राज्य अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत बिना दोहरी गणना किए हुए एक निश्चत अवधि में उत्पादित समस्त अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं के मौद्रिक मूल्यों के योग को सकल राज्य घरेलू उत्पाद कहा जाता है।
सकल राज्य घरेलू उत्पाद अनुमानों को प्रचलित (Current) एवं स्थिर (Constant) दोनों कीमतों पर अनुमानित किया जाता है।
राजस्थान | GSDP | % में परिवर्तन |
---|---|---|
स्थिर मूल्य पर (आधार वर्ष 2011-12) | 8.45 लाख करोड़ रुपये | +8.03% |
प्रचलित मूल्य पर | 15.28 लाख करोड़ रुपये | +12.56% |
भारत | GDP | % में परिवर्तन |
---|---|---|
स्थिर मूल्य पर (आधार वर्ष 2011-12) | 173.82 लाख करोड़ रुपये | +8.2% |
प्रचलित मूल्य पर | 295.36 लाख करोड़ रुपये | +9.6% |
राजस्थान की जीडीपी भारत की जीडीपी की 5.17% है। (प्रचलित मूल्य पर)
राजस्थान की जीडीपी भारत की जीडीपी की 4.86% है। (स्थिर मूल्य पर)
सकल राज्य मूल्य वर्धन (GSVA) किसी राज्य में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के कुल मूल्य का माप है।
राजस्थान | GSVA | % में परिवर्तन |
---|---|---|
स्थिर मूल्य पर (आधार वर्ष 2011-12) | 7.81 लाख करोड़ रुपए | +6.92% |
प्रचलित मूल्य पर | 14.28 लाख करोड़ रुपये | +11.86% |
वर्ष 2023-24 में GSVA में क्षेत्रवार योगदान:
क्षेत्र | राजस्थान (स्थिर मूल्य) | राजस्थान (प्रचलित मूल्य) | भारत (प्रचलित मूल्य पर) |
---|---|---|---|
कृषि | 26.21% | 26.72% | 17.66% |
उद्योग | 29.84% | 28.21% | 27.62% |
सेवा | 43.95% | 45.07% | 54.72% |
सकल घरेलू उत्पाद समंको में से सकल स्थाई पूंजीगत उपभोग को घटाकर शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद अनुमान प्राप्त किया जाता है।
Net GDP = GDP - Depreciation (consumption of fixed capital)
सकल स्थाई पूंजी उपभोग, पूंजीगत स्कन्ध (Stock) के उस हिस्से के प्रतिस्थापन मूल्य को मापता है, जिसका उपयोग वर्ष के दौरान उत्पादन प्रक्रिया में किया जाता है।
राजस्थान | NSDP | % में परिवर्तन |
---|---|---|
स्थिर मूल्य पर (आधार वर्ष 2011-12) | 7.41 लाख करोड़ रुपये | +8.10% |
प्रचलित मूल्य पर | 13.69 लाख करोड़ रुपये | +12.70% |
प्रति व्यक्ति आय की गणना शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद को राज्य की मध्यवर्षीय कुल जनसंख्या से विभाजित कर प्राप्त की जाती है। प्रति व्यक्ति आय लोगों के जीवन स्तर एवं कल्याण का सूचक है।
राजस्थान | PCI | % में परिवर्तन |
---|---|---|
स्थिर मूल्य पर (आधार वर्ष 2011-12) | ₹90,831 | +6.94% |
प्रचलित मूल्य पर | ₹1,67,964 | +11.49% |
भारत | PCI | % में परिवर्तन |
---|---|---|
स्थिर मूल्य पर (आधार वर्ष 2011-12) | ₹1,06,744 | +7.38% |
प्रचलित मूल्य पर | ₹1,84,205 | +8.68% |
सकल स्थाई पूंजी निर्माण को वर्ष के दौरान उत्पादनकर्ता द्वारा सृजित की गई परिसम्पत्तियों में से निस्तारित सम्पत्तियों (Disposal assets) को घटाने के बाद तथा गणना अवधि में गैर उत्पादित परिसम्पत्तियों (non produced assets) को उत्पादन गतिविधियों में उपयोग की कीमत के आधार पर मापा जाता है।
प्रचलित कीमतों पर वर्ष 2022-23 के अन्त में कुल सम्पत्तियाँ ₹3,99,594 करोड़ अनुमानित की गई हैं, जो सकल राज्य घरेलू उत्पाद (₹13,57,851 करोड़) का 29.43% है।
वर्ष 2022-23 में सकल स्थाई पूंजी निर्माण में गत वर्ष 2021-22 की तुलना में 12.78% की वृद्धि हुई है।
उद्योग एवं वाणिज्य मंत्रालय द्वारा थोक मूल्य सूचकांक को मासिक आधार पर जारी किया जाता है। इसमें 154 वस्तुओं को सम्मिलित किया गया है, जिसमें से 75 प्राथमिक वस्तु समूह में, 69 विनिर्मित उत्पाद समूह में तथा 10 ईंधन, शक्ति, प्रकाश एवं उपस्नेहक समूह में सम्मिलित हैं।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक एक समयावधि के अन्तर्गत उन चुनिंदा वस्तुओं एवं सेवाओं के खुदरा मूल्यों के सामान्य स्तर में परिवर्तनों के मापन हेतु तैयार किया गया हैं, जिसमें उपभोक्ता द्वारा उपभोग हेतु क्रय किया जाता है। इस तरह के बदलाव उपभोक्ताओं की आय और उनके कल्याण की वास्तविक क्रय शक्ति को प्रभावित करते हैं। चूंकि यह सूचकांक प्रत्येक उपभोक्ता के लिए कीमतों में उतार-चढ़ाव को सम्मिलित करता है, इसलिए सरकार मुद्रास्फीति के लिए थोक मूल्य सूचकांक की तुलना में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर अधिक महत्व देती है।
प्रतिमाह चार विभिन्न प्रकार के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक तैयार किये जा रहे हैं -
(अ) औद्योगिक श्रमिकों हेतु (सी.पी.आई-आई.डब्ल्यू)
(ब) कृषि श्रमिकों हेतु (सी.पी.आई-ए.एल.)
(स) ग्रामीण श्रमिकों हेतु (सी.पी. आई-आर.एल.)
