वर्षा के अभाव में भूमि को कृत्रिम तरीके से जल पीलाने की क्रिया को सिंचाई करना कहा जाता है। सिंचाई आधारभूत संरचना का अंग है।
योजनाबद्ध विकास के 60 वर्षो के बाद भी राजस्थान आधारभूत संरचना की दृष्टि से भारत के अन्य राज्यों के मुकाबले पिछड़ा हुआ है।
राज्य में कृषि योग्य भूमि का 2/3 भाग वर्षा पर निर्भर करता है।
वर्षा आधारित क्षेत्रों में भूमि की नमी को संरक्षित रखकर की जाने वाली खेती को शुष्क खेती कहते हैं। भारत में नहरों की कुल लम्बाई विश्व में सबसे अधिक है। सिंचित क्षेत्र भी सबसे अधिक है। परन्तु हमारी आवश्यकताओं से कम है।
राजस्थान के कुल सिंचित क्षेत्र का सबसे अधिक भाग श्री गंगानगर एवं सबसे कम भाग राजसमंद जिले में मिलता है। कुल कृषि क्षेत्र के सर्वाधिक भाग पर सिंचाई श्रीगंगानगर जिले में तथा सबसे कम चूरू जिले में मिलता है। राजस्थान कृषि प्रधान राज्य है। यहां के अधिकांश लोग जीवन - स्तर के लिए कृषि पर निर्भर है। कृषि विकास सिंचाई पर निर्भर करता है। राजस्थान के पश्चिमी भाग में मरूस्थल है। मानसून की अनिश्चितता के कारण ‘ कृषि मानसून का जुआ‘ जैसी बात कई बार चरितार्थ होती है।
राजस्थान की नवीनतम जल नीति को मंत्रिमंडल ने 17 फरवरी 2010 को मंजूरी दी।
अप्रैल 1978 से सिंचाई के साधनों की परिभाषा निम्न प्रकार है।
1. लघु सिंचाई का साधन - वह साधन जिससे 2000 हैक्टेयर तक सिंचाई सुविधा उपलब्ध होती है।
2. मध्यम सिंचाई का साधन - वह साधन जिसमें 2000 हैक्टेयर से अधिक किन्तु 10000 हैक्टेयर से कम सिंचाई सुविधा उपलब्ध होती है।
3. वृहत सिंचाई का साधन - वह साधन जिससे 10,000 हैक्टेयर से अधिक सिंचाई सुविधा उपलब्ध होती है।
ये राजस्थान में सिंचाई के प्रमुख साधन है। कुल सिंचित भुमि का लगभग 66 प्रतिशत भाग कुंए एवं नलकूप से सिंचित होता है।
कुए एवम् नलकूप से सर्वाधिक सिंचाई जयपुर में की जाती है। द्वितीय स्थान अलवर का है।
राजस्थान में नहरों से कुल सिंचित क्षेत्र का लगभग 33 प्रतिशत भाग सिंचित होता है। नहरों से सर्वाधिक सिंचाई श्री गंगानगर में होती है।
तालाबों से सिंचाई कुल सिंचित क्षेत्र के 0.6 प्रतिशत भाग में होती है। तालाबों से सर्वाधिक सिंचाई भीलवाड़ा में दुसरा स्थान उदयपुर का है। राजस्थान के दक्षिणाी एवं दक्षिणी पूर्वी भाग में तालाबों से सर्वाधिक सिंचाई की जाती है।
अन्य साधनों में नदी नालों को सिंचाई के लिए प्रयुक्त किया जाता है। इस साधन से कुल सिंचित क्षेत्र के 0.3 भाग में सिंचाई की जाती है।
राजस्थान के भू-जल मूल्यांकन हेतु पंचायत समिति खण्ड (ब्लॉक) को मूल्यांकन इकाई माना गया है। 2001 में कुल 237 ब्लॉक थे, जो 2017 में 295 और 2022 में 301 ब्लॉक हो गये। इन 301 ब्लॉकों में से 219 (72%) अत्यधिक दोहीत अर्थात ‘डार्क ज़ोन’ (Dark Zone) में आ चुके है। केवल 38 ब्लॉक ही सुरक्षित श्रेणी में है। अर्द्ध संकटग्रस्त (Semi Critical) की संख्या 20 है, तथा संकटग्रस्त (critical) ब्लॉकों की संख्या 22 है। प्रदेश के जिन जिलों के ब्लॉक्स को सुरक्षित माना गया है उनमें डूंगरपुर, बांसवाड़ा, बीकानेर, गंगानगर और हनुमानगढ़ जिले आते है।
