जनक - ग्वालियर के शासक मानसिंह तोमर को माना जाता है।
महान संगीतज्ञ बैजू बावरा मानसिंह के दरबार में था।
संगीत सामदेव का विषय है।
कालान्तर में ध्रुपद गायन शैली चार खण्डों अथवा चार वाणियां विभक्त हुई।
(अ) गोहरवाणी
उत्पत्ति- जयपुर
जनक- तानसेन
(ब) डागुर वाणी
उत्पत्ति- जयपुर
जनक - बृजनंद डागर
(स) खण्डार वाणी
उत्पत्ति - उनियारा (टोंक)
जनक- समोखन सिंह
(द) नौहरवाणी - जयपुर
जनक- श्रीचंद नोहर
ख्याल फारसी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है कल्पना अथवा विचार
जनक- अमीर खुसरो जो अलाउद्दीन खिलजी के दरबार में था।
खुसरो को कव्वाली का जनक माना जाता है।
कुछ इतिहास -कार जोनपुर (महाराष्ट्र) के शासक शाहसरकी को ख्याल गायन श्शैली का जनक मानते है।
संस्थापक - मनरंग (भूपत खां)
संगीतज्ञ - मोहम्मद अली खां कोठी वाले
घराना ख्याल गायन शैली का प्रयोग करता है।
इसे सितारियों का घराना भी कहते है।
प्रसिद्ध संगीतज्ञ - सितारवादक - अमृत सैन
संस्थापक- सूरतसैन (तानसेन का पुत्र)
यह घराना गोहरवाणी का प्रयोग करता है।
संस्थापक - नजीर खां (जोधपुर के शासक जसवंत सिंह के दरबार में था )
प्रसिद्ध संगीतज्ञ - पं. जसराज
यह घराना डागुरवाणी का प्रयोग करता है।
जहीरूद्दीन डागर व फैयाजुद्दीन डागर जुगलबंदी के लिए जाने जाते है।
संस्थापक -फतेह अली तथा अली बख्श खां
प्रसिद्ध संगीतज्ञ- पाकिस्तानी गजल गायक- गुलाम अली
संस्थापक -साहिब खां
यह घराना खण्डार वाणी प्रयोग करता है।
प्रसिद्ध संगीतज्ञ - मान तौल खां/रूलाने वाले फकीर
संस्थापक - अलादीया खां
यह घराना खण्डार वाणी व गोहरवाणी का प्रयोग करता है।
यह जयपुर घराने की उपशाखा है।
प्रसिद्ध गायिका - श्री मति किशौरी रविन्द्र अमोणकर
संस्थापक - रज्जब अली बीनकर
रामसिंह-द्वितीय का दरबारी व्यक्ति है।
संस्थापक- सदारंग
यह घराना ख्याल गायन शैली का प्रयोग करता है।
ख्याल गायन शैली को प्रसिद्धी दिलाने का श्रेय सदारंग को दिया जाता है।
यह मूलत - माहाराष्ट्र का घराना है।
प्रसिद्ध संगीतज्ञ- 1. गंगुबाई हंगल 2. रोशनआरा बेगम 3. पं. भीमसेन जोशी (भारत रत्न 2008 में)
राजस्थान भाषा साहित्य अकादमी की स्थापना 1983 ई. में की गई।
राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान की स्थापना सन् 1950 ई. में जोधपुर में की गई।
सन् 2002 में उस्ताद किशन महाराज, जाकिर हुसैन (दोनों तबला वादक) किशौरी रविन्द्र अमोणकर को पदम भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
जयपुर के शासक रामसिंह - द्वितीय के दरबार में बहराम खां, मोहम्मद अली खां, खुदा बख्श खां, रज्जब अली तथा सितार- वादक अमृत सेंन थे।
उदयपुर निवासी पं. उदयशंकर प्रख्यात कत्थक तथा बेले नृतक थे।
प्रसिद्ध सितार वादक पं. रवि शंकर पं. उदयशंकर के छोटे भाई है।
ग्रेमी पुरस्कार विजेता (संगीत के क्षेत्र का सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार)
प्रसिद्ध सितार वादक पं. विश्वमोहन भट्ट जयपुर निवासी है।
इन्होने 14 तार युक्त मोहन वीणा नामक वाद्य यंत्र का निर्माण किया जो वीणा, सितार तथा सरोद का मिश्रण है। इन्होने "गोरीम्मा" नामक नया राग विकसित किया।
"ए मिटिंग बाय दा रीवर" नामक एलबम के लिए सन् 1994 इन्हें ग्रेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
प्रसिद्ध सितार वादक शशि मोहन भट्ट पं. विश्वमोहन भट्ट के भाई है।
बीकानेर के महाराजा गंगासिंह ने रंगमंच को बढावा देने के लिए बीकानेर में गंगासिंह थियेटर का निर्माण करवाया।
बीकानेर के बैण्ड मास्टर विलियम जैम्स ने राजस्थानी लोक गीतों तथा उनकी धुनों का पाश्चात्य शैली अनुवाद कर "इण्डियन म्यूजिक" नामक एलबम तैयार किया ।
राजस्थानी नाटकों का जनक कन्हैया लाल पंवार माना जाता है।
नाटककार | नाटक |
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हम्मीदुला | दरींदे |
मणिमधुकर | रस गन्धर्व, खेलापालमपुर |
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