(द) ग्रामीण, शहरी एवं संयुक्त हेतु (सी.पी. आई-आर.यू.एण्ड सी.)।
प्रथम तीन प्रकार के सूचकांक श्रम ब्यूरो, चण्ड़ीगढ़ तथा चतुर्थ सूचकांक राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय (एन. एस.ओ.), नई दिल्ली द्वारा तैयार एवं जारी किये जाते हैं।
औद्योगिक श्रमिकों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधार वर्ष 2001=100 पर माह अगस्त, 2020 तक जारी किये गये तथा वर्तमान में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक माह सितम्बर, 2020 से आधार वर्ष 2016=100 पर जारी किये जा रहे हैं।
इसमें राजस्थान के 3 केंद्र है - जयपुर केंद्र, अलवर केंद्र, भीलवाड़ा केंद्र।
राज्य में अजमेर केन्द्र के स्थान पर अलवर केन्द्र को सम्मिलित किया गया है।
कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों में फसल, पशुधन, मत्स्य, वानिकी को शामिल किया जाता है।
राजस्थान में पहली बार अलग से कृषि बजट 2022-23 में पेश किया गया।
कृषि एवं संबद्ध क्षेत्र का सकल राज्य मूल्य वर्धन (GSVA) में योगदान:
राजस्थान | योगदान | % में परिवर्तन |
---|---|---|
स्थिर मूल्य पर (आधार वर्ष 2011-12) | 2.05 लाख करोड़ | +3.86% |
प्रचलित मूल्य पर | 3.82 लाख करोड़ | +9.99% |
प्रचलित मूल्य पर कृषि एवं संबद्ध क्षेत्र का सकल राज्य मूल्य वर्धन (GSVA) में योगदान 26.72% है।
2023-24 में कृषि में योगदान (प्रचलित मूल्यों पर):
कृषि का उपक्षेत्र | योगदान (%) |
---|---|
पशुधन | 48.58 |
फसल | 44.53 |
वानिकी एवं लॉगिंग | 6.40 |
मत्स्य | 0.49 |
भू-उपयोग 2022-23
शुद्ध बोया गया क्षेत्रफल | 53.74% |
---|---|
बंजर भूमि | 10.39% |
वानिकी | 8.09% |
ऊसर तथा कृषि अयोग्य भूमि | 6.89% |
कृषि के अतिरिक्त अन्य उपयोग भूमि | 5.92% |
प्रचालित जोत धारक :
कृषि जनगणना 2010-11 | कृषि जनगणना 2015-16 | |
---|---|---|
कुल जोतों का क्षेत्रफल | 211.36 लाख हेक्टेयर | 208.73 लाख हेक्टेयर |
कुल प्रचालित भूमि जोतों की संख्या | 68.88 लाख | 76.55 लाख |
भूमि जोतों का औसत आकार | 3.07 हेक्टेयर | 2.73 हेक्टेयर |
महिला प्रचालित जोत धारक | 5.46 लाख | 7.75 लाख (76.55 में से) |
कुल जोतों के क्षेत्रफल में कमी : 1.24%
महिला प्रचालित जोत धारक में वृद्धि : 41.94%
राज्य में वर्ष 2023-24 में अग्रिम अनुमान के अनुसार खाद्यान्न का कुल उत्पादन 245.01 लाख मैट्रिक टन (89.83 खरीफ + 155.18 रबी) होने की सम्भावना है, जो कि गत वर्ष के 252.80 लाख मैट्रिक टन की तुलना में 3.08 प्रतिशत कम है।
वर्ष 2021-22 में राजस्थान देश में बाजरा, सरसों, कुल तिलहन एवं ग्वार फसलों के उत्पादन में प्रथम स्थान, पोषक अनाज एवं मूंगफली के उत्पादन में द्वितीय स्थान एवं चना, कुल दलहन, ज्वार व सोयाबीन के उत्पादन में तृतीय स्थान पर रहा है।
राज्य को जलवायु के आधार पर 10 कृषि जलवायु क्षेत्रों में विभाजित किया गया है, जिनमें बोई जाने वाली मुख्य फसलों का विवरण है:
क्र. स. | जलवायु क्षेत्र | सम्मिलित जिले | मुख्य फसलें | |
---|---|---|---|---|
खरीफ | रबी | |||
1 | शुष्क पश्चिमी मैदानी क्षेत्र (I-A) | जोधपुर, जोधपुर ग्रामीण, फलौदी, बाड़मेर एवं बालोतरा | बाजरा, मोठ एवं तिल | गेहूं, सरसों एवं जीरा |
2 | उत्तरी पश्चिमी सिंचित मैदानी क्षेत्र (I-B) | श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ एवं अनूपगढ़ | कपास एवं ग्वार | गेहूं, सरसों एवं चना |
3 | अति शुष्क आंशिक सिंचित पश्चिमी मैदानी क्षेत्र (I-C) | बीकानेर, जैसलमेर एवं चुरू | बाजरा, मोठ एवं ग्वार | गेहूं, सरसों एवं चना |
4 | अन्तः स्थलीय जलोत्सरण के अन्तवर्ती मैदानी क्षेत्र (II-A) | सीकर, नीम का थाना, चुरू, झुन्झुनू, नागौर, डीडवाना एवं कुचामन | बाजरा, ग्वार एवं दलहन | सरसों एवं चना |
5 | लूनी नदी का अन्तवर्ती मैदानी क्षेत्र (II-B) | जालोर, सांचौर, सिरोही , पाली, ब्यावर | बाजरा, ग्वार एवं तिल | गेहूं एवं सरसों |
6 | अर्द्ध शुष्क पूर्वी मैदानी क्षेत्र (III-A) | अजमेर, ब्यावर, जयपुर, जयपुर ग्रामीण, दौसा, टोंक, दूदू, केकड़ी, खैरथल, तिजारा, कोटपूतली, बहरोड़ | बाजरा, ग्वार एवं ज्वार | गेहूं, सरसों एवं चना |
7 | बाढ सम्भाव्य पूर्वी मैदानी क्षेत्र (III-B) | अलवर, डीग, भरतपुर, धौलपुर, करौली, गंगापुर सिटी एवं सवाईमाधोपुर | बाजरा, ग्वार एवं मूंगफली | गेहूं, जौ, सरसों एवं चना |
8 | अर्द्ध आर्द्र दक्षिणी मैदानी क्षेत्र (IV-A) | उदयपुर, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, शाहपुरा, सिरोही | मक्का, दलहन एवं ज्वार | गेहूं एवं चना |
9 | आर्द्र दक्षिणी मैदानी क्षेत्र (IV-B) | बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़, सलूम्बर एवं चित्तौड़गढ़ | मक्का, धान, ज्वार एवं उड़द | गेहूं एवं चना |
10 | आर्द्र दक्षिणी पूर्वी मैदानी क्षेत्र (V) | कोटा, बारां, बूंदी एवं झालावाड़ | ज्वार एवं सोयाबीन | गेहूं एवं सरसों |
मुख्यमंत्री बीज स्वावलंबन योजना (2017)