राजस्थान सिंचाई प्रबंधन एवं प्रशिक्षण संस्थान कोटा की स्थापना अमेरिका की राष्ट्रीय विकास एजेंसी के सहयोग से अगस्त 1984 में की गई। इसका मुख्य उद्देश्य सिंचाई एवं कृषि विभाग के कर्मचारियों, अधिकारियों तथा कृषक वर्ग को समुचित जल उपयोग व कृषि ज्ञान हेतु प्रशिक्षण प्रदान करना है।
पं. जवाहरलाल नेहरू ने बहुउद्देश्य परियोजनओं को ‘आधुनिक भारत के मन्दिर’ कहा है।
चम्बल परियोजना का कार्य 1952 -54 में प्रारम्भ हुआ। यह राजस्थान व मध्यप्रदेश की संयुक्त परियोजना है। इसमें दानों राज्यों की हिस्सेदारी 50-50 प्रतिशत है।
यह बांध 1960 में मध्यप्रदेश की भानुपुरा तहसील में बनाया गया है। यह बांध चैरासीगढ़ से 8 कि.मी. पहले एक घाटी में बना हुआ है। इससे 2 नहरें निकाली गई है।
बाईं नहर - बुंदी तक जाकर मेज नदी में मिलती है।
दांयी नहर - पार्वती नदी को पार करके मध्यप्रदेश में चली जाती है यहां पर गांधी सागर विधुत स्टेशन भी है।
यह बांध गांधी सागर बांध से 48 कि.मी. आगे चित्तौड़गढ़ में चुलिया जल प्रपात के समीप रावतभाटा नामक स्थान पर 1970 में बनाया गया है।
इसे कोटा बांध भी कहते हैं, यह राणा प्रताप सागर बांध से 38 कि.मी. आगे कोटा के बोरावास गांव में बना हुआ है। यहां एक विधुत शक्तिा ग्रह भी बनाया गया है।
यह कोटा शहर के पास बना हुआ है। इसमें से दो नहरें निकलती है।
दायीं नहर - पार्वती व परवन नदी को पार करके मध्यप्रदेश में चली जाती है।
बायी नहर - कोटा, बुंदी, टोंक, सवाई माधोपुर और करौली में जलापूर्ति करती है।
भाखड़ा नांगल परियोजना भारत की सबसे बड़ी नदी घाटी परियाजना है। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश की संयुक्त परियोजना है। इसमें राजस्थान का हिस्सा 15.2 प्रतिशत (विद्युत व जल दोनों में) है। हिमाचल प्रदेश का हिस्सा केवल जल विधुत के उत्पादन में ही है। सर्वप्रथम पंजाब के गर्वनर लुईस डैन ने सतलज नदी पर बांध बनाने का विचार प्रकट किया। इस बांध का निर्माण 1946 में प्रारम्भ हुआ एवं 1962 को इसे राष्ट्र को समर्पित किया गया। यह भारत का सबसे ऊंचा बांध है। भाखड़ा बांध के जलाशय का नाम गोबिन्द सागर है। यह 518 मीटर लम्बा 9.1 मीटर चौड़ा और 220 मीटर ऊंचा है।
इस परियोजना के अन्तर्गत
इसका निर्माण हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में सतलज नदी पर भाखड़ा नामक स्थाप पर किया गया है। इसका जलाशय गोबिन्द सागर है। इस बांध को देखकर पं. जवाहरलाल नेहरू ने इसे चमत्कारिक विराट वस्तु की संज्ञा दी और बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं को आधुनिक भारत का मन्दिर कहा है।
