महिला आयोग अधिनियम 1999 के तहत 15 मई 1999 को एक सांविधिक निकाय के रूप में किया गया। यह एक स्वायत्त संस्था के रूप में स्थापित किया गया, निम्न के लिए:
राज्य में महिला नीति 8 मार्च,2000 को जारी की गई ।
नियुक्ति – राज्य सरकार द्वारा मनोनीत होता हैं।
कार्यकाल – तीन वर्ष का होता हैं।
राजस्थान राज्य महिला आयोग 1999 के अधिनियम की धारा 3(2) के अनुसार आयोग में निम्नानुसार अध्यक्ष + 4 सदस्य(सदस्य सचिव सहित) हैं—
अध्यक्ष - 1 राज्य सरकार द्वारा 3 वर्ष के लिए मनोनीत किये जाते हैं।
सदस्य - 3
सदस्यों में से एक अनुसूचित जाति अथवा अनुसूचित जनजाति की और एक अन्य पिछड़ी जाति की महिला होनी अनिवार्य हैं।
एक सदस्य सचिव, राज्य सरकार द्वारा पदस्थापित अधिकारी।
आयोग का मुख्यालय जयपुर में है।
राजस्थान राज्य महिला आयोग अधिनियम, 1999, की धारा 11 आयोग के कार्यों का विस्तार से विवरण करती है , लेकिन संक्षेप में ये इस प्रकार हैं:
अधिनियम के तहत आयोग के पास:
10 (1) एक सिविल कोर्ट की शक्तियाँ हैं, मुकदमे को दीवानी प्रक्रिया संहिता 1908 (1908 का केन्द्रीय अधिनियम 5) के तहत सुनवाई करते समय। राजस्थान राज्य महिला आयोग अधिनियम, 1999 की धारा 10,11,12 और 13 के तहत आयोग के पास निम्नलिखित शक्तियाँ हैं:
10 (1) ए॰ किसी भी गवाह को बुलवाने और उसकी उपस्थिति सुनिश्चित करना, और उसकी पड़ताल करना
10 (1) बी॰ किसी भी दस्तावेज की खोज और उसकी प्रस्तुति
10 (1) सी॰ हलफनामों पर साक्ष्य प्राप्त करना
10 (1) डी॰ किसी भी सार्वजनिक रिकॉर्ड या उसकी प्रतिलिपि का सार्वजनिक कार्यालय से अधिग्रहण
10 (1) ई॰ गवाहों की पड़ताल के लिए अभियान देना या सम्मन जारी करना
10 (2): आयोग को एक सिविल कोर्ट माना जाएगा और जब कोई अपराध जैसा कि अनुभाग 175, अनुभाग 178, अनुभाग 179, अनुभाग 180, या भारतीय दंड संहिता, 1860 के अनुभाग 228 (1860 का केन्द्रीय अधिनियम) में वर्णित है, आयोग की नजर मे घटित होता है, तो आयोग अपराध से संबन्धित तथ्यों और अभियुक्त के बयान की रिकॉर्डिंग के बाद जैसा भारतीय दंड संहिता, 1860 (1860 का केन्द्रीय अधिनियम 45) या अपराध प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का केन्द्रीय अधिनियम 2) के तहत मामले को एक मजिस्ट्रेट जिसके क्षेत्राधिकार मे वह आता है, को अग्रेषित कर सकता है, और मजिस्ट्रेट जिसे ऐसे मामले अग्रेषित किए जाते हैं, उसे अभियुक्त के विरुद्ध शिकायत ठीक उसी प्रकार सुननी होगी जैसे कि उसे शिकायत आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 346 (1974 के केन्द्रीय अधिनियम का अधिनियम 2) के तहत अग्रेषित की गयी हो।
10 (3) आयोग के सम्मुख प्रत्येक कार्यवाही अनुभाग 193 और 228 के तहत न्यायिक कार्यवाही के रूप में मानी जाएगी, और भारतीय दंड संहिता 1860 के अनुभाग 196 (केंद्रीय अधिनियम 1860 के अधिनियम 45) के प्रावधानों के अंतर्गत, और आयोग को दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के अनुभाग 195 और अध्याय XXVI (केन्द्रीय अधिनियम 1974 का अधिनियम 2) के सभी प्रयोजनों के लिए एक सिविल कोर्ट माना जाएगा।
प्रथम अध्यक्ष – कांता खतूरिया
वर्तमान अध्यक्ष – .....
Official website : https://rscw.rajasthan.gov.in/
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