इस योजना का प्रमुख उद्देश्य कृषकों द्वारा स्वयं के खेतों में अच्छी किस्म के बीज उत्पादन को बढ़ावा देना है। प्रारम्भ में इस योजना का क्रियान्वयन राज्य के तीन कृषि जलवायुविक खण्डों यथा- कोटा, भीलवाड़ा तथा उदयपुर में किया गया। वर्ष 2018-19 से योजना राज्य के समस्त 10 कृषि जलवायुविक खण्डों में क्रियान्वित की जा रही है। इस योजनान्तर्गत गेहूं, जौ, चना, ज्वार, सोयाबीन, सरसों, मूंग, मोठ मूंगफली एवं उड़द की 10 वर्ष से कम अवधि तक की पुरानी किस्मों के बीज उत्पादन को शामिल किया गया है।
कृषि शिक्षा में अध्ययनरत् छात्राओं को प्रोत्साहन राशि
लड़कियों को औपचारिक रूप से कृषि का अध्ययन करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। राज्य सरकार द्वारा उच्च माध्यमिक (कृषि) के लिए प्रति वर्ष ₹15,000 प्रति छात्रा, स्नातक (कृषि) एवं स्नातकोत्तर (कृषि) के लिए प्रति वर्ष ₹25,000 प्रति छात्रा और पीएचडी के लिए प्रति वर्ष ₹40,000 प्रति छात्रा को प्रोत्साहन राशि प्रदान की जा रही है।
कृषि प्रदर्शन
“देखकर विश्वास करने” के कृषि के सिद्धान्त पर कृषि तकनीक को प्रसारित करने हेतु कृषकों के खेतों पर फसल प्रदर्शन आयोजित किये जा रहे हैं।
बीज मिनिकिट
कृषकों के मध्य विभिन्न फसलों की नवीन किस्मों को लोकप्रिय करने के लिए महिला कृषकों को निःशुल्क बीज मिनिकिट उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
सूक्ष्म पोषक तत्व मिनिकिट
फसल उत्पादन बढ़ाने के लिये सूक्ष्म पोषक तत्वों के उपयोग को बढ़ाने के लिए मृदा स्वास्थ्य कार्ड/पी.ओ.पी. की अनुशंषा पर किसानों को 90 प्रतिशत अनुदान पर सूक्ष्म पोषक तत्व मिनिकिट उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
तारबन्दी द्वारा फसल सुरक्षा हेतु अनुदान
कृषकों द्वारा बोई गई फसलों में नीलगाय, जंगली जानवरों व निराश्रित पशुओं से वृहत स्तर पर नुकसान को रोकने/कम करने हेतु वर्ष 2017-18 से राष्ट्रीय तिलहन मिशन एवं पाम ऑयल मिशन के फलेक्सी फण्ड के तहत तारबन्दी कार्यक्रम चालू किया गया है। वर्ष 2022-23 से इस कार्यक्रम को दो वर्षों के लिए ‘राजस्थान फसल सुरक्षा मिशन’ के तहत लिया गया है। इस कार्यक्रम को 2023-24 से सामुदायिक आधार के रूप में भी लिया गया है।
इस कार्यक्रम के अन्तर्गत छोटे सीमांत किसानों को इकाई लागत का 50 प्रतिशत या ₹100 प्रति मीटर या ₹40,000 (जो भी कम हो) अनुदान, सीमांत किसानों को इकाई लागत का 60 प्रतिशत या ₹120 प्रति मीटर या ₹48,000 प्रति किसान (जो भी कम हो) अनुदान, कम से कम 10 किसानों का समूह जिनके पास कम से कम 5 हैक्टेयर भूमि हो को इकाई लागत का 70 प्रतिशत या ₹140 प्रति मीटर या ₹56,000 प्रति किसान (जो भी कम हो) को 400 रनिंग मीटर तक अनुदान प्रत्यक्ष लाभ हस्तान्तरण (डी.बी.टी.) के माध्यम से इनके खाते में ट्रांसफर किया जाता है।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एन.एफ.एस.एम.)
2007-08 से गेहूं एवं दलहन पर शुरू
केन्द्रांश एवं राज्यांश का वित्त पोषण पैटर्न का अनुपात 60:40
उद्देश्य : प्रमाणित बीज का वितरण एवं उत्पादन, उत्पादन तकनीक में सुधार, जैव उर्वरकों को बढ़ावा देना, सूक्ष्म तत्वों का प्रयोग, समन्वित कीट प्रबंधन, कृषक प्रशिक्षण।
एन.एफ.एस.एम. न्यूट्रिसीरियल मिशन
2018-19 से शुरू
उद्देश्य : प्रमाणित बीज का वितरण एवं उत्पादन, उत्पादन तकनीक में सुधार का प्रदर्शन, जैव उर्वरकों को बढ़ावा देना, सूक्ष्म तत्वों का प्रयोग, समन्वित कीट प्रबन्धन और फसल प्रदर्शन पर किसानों को प्रशिक्षण
एन.एफ.एस.एम. तिलहन विशेष कार्यक्रम एवं वृक्ष जनित तिलहन (टी.बी.ओज.)
ट्री बोर्न तिलहन (टी.बी.ओज.) : जैतून, महुआ, नीम, जोजोबा, करूंजा एवं जटरोपा
केन्द्रांश एवं राज्यांश का वित्त पोषण पैटर्न का अनुपात 60:40
उद्देश्य : आधारभूत एवं प्रमाणित बीज का उत्पादन, विशेष कार्यक्रम के अन्तर्गत प्रमाणित बीज का वितरण व फसल प्रदर्शन, समन्वित जीवनाशी प्रबन्धन, पौध संरक्षण रसायन, पौध संरक्षण उपकरण वितरण, जैव उर्वरक, जिप्सम, जल संवहन के लिए पाइप लाइन, कृषक प्रशिक्षण, कृषि उपकरण, तारबंदी, बीज मिनी किट वितरण तथा बीज आधारभूत विकास।
राष्ट्रीय कृषि विस्तार एवं तकनीकी मिशन
इस मिशन का उद्देश्य कृषकों की सक्रिय भागीदारी के साथ 'रणनीतिक अनुसंधान और विस्तार योजना' बनाना और संसाधनों के आवंटन में ब्लॉक स्तर पर सभी हितधारकों के बीच कार्यक्रम समन्वय और एकीकरण को बढ़ाना है ताकि कृषि प्रणालियों में नवाचार को बढ़ावा दिया जा सके।
“राष्ट्रीय कृषि विस्तार एवं तकनीकी मिशन” के अन्तर्गत 3 उप-मिशन सम्मिलित किए गए हैं -
राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन (एन.एम.एस.ए.)
पूर्व में संचालित योजनाओं- राष्ट्रीय सूक्ष्म सिंचाई मिशन, राष्ट्रीय जैविक खती परियोजना, राष्ट्रीय मृदा स्वास्थ्य एवं उर्वरता प्रबन्ध परियोजना तथा वर्षा आधारित क्षेत्र विकास कार्यक्रम, जलवायु परिवर्तन को सम्मिलित करते हुए पुनर्गठन कर एक नया कार्यक्रम राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन क्रियान्वित किया जा रहा है। केन्द्रांश एवं राज्यांश का वित्त पोषण पैटर्न का अनुपात 60:40 है। राष्ट्रीय टिकाऊ खेती मिशन के अन्तर्गत 3 सब-मिशन सम्मिलित किए गए हैं :
परम्परागत कृषि विकास योजना (पी.के.वी.वाई.)