यह बाँध 1952 में बनकर तैयार हो गया था। यह सतलज नदी पर भाखड़ा बाँध से 13 किमी. नीचे की ओर नाँगल (रोपड़, पंजाब) में बनाया गया है। इससे 64 कि.मी. लम्बी नहर निकाली गई है जो अन्य नहरों को जलापूर्ति करती है।
यह नाँगल बाँध से निकाली गई है जो पंजाब, हरियाणा व राजस्थान को सिंचाई सुविधा प्रदान करती है। भाखड़ा नहर प्रणाली का निर्माण 1954 में पूर्ण हुआ।
इसके अलावा इस परियोजना में सरहिन्द नहर, सिरसा नहर, नरवाणा नहर, बिस्त दो आब नहर निकाली गई है। इस परियोजना से राज्य में सर्वाधिक सिंचाई हनुमानगढ़ जिले में होती है तथा चूरू, गंगानगर, हनुमानगढ़, सीकर, झुंझुनूं व बीकानेर जिलों को विद्युत प्राप्त होती है।
यह सतलज, रावी व व्यास नदियों के जल का उपयोग करने हेतु पंजाब, राजस्थान, हरियाणा की संयुक्त परियोजना है। इसमें व्यास नदी पर हिमाचल प्रदेश में निम्न दो बाँध बनाये गये हैं -
(1) पंडोह बाँध : पंडोह (हिमाचल प्रदेश में मण्डी करबे से 21 किमी. दूर) स्थान पर। इस बाँध से व्यास-सतलज लिंक नहर निकालकर देहर (हिमाचल प्रदेश) स्थान पर 990 मेगावाट (1656 मेगावाट) का विद्युत गृह स्थापित किया गया है।
(2) पोंग बाँध : काँगड़ा जिले के पोंग स्थान पर (हिमाचल प्रदेश) निर्मित किया गया है।
राजस्थान को रावी-व्यास नदियों के जल में अपने हिस्से का सर्वाधिक जल इसी बाँध से प्राप्त होता हैं। पोंग बाँध का मुख्य उद्देश्य इंदिरा गाँधी परियोजना को शीतकाल में जल की आपूर्ति बनाए रखना है। इसी बाँध पर 390 मेगावाट (5x66MW एवं 1x60 MW) का विद्युत गृह स्थापित किया गया है।
राजस्थान को देहर विद्युत गृह से 20 प्रतिशत व पौंग विद्युत गृह से 59 प्रतिशत विद्युत तथा इंदिरा गाँधी नहर परियोजना को जल उपलब्ध होता है।
व्यास-सतलज लिंक परियोजना (BSLP) : भाखड़ा व नाँगल बाँध में पानी की आपूर्ति बनाये रखने एवं व्यास नदी के अतिरिक्त जल को प्रयुक्त करने हेतु पंडोह बाँध से यह लिंक नहर निकाली गई है।
जल के बंटवारे के लिए 1953 में राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, जम्मु - कश्मीर, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश राज्यों के बीच एक समझौता हुआ इसमें सभी राज्यों के लिए अलग- अलग पानी की मात्रा निर्धारित की गई लेकिन इसके बाद भी यह विवाद थमा नहीं तब सन् 1985 में राजीव गांधी लौंगवाला समझौते के अन्तर्गत न्यायमूर्ति इराडी की अध्यक्षता में इराडी आयोग बनाया गया था। इस आयोग ने राजस्थान के लिए 86 लाख एकड़ घन फीट जल की मात्रा तय की है।
यह राजस्थान एवं गुजरात की संयुक्त परियोजना है। 1966 में हुए समझौते के अनुसार राजस्थान का हिस्सा 45 प्रतिशत व गुजरात का हिस्सा 55 प्रतिशत है, लेकिन इससे बनने वाली विद्युत 100% राजस्थान को प्राप्त होती है। इस परियोजना में गुजरात के पंच महल जिले में माही नदी पर कड़ाना बांध का निर्माण किया गया है। इसी परियोजना के अंतर्गत बांसवाड़ा के बोरखेड़ा गांव में माही बजाज सागर बांध बना हुआ है। इसके अलावा यहां 2 नहरें, 2 विधुत ग्रह, 2 लघु विधुत ग्रह व 1 कागदी पिक अप बांध बना हुआ है। 1983 में इन्दिरा गांधी ने जल प्रवाहित किया। इस परियोजना से डुंगरपुर व बांसवाड़ा जिलों की कुछ तहसीलों को जलापूर्ति होती है।
