भारत में मानवाधिकारों की रक्षा के लिए 28 सितंबर 1993 से मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 लागू हुआ | मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के तहत देश में मानवाधिकारों की रक्षा के लिए, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन है 12 अक्टूबर 1993 में न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्र की अध्यक्षता में किया गया इस का प्रधान कार्यालय दिल्ली में है।
भारत की संसद द्वारा पारित एक अधिनियम ‘मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम-1993’ के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर ‘राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग’ एवं राज्य स्तर पर ‘राज्य मानव अधिकार आयोग’ को स्थापित करने की व्यवस्था की गई है। मानवाधिकार शब्द मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम की धारा 2 (घ) में परिभाषित किया गया है।
राज्य मानव अधिकार आयोग केवल उन्ही मामलो में मानव अधिकारो के उल्लघन की जांच कर सकता है जो सविधान की राज्य सूची एवं समवर्ती सूची के तहत आते है। यदि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग या अन्य कोई विधिक निकाय किसी मामले पर पहले से ही जाँच कर रहा हो तो राज्य मानवाधिकार आयोग हस्तक्षेप नही कर सकता है।
राजस्थान की राज्य सरकार ने दिनांक 18 जनवरी 1999 को एक अधिसूचना राजस्थान राज्य मानव अधिकार आयेाग के गठन के संबंध में जारी की, जिसमें मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 की धारा 21(1) के प्रावधानुसार एक पूर्णकालिक अध्यक्ष एवं चार सदस्य रखे गये। अध्यक्ष एवं चार सदस्यों की नियुक्ति कर आयोग का गठन किया गया और मार्च, 2000 से यह आयोग क्रियाशील हो गया था। मानव अधिकार संरक्षण (संशोधित) अधिनियम, 2006 के अनुसार राज्य मानव अधिकार आयोग में एक अध्यक्ष और दो सदस्य का प्रावधान किया गया है। आयोग का मुख्य कार्यालय सचिवालय, जयपुर में है।
इस आयोग का अध्यक्ष उच्च न्यायालय का सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश ही हो सकता है।
इस आयोग में निम्न 2 सदस्य होंगे
1. उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त या कार्यरत एक न्यायाधीश होता हो।
2. सदस्य जो उस राज्य में एक जिला न्यायाधीश है या रहा है (सात साल का अनुभव) जिन्हे मानव अधिकारों से संबंधित मामलो का ज्ञान हो या उसमें व्यावहारिक अनुभव हो।
राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति राज्य के राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री के नेतृत्व में 6 सदस्य एक समिति के सिफारिश पर की जाती है राजस्थान में समिति में वर्तमान में केवल 4 सदस्य हैं। अध्यक्ष व सदस्यों को शपथ उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश दिलवाता है, इस समिति में शामिल होते हैं–
मुख्यमंत्री समिति के पदेन अध्यक्ष के रुप में ।
राज्य मंत्रिमंडल सदस्य (गृह मंत्री)।
विधानसभा अध्यक्ष।
विधानसभा में विपक्ष का नेता।
विधान परिषद सभापति।(राजस्थान में नहीं है)
विधान परिषद में विपक्ष का नेता।(राजस्थान में नहीं है)
राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल अवश्य करता है लेकिन बर्खास्त करने का अधिकार केवल राष्ट्रपति को है।
नोट – राज्य आयोग के अध्यक्ष या सदस्य की कोई नियुक्ति समिति में किसी रिक्ति के कारण है अविधिमान्य नहीं होगी।