जैविक खेती में पर्यावरण अनुकूल न्यूनतम लागत तकनीकों के प्रयोग से रसायनों एवं कीटनाशकों का प्रयोग कम करते हुए कृषि उत्पादन किया जाता है। परम्परागत कृषि विकास योजना के अन्तर्गत क्लस्टर एवं पी.जी.एस. प्रमाणन के माध्यम से जैविक खेती को प्रोत्साहित किया जाता है।
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आर.के.वी.वाई.)
कृषि और सम्बद्ध क्षेत्रों में निवेश में लगातार कमी को देखते हुए केन्द्र सरकार ने वर्ष 2007-08 के दौरान कृषि जलवायु, प्राकृतिक संसाधन के मुद्दों और प्रौद्योगिकी को दृष्टिगत रखते हुए कृषि क्षेत्र की योजनाओं को अधिक व्यापक रूप से तैयार करने के लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना की शुरुआत की।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पी.एम.एफ.बी.वाई.)
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना खरीफ, 2016 से प्रारम्भ की गई है। इस योजना में खाद्यान्न फसलों (अनाज, मोटा अनाज और दालें), तिलहन और वाणिज्यिक/बागवानी फसलों को शामिल किया गया है। कृषक से प्रीमियम राशि के अन्तर्गत खरीफ फसल में 2 प्रतिशत, रबी में 1.5 प्रतिशत एवं वाणिज्यिक/बागवानी फसलों के लिए 5 प्रतिशत लेकर फसल का बीमा किया जा रहा है। भारत सरकार द्वारा जारी संशोधित निर्देशानुसार खरीफ 2020 से असिंचित क्षेत्रों के लिये 30 प्रतिशत एवं सिंचित क्षेत्रों के लिये 25 प्रतिशत की अधिकतम प्रीमियम पर अनुदान भारत सरकार द्वारा वहन किया जायेगा। फसल कटाई प्रयोग करने वाले प्राथमिक कार्मिकों को प्रीमियम अनुदान एवं प्रोत्साहन राशि के भुगतान हेतु राज्य निधि योजना चल रही है।
राजस्थान में उद्यानिकी विकास की विपुल सम्भावनाएं हैं।
राष्ट्रीय बागवानी मिशन (एन.एच.एम.)
राज्य के 24 जिलों ( जयपुर, अजमेर, अलवर, चित्तौड़गढ़, कोटा, बारां, झालावाड़, जोधपुर, पाली, जालोर, बाड़मेर, नागौर, बांसवाड़ा, टोंक, करौली, सवाई माधोपुर, उदयपुर, डूंगरपुर, भीलवाड़ा, बून्दी, झुन्झुनू, सिरोही, जैसलमेर एवं श्रीगंगानगर) में उद्यानिकी फसलों के क्षेत्रफल, उत्पादन व उत्पादकता में वृद्धि हेतु संचालित।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना-सूक्ष्म सिंचाई (पी.एम.के.एस.वाई .- एम.आई.)
पानी को बचाने के साथ फसल उत्पादकता एवं गुणवत्ता बढ़ाने के लिए लघु सिंचाई पद्धति में ड्रिप एवं फव्वारा सिंचाई पद्धति, प्रभावी जल प्रबन्धन की व्यवस्था है। इसमें सभी श्रेणी के कृषकों के लिए केन्द्र एवं राज्य सरकार का अनुपात 60:40 है।
सौर ऊर्जा आधारित पम्प परियोजना (प्रधानमंत्री ‘कुसुम’ योजना कम्पोनेंट ‘बी’)
वर्ष 2019-20 से भारत सरकार के नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा पी.एम. कुसुम (प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महा-अभियान) कम्पोनेन्ट-बी स्टैण्ड अलोन सौर ऊर्जा पम्प संयंत्र योजना क्रियान्वित की जा रही है। जिसमें 3 एचपी से 10 एचपी क्षमता तक के सौर ऊर्जा पम्प संयंत्रों की स्थापना के प्रावधान के साथ अधिकतम 7.5 एचपी क्षमता तक के पम्प हेतु अनुदान देय है।
इस योजनान्तर्गत कुल 60 प्रतिशत (केन्द्रांश 30 प्रतिशत, राज्यांश 30 प्रतिशत) अनुदान देय है। इस योजनान्तर्गत कृषक हिस्सा राशि 40 प्रतिशत है। कृषक 30 प्रतिशत तक बैंक से ऋण प्राप्त कर सकता है तथा शेष 10 प्रतिशत कृषक द्वारा देय होगा।
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आर.के.वी.वाई.)
राष्ट्रीय उद्यानिकी मिशन से वंचित जिलों में
उद्देश्य : उद्यानिकी विकास कार्यक्रम, शहरी क्षेत्रों में वेजिटेबल क्लस्टर, झालावाड़, धौलपुर, टोंक, बूंदी, चित्तौड़गढ़ एवं सवाई माधोपुर में उत्कृष्टता केन्द्र की स्थापना, उत्कृष्टता केन्द्र बस्सी (जयपुर) व नान्ता (कोटा) का सुदृढ़ीकरण, संरक्षित खेती को प्रोत्साहन एवं नर्सरियों के विकास आदि
केंद्र : राज्य (60:40)
कृषि विपणन निदेशालय (1974)
राज्य में ‘मण्डी नियामक एवं प्रबंधन’ को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए कार्य कर रहा है।
किसान कलेवा योजना (2014)
मंडी में उपज बेचने आने वाले किसानों को अनुदानित दर पर भोजन उपलब्ध कराने हेतु शुरु। (फूल और सब्जी मंडी को छोड़कर)
राजीव गांधी कृषक साथी सहायता योजना (2009)
कृषि विपणन सहित कृषि कार्य के दौरान दुर्घटनावश अंग भंग होने अथवा मृत्यु होने पर किसानों व मजदूरों को 2 लाख रुपये तक की वित्तीय सहायता उपलब्ध करवायी जाती है।
महात्मा ज्योतिबा फूले मण्डी श्रमिक कल्याण योजना-2015
कृषक उपहार योजना
ई-नाम के माध्यम से अपनी उपज बेचने वाले सभी व्यक्तियों को कवर करने के लिए ई-नाम पोर्टल पर 1 जनवरी 2022 से यह योजना शुरू की गई है। ₹10 हजार (या इसके गुणक) की बिक्री पर एक कूपन जारी किया जाता है।कृषि विपणन बोर्ड
राज्य में एक व्यापक नीति “राजस्थान कृषि प्रसंस्करण, कृषि व्यवसाय एवं कृषि निर्यात प्रोत्साहन नीति-2019” दिनांक 12 दिसंबर 2019 से प्रारम्भ की गई है।
इस नीति की मुख्य विशेषताएं निम्न प्रकार है:
वित्तीय प्रावधानः
कृषक कल्याण कोष (K3):
किसानों को व्यापार व खेती करने में आसानी के लिए प्रमुख पहल करते हुए ₹1,000 करोड़ की राशि से दिनांक 16 दिसम्बर, 2019 को ‘कृषक कल्याण कोष’ का गठन किया गया है।
वर्तमान में इस कोष की राशि ₹7,500 करोड़ है।
प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्योग उन्नयन योजना (पी.एम .- एफ.एम.ई.)