कागदी पिकअप बांध का निर्माण माही बजाज सागर परियोजना के द्वितीय चरण में माही बजाज सागर बांध के नीचे बांसवाड़ा में ही किया गया है। इस बांध से दो नहरे दांयी – भीखाभाई सागवाड़ा नहर (71.72 किमी. लम्बी) व बांयी – आनंदपुरी-भूकिया नहर (26.12 किमी. लम्बी) निकाली गई है।
यह परियोजना पूर्ण होने पर विश्व की सबसे बड़ी परियोजना होगी इसे प्रदेश की जीवन रेखा/मरूगंगा भी कहा जाता है। पहले इसका नाम ‘ राजस्थान नहर’ था। 2 नवम्बर 1984 को इसका नाम ‘इन्दिरा गांधी नहर’ परियोजना कर दिया गया है। बीकानेर के इंजीनियर कंवर सैन ने 1948 में भारत सरकार के समक्ष एक प्रतिवेदन पेश किया जिसका विषय ‘बीकानेर राज्य में पानी की आवश्यकता’ था। IGNP का मुख्यालय(बोर्ड) जयपुर में है।
इस नहर के निर्माण का मुख्य उद्द्देश्य रावी व्यास नदियों के जल से राजस्थान को आवंटित 86 लाख एकड़ घन फीट जल को उपयोग में लेना है। नहर निर्माण के लिए सबसे पहले फिरोजपुर में सतलज, व्यास नदियों के संगम पर 1952 में हरिकै बैराज का निर्माण किया गया। हरिकै बैराज से बाड़मेर के गडरा रोड़ तक नहर बनाने का लक्ष्य रखा गया।
नहर निर्माण कार्य का श्री गणेश तात्कालिक ग्रहमंत्री श्री गोविन्द वल्लभ पंत ने 31 मार्च 1958 को किया । 11 अक्टुबर 1961 को इससे सिंचाई प्रारम्भ हो गई, जब तात्कालिन उपराष्ट्रपति डा. राधाकृष्णनन ने नहर की नौरंगदेसर वितरिका में जल प्रवाहित किया था।
इस नहर का उद्गम पंजाब में फिरोजपुर के निकट सतलज-व्यास नदियों के संगम पर बने हरिके बैराज से है। IGNP के दो भाग हैं। प्रथम भाग राजस्थान फीडर कहलाता है इसकी लम्बाई 204 कि.मी.(170 कि.मी. पंजाब व हरियाणा + 34 कि.मी. राजस्थान) है। जो हरिकै बैराज से हनुमानगढ़ के मसीतावाली हैड तक विस्तारित है। नहर के इस भाग में जल का दोहन नहीं होता है।
IGNP का दुसरा भाग मुख्य नहर है। इसकी लम्बाई 445 किमी. है। यह मसीतावाली से जैसलमेर के मोहनगढ़ कस्बे तक विस्तारित है। इस प्रकार IGNP की कुल लम्बाई 649 किमी. है। इसकी वितरिकाओं की लम्बाई 9060 किमी. है। IGNP के निर्माण के प्रथम चरण में राजस्थान फीडर सूरतगढ़, अनुपगढ़, पुगल शाखा का निर्माण हुआ है। इसके साथ-साथ 3075 किमी. लम्बी वितरक नहरों का निर्माण हुआ है।
राजस्थान फीडर का निर्माण कार्य सन् 1975 में पूरा हुआ। नहर निर्माण के द्वितीय चरण में 256 किमी. लम्बी मुख्य नहर और 5112 किमी. लम्बी वितरक प्रणाली का लक्ष्य रखा गया है। नहर का द्वितीय चरण बीकानेर के पूगल क्षेत्र के सतासर गांव से प्रारम्भ हुआ था। जैसलमेर के मोहनगढ़ कस्बे में द्वितीय चरण पूरा हुआ है। इसलिए मोहनगढ़ कस्बे को IGNP का ZERO POINT कहते हैं।