(1) अध्यक्ष एवं राज्य आयोग का कोई सदस्य अपने पद से केवल उसी दशा में राष्ट्रपति के आदेश द्वारा हटाया जाएगा जब वह सिद्ध कदाचार अथवा असमर्थता युक्त हो। इस संबंध में मामला राष्ट्रपति द्वारा जांच हेतु उच्चतम न्यायालय को निर्दिष्ट किया जाएगा। उच्चतम न्यायालय द्वारा जांच करने के पश्चात ही रिपोर्ट राष्ट्रपति के पास भेजी जाएगी और जांच रिपोर्ट में अध्यक्ष व सदस्य के विरुद्ध दुर्व्यवहार अथवा असमर्थता पाए जाने पर राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकेगा।
(2) उपधारा 1 में किसी बात के होते हुए भी राष्ट्रपति राज्य आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य अपने आदेश द्वारा पद से हटा सकता है | जिन आधारों पर हटाएगा निम्नवत है –
(1) यदि वह दिवालिया हो गया हो
(2) यदि आयोग में अपने कार्यकाल के दौरान उसने कोई लाभ का सरकारी पद धारण किया है
(3) यदि वह दिमागी या शारीरिक तौर पर अपने दायित्व के निर्वहन के अयोग्य हो गया हो
(4) यदि वह मानसिक रूप से अस्वस्थ हो तथा सक्षम न्यायालय द्वारा उसी अक्षम घोषित कर दिया गया
(5) यदि किसी अपराध के संबंध में उसे दोषी सिद्ध किया गया है तथा उसे कारावास की सजा दी गई हो
5 वर्ष का कार्यकाल अथवा 70 वर्ष की उम्र जो भी पहले पूरी हो तक पद पर बने रह सकते है। लेकिन यहां दो बातों पर ध्यान देना आवश्यक है -
यदि 70 वर्ष की आयु पूर्ण नहीं हुई हो तो इस आयु तक पुनर्नियुक्त किए जा सकते है।
कार्यकाल पूर्ण होने के बाद राज्य अथवा केंद्र सरकार के अधीन कोइ पद ग्रहण नहीं कर सकते है।
(1) मानव अधिकार के उल्लंघन की जांच करना अथवा किसी लोक सेवक के समक्ष प्रस्तुत मानवाधिकार उल्लंघन की प्रार्थना जिसकी वह अवहेलना करता हो, की जांच स्व प्रेरणा या न्यायालय के आदेश से करना।
(2) न्यायालय में लंबित किसी मानव अधिकार से संबंधित कार्यवाही में हस्तक्षेप करना
(3) जेलों में जाकर वहां की स्थिति का अध्ययन करना व इस बारे में सिफारिशें करना
(4) मानव अधिकारों की रक्षा हेतु बनाए गए संवैधानिक व विधिक उपबंधों की समीक्षा करना तथा इनके प्रभावी कार्यान्वयन हेतु उपायों की सिफारिशे करना
(5) आंतकवाद सहित उन सभी कारणों की समीक्षा करना जिससे मानव अधिकारों का उल्लंघन होता है तथा इनसे बचाव के उपायों की सिफारिश करना।
(6) मानवाधिकारों से संबंधित है अंतरराष्ट्रीय संधियों व दस्तावेजों का अध्ययन एवं उन को प्रभावशाली तरीके से लागू करने हेतु सिफारिश करना
(7) मानव अधिकारों के क्षेत्र में शोध करना और इसे प्रोत्साहित करना
(8) लोगों के बीच मानवाधिकारों की जानकारी फैलाना व उनकी सुरक्षा के लिए उपलब्ध उपायों के प्रति जागरुक करना
(9) मानव अधिकारों के क्षेत्र में कार्यरत गैर सरकारी संगठनों के प्रयासों की सराहना करना
(10) ऐसे आवश्यक कार्यों को करना, जो कि मानव अधिकारों के प्रचार व प्रोत्साहन के लिए आवश्यक हो।
समन जारी करने की शक्ति।
शपथ पत्र अथवा हलफ़नामे पर लिखित गवाही लेने की शक्ति।
गवाही को रिकोर्ड करने की शक्ति।
देश की विभिन्न जेलों का निरीक्षण करने की शक्ति।
Note : आयोग उन्ही मामलों में जाँच कर सकता है जिन्हें घटित हुए एक वर्ष से काम समय हुआ हो। एक वर्ष से पूर्व घटनाओं पर आयोग को कोई अधिकार नहीं है। आयोग मानवाधिकार उल्लंघन के दोषी को न तो दंड से सकता है ओर न ही पीड़ित को किसी प्रकार की आर्थिक सहायता कर सकता है। लेकिन इसका चरित्र न्यायिक है।
प्रथम अध्यक्ष – कान्ता भटनागर
वर्तमान अध्यक्ष – श्री गोपाल कृष्ण व्यास (July 2022)
Official website : https://rshrc.rajasthan.gov.in/
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