पी.एम .- एफ.एम.ई. योजना को भारत सरकार के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय द्वारा देश में असंगठित खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के उन्नयन के लिए शुरू किया गया है।
राजस्थान राज्य कृषि विपणन बोर्ड को राज्य में इस योजना को लागू करने के लिए नोडल एजेंसी के रूप में नामित किया गया है।
केन्द्रीयांश एवं राज्यांश का अनुपात 60:40 है। इस योजना में पांच साल की कार्यावधि वर्ष 2020-21 से 2024-25 तक है।
राजस्थान में देश के कुल सतही जल (Surface water) का 1.16% जबकि कुल भूजल (Ground water) का 1.69% उपलब्ध है।
राज्य के 39.36 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सतही जल परियोजनाओं से सिंचाई सुविधा उपलब्ध करवाई गई है।
वर्ष 2023-24 में 8 वृहद्, नर्मदा नहर परियोजना (जालोर एवं बाड़मेर), परवन (झालावाड़), धौलपुर लिफ्ट, मरूस्थल क्षेत्र के लिए जल पुर्नगठन परियोजना, नवनेरा बाँध (कोटा), अपर हाई लेवल केनाल परियोजना, पीपलखूंट, कालीतीर लिफ्ट 5 मध्यम परियोजनाएं (गरड़दा (बूँदी), ताकली (कोटा), गागरिन (झालावाड़), ल्हासी एवं हथियादेह (बारां)) तथा 41 लघु सिंचाई परियोजनाओं का कार्य प्रगति पर है।
परवन वृहद् परियोजना
‘परवन’ वृहद बहुउद्देश्यीय सिंचाई परियोजना झालावाड़ के निकट परवन नदी पर निर्माणाधीन है। परियोजना के अर्न्तगत 1,821 गांवों में पेयजल उपलब्ध करवाने के साथ-साथ झालावाड़, बारां एवं कोटा जिले के 637 गांवों की 2,01,400 हैक्टेयर में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराई गई है।
नर्मदा नहर परियोजना
भारत में पहली बडी सिंचाई परियोजना है जिसमें जालोर एवं बाडमेर जिलों के 233 गाँवों में 2.46 लाख हैक्टेयर के पूरे कमांड क्षेत्र में स्प्रिंकलर (फव्वारा) सिंचाई प्रणाली अनिवार्य रखी गयी है।
नवनेरा बांध (कोटा)
यह परियोजना पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ERCP) का अभिन्न हिस्सा है।
कालीतीर लिफ्ट
यह परियोजना पार्वती एवं रामसागर बांध से धौलपुर जिले के 483 गांवों और 3 कस्बों के लिए पीएचईडी की पेयजल मांग को मुख्य रूप से पूरा करने के लिए तैयार की गई है। इस योजना में 98.60 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी केवल मानसून अवधि के दौरान प्रतिवर्ष चम्बल नदी से उठाया जाएगा।
अपर हाई लेवल केनाल परियोजना (माही)
परियोजना अन्तर्गत आदिवासी अंचल के विकास से संबंधित बांसवाड़ा, कुशलगढ़ एवं बागीदौरा विधानसभा क्षेत्र के 338 गांवों के 41 हजार 903 हैक्टेयर क्षेत्र में माही परियोजना के सेडल बांध नं. 1 से लगभग 105 कि.मी. मुख्य नहर व वितरण प्रणाली द्वारा जल उपलब्ध करवाकर, माइक्रो सिंचाई पद्धति से सिंचाई सुविधा का सृजन किया जाना है।
पीपलखूंट हाई लेवल केनाल परियोजना
परियोजना में प्रतापगढ़ जिले की पीपलखूंट तहसील के 16 गाँवो की 5,000 हैक्टेयर अनकमाण्ड क्षेत्र में फव्वारा पद्धति से सिंचाई सुविधा उपलब्ध करवाने के साथ माही बांध के दायें छोर से 3.72 टी.एम.सी जल जाखम बांध में परिवर्तित किया जाना है।
राजस्थान जल क्षेत्र आजीविका सुधार परियोजना (आर.डब्ल्यू.एस.एल.आई.पी.)
राजस्थान जल क्षेत्र आजीविका सुधार परियोजना, जापान इन्टरनेशनल कॉपरेशन एजेंसी (जायका) द्वारा वित्त पोषित है।
परियोजना की अवधि 11 वर्ष है। जायका इस परियोजना को दो चरणों में वित्त पोषित करेगा। परियोजना के तहत 27 जिलों में 137 सिंचाई परियोजनाओं के पुनर्वास एवं जीर्णोद्वार का कार्य किया जाना है। 137 उप-परियोजनाओं को तीन चरणो में क्रियान्वित किया जायेगा।
राजस्थान के मरू क्षेत्र हेतु जल पुनर्गठन परियोजना (आर.डबल्यू.एस.आर.पी.डी.)
इन्दिरा गांधी नहर परियोजना के प्रथम चरण के पुनर्वास और पुनर्गठन के लिए 70 प्रतिशत न्यू डवलपमेंट बैंक द्वारा ऋण के माध्यम से और शेष राज्य के स्वयं के आय स्त्रोतों से वित्त पोषित किया गया है। इसका लाभ श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, चूरू, नागौर, बीकानेर, झुन्झुनू, सीकर, जोधपुर, जैसलमेर और बाड़मेर जिलों को मिलेगा। इस परियोजना की कुल लागत ₹3,291.63 करोड़ एवं समयावधि 7 वर्ष है।
राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना
यह परियोजना जल संसाधन मंत्रालय, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग, भारत सरकार (विश्व बैंक परियोजना) द्वारा वित्त पोषित है। परियोजना की कुल लागत ₹134.00 करोड़ (भारत सरकार से 100 प्रतिशत अनुदान) और समयावधि 8 वर्ष (2016 से सितम्बर, 2025) है।
राज्य में 7 बांधों यथा बीसलपुर, माही, गुढ़ा, जवाई, राणा प्रताप सागर, जवाहर सागर बांध, छापी तथा 2 नहरों गंग-भांखड़ा नहर प्रणाली एवं नर्मदा नहर प्रणाली पर स्काडा सिस्टम (सुपरवाइजरी कंट्रोल एण्ड डेटा एक्जिविशन) स्थापित किया जा चुका है। सर्वप्रथम बीसलपुर बांध में स्काडा सिस्टम लगाया गया।
उद्देश्य : सूखा प्रबंधन, जल उपयोग दक्षता में सुधार
बांध पुनर्वास और सुधार परियोजना (डी.आर.आई.पी.)