मोहनगढ़ कस्बे से इसके सिरे से लीलवा व दीघा दो उपशाखाऐं निकाली गयी है। 256 किमी. लम्बी मुख्य नहर दिसम्बर 1986 में बनकर तैयार हुई थी। 1 जनवरी 1987 को वी. पी.(विश्व नाथप्रताप) सिंह ने इसमें जल प्रवाहित किया।
IGNP नहर की कुल सिंचाई 30 प्रतिशत भाग लिफ्ट नहरों से तथा 70 प्रतिशत शाखाओं के माध्यम से होता है।
रावी - व्यास जल विवाद हेतु गठित इराड़ी आयोग(1966) के फैसले से राजस्थान को प्राप्त कुल 8.6 एम. ए. एफ. जल में से 7.59 एम. ए. एफ. जल का उपयोग IGNP के माध्यम से किय जायेगा।
IGNP के द्वारा राज्य के 10 जिलों - हनुमानगढ़, श्री गंगानगर, अनूपगढ़, चूरू, बीकानेर, फलौदी, जोधपुर, नागौर, जैसलमेर एवं बाड़मेर में सिंचाई हो रही है या होगी। इनमें से सर्वाधिक कमाण्ड क्षेत्र क्रमशः जैसलमेर एवं बीकानेर जिलों का है।
नहर के बाँयी ओर का इलाका ऊँचा होने व पानी के स्वतः प्रवाहित न होने के कारण नहर प्रणाली पर लिफ्ट नहरें बनाई गई हैं।
क्र. स. | लिफ्ट नहर का पुराना नाम | लिफ्ट नहर का नया नाम | लाभान्वित जिले |
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1 | गंधेली(नोहर) साहवा लिफ्ट | चौधरी कुम्भाराम लिफ्ट नहर | हनुमानगढ़, चुरू, झुंझुनू |
2. | बीकानेर - लुणकरणसर लिफ्ट | कंवरसेन लिफ्ट नहर | श्री गंगानगर, बीकानेर |
3. | गजनेर लिफ्ट नहर | पन्नालाल बारूपाल लिफ्ट नहर | बीकानेर, नागौर |
4. | बांगड़सर लिफ्ट नहर | भैरूदम चालनी वीर तेजाजी लिफ्ट नहर | बीकानेर |
5. | कोलायत लिफ्ट नहर | डा. करणी सिंह लिफ्ट नहर | बीकानेर, जोधपुर |
6. | फलौदी लिफ्ट नहर | गुरू जम्भेश्वर जलो उत्थान योजना | जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर |
7. | पोकरण लिफ्ट नहर | जयनारायण व्यास लिफ्ट | जैसलमेर, जोधपुर |
8. | जोधपुर लिफ्ट नहर(176 किमी. + 30 किमी. तक पाईप लाईन) | राजीवगांधी लिफ्ट नहर | जोधपुर |
राजस्थान नहर परियोजना के मूल प्रारूप में जल वितरण शाखाओं के निर्माण की योजना थी न की लिफ्ट परियोजनाओं के निर्माण की। 1963 में पहली बार इस योजना में लिफ्ट परियोजनाएं बनाने को शामिल किया गया, जिसके तहत 1968 में प्रथम लिफ्ट नहर ‘कंवर सेन लिफ्ट नहर’ (प्राचीन नाम लूणकरणसर लिफ्ट नहर) का निर्माण शुरू हुआ।
वीर तेजाजी लिफ्ट नहर (प्राचीन नाम बांगड़सर लिफ्ट नहर) इंदिरा गांधी नहर परियोजना की सबसे छोटी लिफ्ट नहर है।
राजीव गांधी लिफ्ट नहर से जोधपुर शहर व रास्ते के 158 गांवों को पेयजल दिया जाता है। इसे जोधपुर नगर की जीवन रेखा कहते हैं। इस पेयजल लिफ्ट परियोजना में 8 पंपिंग स्टेशन है, जिनसे पानी को कुल 219 मीटर तक ऊंचा उठाया जाता है। इसका नाम परिवर्तित कर ‘राजीव गांधी जलोत्थान नहर परियोजना’ कर दिया गया है। यह इंदिरा गांधी नहर परियोजना की सबसे लंबी लिफ्ट नहर (176 किमी) है। (SUJAS May 2022)
बीकानेर - लुणकरणसर लिफ्ट नहर दूसरी सबसे लम्बी बड़ी नहर है।