राज्य के बड़े बांधों की बहाली और पुनर्वास के लिए विश्व बैंक द्वारा सहायता प्राप्त बांध पुनर्वास एवं सुधार परियोजना (डी.आर.आई.पी.) के अन्तर्गत राज्य के 212 वृहद बांधों में से 189 बांधों को द्वितीय एवं तृतीय चरण में सम्मिलित किया गया है जिसकी समयावधि 10 वर्ष होगी। प्रत्येक चरण 6 वर्ष का होगा जिसमें 2 वर्ष की ओवरलेपिंग अवधि है।
संशोधित पार्वती-कालीसिंध-चम्बल (एम.पी.के.सी.) लिंक परियोजना (एकीकृत ई.आर.सी.पी.)
भारत सरकार ने जल संसाधनों के इष्टतम उपयोग के लिए पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना के एकीकरण सहित चम्बल बेसिन की नदियों को आपस में जोड़ने की एक योजना विकसित की है। संशोधित पार्वती-कालीसिंध-चम्बल लिंक परियोजना देश में नदियों को जोड़ने की राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (एन.पी.पी.) का हिस्सा होगा। दिनांक 28 जनवरी 2024 को भारत सरकार, राजस्थान और मध्य प्रदेश सरकार के बीच संशोधित एम.पी.के. सी. लिंक परियोजना की डीपीआर तैयार करने के लिए समझौता पत्र पर हस्ताक्षर किए गए।
राजस्थान राज्य हेतु पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना में सम्मिलित रामगढ़ बैराज, पार्वती नदी पर महलपुर बैराज, कालीसिंध नदी पर नवनैरा बैराज, मेज नदी पर मेज बैराज, बनास नदी पर राठौड़ बैराज, बनास नदी पर डूंगरी बांध, फीडर तंत्र, ईसरदा बांध एवं 26 मौजूदा टैंक का नवीनीकरण तथा ईआरसीपी के विभिन्न संरक्षण बिन्दुओ के साथ एकीकरण प्रस्तावित है। इस व्यापक परियोजना का लक्ष्य पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों (नव गठित 21 जिलों) में पेयजल, औद्योगिक जल तथा 2.80 लाख हैक्टेयर या उससे अधिक क्षेत्र में सिंचाई प्रदान करने एवं रास्ते के बांधों में पानी भरे जाने का प्रावधान सम्मिलित है।
रिपेयर-रिनोवेशन-रिस्टोरेशन परियोजना (आर. आर. आर. परियोजना)
सिंचाई जल संरचनाओं की मरम्मत व सुधार हेतु भारत सरकार द्वारा राज्य सरकार के सहयोग से जनवरी, 2005 में रिपेयर-रिनोवेशन-रिस्टोरेशन परियोजना प्रारम्भ की गई। इस योजना को वर्ष 2017-18 में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना-'हर खेत को पानी' में सम्मिलित किया गया। परियोजना पर केन्द्रीय एवं राज्य राशि अनुपात क्रमशः 60:40 का है।
उपनिवेशन विभाग
इस विभाग का मुख्य कार्य इंदिरा गांधी नहर परियोजना में भूमि क्षेत्र में भूमि आवंटित करना है।
इंदिरा गांधी नहर परियोजना (IGNP) का लक्ष्य 16.17 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा उपलब्ध करवाना है।
भू-जल
राज्य में भू-जल उपलब्धता के अनुसार विभिन्न श्रेणीयों में वर्गीकृत ब्लॉकों का विवरण निम्न प्रकार है।
क्र. सं. | वर्गीकरण | वर्ष 2022 | वर्ष 2023 |
---|---|---|---|
1 | सुरक्षित | 38 | 38 |
2 | अर्द्ध विषम | 20 | 22 |
3 | विषम | 22 | 23 |
4 | अति दोहित | 219 | 216 |
5 | लवणीय | 3 | 3 |
कुल | 302 | 302 |
अटल भू-जल योजना
यह योजना भारत सरकार एवं विश्व बैंक के सहयोग से (50:50) देश के 7 राज्यों में भू-जल के गिरते स्तर को रोकने, भू-जल के बेहतर प्रबन्धन हेतु 1 अप्रेल 2020 से लागू की गई।
राजस्थान के 16 जिलें शामिल हैं।
यह योजना पांच वर्षों 2020-24 से वर्ष 2024-25 तक के लिये है।
मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान 2.0
राज्य की प्रत्येक पंचायत समिति में 5,000 से 8,000 हैक्टेयर क्षेत्रफल का चरणवार चयन कर 20,000 ग्रामों में जल संग्रहण एवं संरक्षण इत्यादि कार्य करवाये जायेंगे। प्रथम चरण अन्तर्गत राज्य के सभी जिलों की 349 पंचायत समितियों में चयनित 5,135 गांवों में लगभग 1.50 लाख कार्य ₹3,500 करोड़ की लागत से अभिसरण के माध्यम से कराये जायेंगे।
राजस्थान पशु सम्पदा में समृद्ध राज्य है। देश के सर्वोत्तम नस्ल के गौवंश, भेड़ व ऊँट राज्य में हैं। राज्य में शुष्क क्षेत्र में दूध देने वाली उन्नत नस्ल (राठी, गीर, साहीवाल तथा थारपारकर), दूध व खेती दोनों कार्य के लिए कांकरेज व हरियाणा नस्ल के गौवंश तथा नागौरी व मालवी की संकर नस्ल प्रचुर मात्रा में हैं।
पशु गणना-2019 के अनुसार, राज्य में कुल 568.01 लाख पशुधन एवं 146.23 लाख कुक्कुट हैं। देश के कुल पशुधन का 10.60 प्रतिशत राजस्थान में उपलब्ध है। यहाँ देश का 7.24 प्रतिशत गौवंश, 12.47 प्रतिशत भैंस, 14.00 प्रतिशत बकरियां, 10.64 प्रतिशत भेड़ तथा 84.43 प्रतिशत ऊँट उपलब्ध है। राष्ट्रीय उत्पादन में वर्ष 2020-21 में राज्य का योगदान दूध उत्पादन में 14.63 प्रतिशत एवं ऊन उत्पादन में 42.45 प्रतिशत है।
13 मार्च 2014 को गोपालन विभाग की स्थापना की गई।
पशुमित्र योजना
पशुपालकों को डोर स्टेप पर पशुपालन विभाग की विभिन्न सुविधाओं यथा टैगिंग, टीकाकरण, बीमा, पशुओं की नस्ल सुधार के लिए कृत्रिम गर्भाधान, गर्भ परीक्षण आदि से लाभान्वित करवाने के उद्देश्य से प्रदेश में “पशुमित्र योजना” प्रारंभ की गई है। इस हेतु प्रदेश में 5,000 बेरोजगार युवा प्रशिक्षित पशुधन सहायक/पशु चिकित्सकों को कार्य निष्पादन अनुसार निर्धारित मानदेय का परिलाभ दिया जायेगा।
कामधेनु बीमा योजना
पशुपालकों को दुधारू गौ/भैंसवंशीय पशुधन की अकाल मृत्यु के कारण सम्भावित नुकसान से सुरक्षा मुहैया कराये जाने की दृष्टि से प्रत्येक परिवार हेतु दो-दो दुधारू गौ/भैंसवंशीय पशुओं का अधिकतम ₹40,000 तक प्रति पशु बीमा निःशुल्क किया जा रहा है।
नंदी गौशाला जन सहभागिता योजना
निराश्रित नर गौवंश की समस्या के समाधान हेतु 2018-19 से नंदी गौशाला जन सहभागिता योजना संचालित है।
सरकार एवं जनता की भागीदारी - 90:10
50 लाख प्रति गौशाला सहायता दी जाएगी।
गौशाला/पशुआश्रय स्थल योजना
निराश्रित नर गौवंश की समस्या के समाधान हेतु गौशाला/पशुआश्रय स्थल योजना संचालित है। राज्य की पंजीकृत गौशालाओं जिसमें कम से कम 100 मवेशी हो, में बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए अधिकतम ₹10.00 लाख की सहायता दिए जाने का प्रावधान है।
राजस्थान में डेयरी विकास कार्यक्रम, सहकारी समितियों के माध्यम से क्रियान्वित किया जा रहा है। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत वर्ष 2023-24 में 18,781 दुग्ध सहकारी समितियों को सम्पूर्ण राज्य में संचालित 24 जिला दुग्ध उत्पादक सहकारी संघों एवं राज्य स्तर पर एक शीर्षस्थ संस्थान, राजस्थान सहकारी डेयरी फैडरेशन (आर.सी.डी.एफ.) लिमिटेड, जयपुर से सम्बद्ध किया गया है।
राज सरस सुरक्षा कवच बीमा योजना (अष्टम चरण):
व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना 1 फरवरी, 2024 से लागू की गई है। इस योजना में दुग्ध उत्पादक की दुर्घटना में मृत्यु/ पूर्ण स्थायी विकलांगता पर ₹5.00 लाख एवं आंशिक स्थायी विकलांगता होने पर ₹2.50 लाख की बीमा राशि देय है।
सरस सामूहिक आरोग्य बीमा
जिला दुग्ध उत्पादक सहकारी संघों द्वारा सरस सामूहिक आरोग्य बीमा का 16 वां चरण दिनांक 29 नवम्बर, 2023 से प्रारम्भ किया गया है।
मुख्यमंत्री दुग्ध उत्पादक सम्बल योजना
इस योजनान्तर्गत वर्ष 2022-23 में दुग्ध उत्पादकों को ₹2 प्रति लीटर से ₹5 प्रति लीटर की दर से अनुदान राशि जारी की जा चुकी है।
राज्य में 2023-24 में मत्स्य उत्पादन 91,349 मैट्रिक टन हुआ हैं।
मत्स्य विभाग द्वारा आदिवासी मछुआरों के उत्थान हेतु महत्वाकांक्षी योजना ‘आजीविका मॉडल’, जो शून्य राजस्व मॉडल है, राज्य के तीन जलाशयों जयसमन्द (सलूम्बर), माही बजाज सागर (बांसवाड़ा) एवं कडाना बैक वाटर (डूंगरपुर) में प्रारम्भ की गई है। इस नए मॉडल के अनुसार लिफ्ट अनुबन्ध सबसे अधिक बोलीदाता को दिया गया है। आदिवासी मछुआरों को मछली पकड़ने की सम्पूर्ण कीमत स्थानान्तरित करने एवं मछली पकड़ने की दर देश में सर्वाधिक होना एक महत्वपूर्ण स्थिति है।
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVy)
योजना के तहत मत्स्य प्रसंस्करण से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए रामसागर (धौलपुर), बीसलपुर (टोंक), राणा प्रताप सागर (रावतभाटा), जवाई बांध (पाली) एवं जयसमंद (सलूंबर) बांधों से मत्स्य लैंडिंग केंद्र स्थापित किये गये है।
प्रधानमन्त्री मत्स्य सम्पदा योजना
मत्स्य, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा पूर्व में संचालित नीली क्रान्ति योजना के सभी आयामों को समाहित करते हुए प्रधानमन्त्री मत्स्य सम्पदा योजना (पी.एम.एम.एस. वाई.) वर्ष 2020-21 से संचालित की जा रही है।
राज्य में कुल घोषित वन क्षेत्र 32,921.00 वर्ग किमी है जो कि राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का 9.61 प्रतिशत है। राज्य में वन आच्छादित क्षेत्र 4.87 प्रतिशत है जो कि वन क्षेत्र तथा उसके बाहर अवस्थित है।
भारतीय वन सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार 2019-21 में राज्य के वनाच्छादित क्षेत्र में 25.45 वर्ग किमी की वृद्धि हुई।
राज्य में ईको-टूरिज़्म की विपुल सम्भावनाएं मौजूद हैं। राज्य में 3 राष्ट्रीय उद्यान, 27 वन्यजीव अभ्यारण्य, 5 टाइगर रिजर्व एवं 36 संरक्षित क्षेत्र हैं, इसके अलावा 4 बॉयोलोजिकल पार्क भी जयपुर, उदयपुर, कोटा एवं जोधपुर में विकसित किए गए हैं।
ट्री आउटसाइड फॉरेस्ट राजस्थान (TOFR) योजना
राजस्थान ग्रीनिंग और रिवाईल्डिंग मिशन के तहत वनस्पति आवरण को बढ़ाने और वन क्षेत्रों के बाहर हरियाली बढ़ाने के लिए वर्ष 2023-24 में ट्री आउटसाइड फॉरेस्ट राजस्थान (टी.ओ.एफ. आर.) नाम से नवीन योजना संचालित की जा रही है। जिसके तहत प्रदेश में विभिन्न विभागों, संस्थाओं और नागरिकों के सहयोग से प्रतिवर्ष 5 करोड़ पौधे लगाने का लक्ष्य रखा गया है।
नगर वन
भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा प्रायोजित नगर वन योजना के अन्तर्गत 200 नगर वन आगामी 5 वर्षों में पूरे देश में विकसित किये जायेंगे। इस क्रम में राज्य में वर्तमान में 14 नगर वन विकसित किये जाने का कार्य प्रगतिरत है।
विश्व वानिकी उद्यान, जयपुर की तर्ज पर जोधपुर, बीकानेर, कोटा, उदयपुर, भरतपुर व अजमेर में बोटनीकल गार्डन स्थापित किये जा रहे हैं।
लव-कुश वाटिका
राज्य में इको-टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए प्रत्येक जिले में 2 लव कुश वाटिका विकसित की जा रही है। इन वाटिकाओं में मनोरंजन गतिविधियाँ, पैदल ट्रैक, जल निकाय, पक्षियों को देखने की सुविधा, जागरूकता के साइन-बोर्ड, बेंचें इत्यादि सुविधाएँ आगंतुकों के लिए उपलब्ध होगी।
राजस्थान जैव विविधता अधिनियम - 2002
इस अधिनियम की धारा 63(1) के तहत राजस्थान जैविक विविधता नियम 2010 को अधिसूचित किया गया है।
14 सितंबर 2010 को राजस्थान राज्य जैव विविधता बोर्ड की स्थापना की गई।
ई-वेस्ट प्रबंधन
राज्य में ई-वेस्ट के प्रभावी प्रबंधन हेतु पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग ने ई-वेस्ट प्रबंधन नीति 2023 प्रकाशित की है। इस नीति की प्रभावी क्रियान्विति हेतु एक राज्य स्तरीय समिति का भी गठन किया गया है।
पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग ने राज्य जलवायु परिवर्तन नीति 2023 प्रकाशित की है।
इस विभाग द्वारा पूर्व में वर्ष 2010 में तैयार किये गये राज्य जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (एस.ए.पी.सी.सी.) को संशोधित किया गया है।
सहकारिता
वर्तमान में सहकारिता क्षेत्र में शीर्ष स्तर पर 23 संघ (फेडरेशन), 24 मिल्क यूनियन, 38 उपभोक्ता होलसेल भण्डार, 8,273 प्राथमिक कृषि ऋण दात्री सहकारी समितियां एवं 278 सामान्य क्रय विक्रय तथा फल-सब्जी क्रय विक्रय सहकारीसमितियों सहित 41,419 सहकारी समितियां प्रदेश में पंजीकृत हैं। 29 केन्द्रीय सहकारी बैंक एवं 36 प्राथमिक सहकारी भूमि विकास बैंक द्वारा कृषि ऋण एवं दीर्घकालीन ऋण सहित साख सुविधाएं उपलब्ध करा रहे हैं। राजस्थान में 41 अरबन सहकारी बैंक पंजीकृत हैं जिसमें से 30 अरबन सहकारी बैंक कार्यरत एवं 7 बैंक समापन के अधीन हैं।
राजस्थान ग्रामीण आजीविका ऋण योजना
ग्रामीण दस्तकार, अकृषि कार्यों से जीवन यापन करने वाले ग्रामीण परिवार के सदस्य, योजनान्तर्गत अन्य पात्रता मानदण्डों की पूर्ति करने वाले लघु एवं सीमांत कृषक के परिवारजनों को सहकारी बैंकों के माध्यम से ऋण उपलब्ध करवाया जाता है।
कृषि इन्फ्रास्ट्रक्वर फंड (ए.आई.एफ.)
किसानों के लिये फार्मगेट इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाने के लिए माननीय वित मंत्री, केन्द्र सरकार द्वारा 15, मई 2020 को ₹1 लाख करोड़ के कृषि इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड की घोषणा की गई थी। राज्य में सहकारिता विभाग को नोडल विभाग व रजिस्ट्रार, सहकारी समितियां को राज्य नोडल अधिकारी नियुक्त किया गया है। एआईएफ के तहत सभी ऋणों पर ₹2.00 करोड की सीमा तक प्रतिवर्ष 3 प्रतिशत का ब्याज अनुदान देय होगा।
पी.एम. किसान पोर्टल
राजस्थान सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार विभाग द्वारा किसान सम्मान निधि योजना के अन्तर्गत किसानों के पंजीकरण एवं सत्यापन हेतु किसान सेवा पोर्टल की शुरूआत की गई। इस पोर्टल का फरवरी 2019 से फरवरी 2021 तक उपयोग किया गया एवं इसके बाद भारत सरकार द्वारा पी.एम. किसान पोर्टल शुरू किया गया, जिसका उपयोग किया जा रहा है।
राज सहकार पोर्टल
सहकारिता विभाग की विभिन्न योजनाओं यथा-अल्पकालिक फसल ऋण आवेदन, न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी) आवेदन, ऑनलाइन भुगतान आदि सुविधाओं के लिए एकीकृत प्लेटफॉर्म राज सहकार पोर्टल शुरू किया गया है।
सहकारी किसान कल्याण योजना
किसानों की कृषि ऋण की आवश्यकताओं के साथ-साथ कृषि साख की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए राज्य सरकार द्वारा सहकारी किसान कल्याण योजना शुरू की गई है। इस योजना के अनुसार, केन्द्रीय सहकारी बैकों (सी.सी.बी) द्वारा कृषि से संबद्ध उद्देश्यों के लिए अधिकतम ₹10.00 लाख का ऋण प्रदान करते हैं।
कृषि उपज रहन ऋण योजना
कृषि उपज रहन के विरूद्ध कृषकों को मात्र 3 प्रतिशत की ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध करवाया जा रहा है।
सहकारी विपणन संरचना
राज्य में 278 क्रय-विक्रय तथा फल एवं सब्जी विपणन सहकारी समितियां कार्यरत हैं। ये समितियां लगभग प्रत्येक मण्डी यार्ड स्तर पर किसानों को उपज का उचित मूल्य दिलवाने, कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए उन्नत किस्म के प्रमाणित बीज, खाद, एवं कीटनाशक दवाइयां उचित मूल्य पर उपलब्ध कराने का कार्य कर रही हैं। शीर्ष संस्था के रूप में राजस्थान क्रय-विक्रय सहकारी संघ (राजफैड) कार्यरत हैं।
सहकारी उपभोक्ता संरचना
उपभोक्ताओं को कालाबाजारी और बाजार में कृत्रिम अभाव से बचाने के लिए जिला स्तर पर 38 सहकारी उपभोक्ता थोक भण्डार तथा शीर्ष संस्था के रूप में राजस्थान सहकारी उपभोक्ता संघ लिमिटेड (कॉनफेड) कार्यरत हैं।
जन औषधि केन्द्र
वर्तमान में जन औषधि केन्द्र- जोधपुर एवं झुंझुनू जिलों में थोक उपभोक्ता भंडार द्वारा और जयपुर में कॉनफैड द्वारा संचालित किए जा रहे हैं।
सहकारी आवास योजना
इसके अन्तर्गत, गृह निर्माण समितियों/प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों (पैक्स) के सदस्यों को आवास निर्माण हेतु व्यक्तिगत दीर्घकालीन ऋण उपलब्ध कराना है। इस योजना में ₹20.00 लाख तक का ऋण 15 वर्ष तक की अवधि के लिए मकान बनाने/क्रय करने एवं मकान के विस्तार हेतु उपलब्ध कराया जाता है।
बेबी ब्लेंकेट योजना
वर्ष 1998 से मकान मरम्मत/रखरखाव हेतु बेबी ब्लेंकेट योजना प्रारम्भ की गई है। इस योजना में ₹7.00 लाख तक का ऋण 7 वर्ष की अवधि के लिए उपलब्ध कराया जाता है।
© 2024 RajasthanGyan All Rights Reserved.