नहर के दायें किनारे से शाखाएँ तथा बाएँ किनारे से लिफ्ट नहरें निकाली गई है। किंतु एकमात्र शाखा ‘रावतसर’ नहर के बायें किनारे से निकाली गई है।
IGNP से 9 शाखाएं निकाली गयी है जो निम्न है -
1.रावतसर
यह IGNP की प्रथम शाखा है जो एक मात्र ऐसी शाखा है। जो नहर के बांयी ओर से निकलती है।
2. सुरतगढ़
3. अनूपगढ़
4. पुगल
5. चारणवाला
6. दातौर
7. बिरसलपुर
8. शहीद बीरबल
9. सागरमल गोपा
IGNP की उपशाखाएं है -
इसके अतिरिक्त नहर के अंतिम छोर मोहनगढ़ से दो बड़ी उपशाखाएँ - लीलवा व दीघा एवं सागरमल गोपा शाखा के अन्तिम छोर से गड़रा रोड़ (बरकतुल्ला खां उपशाखा वर्तमान नाम बाबा रामदेव शाखा) भी निकाली गई है।IGNP से हनुमानगढ़, श्री गंगानगर, बीकानेर, जैसलमेर, बाड़मेर, नागौर, चुरू, जोधपुर, झुझुनू को पेयजल उपलब्ध हो सकेगा। तथा 18.36 लाख हैक्टेयर सिंचाई योग्य क्षेत्र उपलब्ध हो सकेगा।
IGNP में पानी के नियमित बहाव के लिए निम्न उपाय है।
1. व्यास - सतलज नदी पर बांध
2. व्यास नदी पर पौंग बांध
3. रावी - व्यास नदियों के संगम पर पंजाब के माधोपुर नामक स्थान पर एक लिंक नहर का निर्माण।
गंधेली साहवा लिफ्ट नहर से जर्मनी के सहयोग से ‘आपणी योजना’ बनाई गई है। इस योजना के प्रथम चरण में हनुमानगढ़, चुरू, और इसके द्वितीय चरण में चुरू व झुझुनू के कुछ गांवों में जलापुर्ति होगी।
IGNP की सूरतगढ़ व अनूपगढ़ शाखाओं पर 3 लघु विधुत ग्रह बनाये गये है। भविष्य में इस नहर को कांडला बन्दरगाह से जोड़ने की योजना है। जिससे यह भारत की राइन नदी बन जाएगी।
डा. सिचेन्द द्वारा आविष्कारित लिफ्ट ट्रांसलेटर यंत्र नहर के विभिन्न स्थानों पर लगा देने से इससे इतनी विधुत उत्पन्न की जा सकती है जिससे पूरे उत्तरी - पश्चिमी राजस्थान में नियमित विधुत की आपूर्ति हो सकती है।
यह भारत की प्रथम नहर सिंचाई परियोजना है। बीकानेर के महाराजा गंगासिंह के प्रयासों से गंगनहर के निर्माण द्वारा सतलज नदी का पानी राजस्थान में लाने हेतु 4 दिसम्बर 1920 को बीकानेर, भावलपुर और पंजाब राज्यों के बीच सतलज नदी घाटी समझौता हुआ था।
गंगनहर की आधारशिला फिरोजपुर हैडबाक्स पर 5 सितम्बर 1921 को महाराजा गंगासिंह द्वारा रखी गई।
26 अक्टूबर 1927 को तत्कालीन वायसराय लार्ड इरविन ने श्री गंगानगर के शिवपुर हैड बाॅक्स पर उद्घाटन करते हैं। यह नहर सतलज नदी से पंजाब के फिरोजपुर के हुसैनीवाला से निकाली गई है। श्री गंगानगर के संखा गांव में यह राजस्थान में प्रवेश करती है। शिवपुर, श्रीगंगानगर, जोरावरपुर, पदमपुर, रायसिंह नगर, स्वरूपशहर, होती हुई यह अनूपगढ़ तक जाती है।
मुख्य नहर की लम्बाई 129 कि.मी. है। (112 कि.मी. पंजाब + 17 कि.मी. राजस्थान) फिरोजपुर से शिवपुर हैड तक है। नहर की वितरिकाओं की लम्बाई 1280 कि.मी. है। लक्ष्मीनारायण जी, लालगढ़, करणीजी, समीक्षा इसकी मुख्य शाखा है। नहर में पानी के नियमित बहाव और नहर के मरम्मत के समय इसे गंगनहर लिंक से जोड़ा गया है। यह लिंक नहर हरियाणा में लोहागढ़ से निकाली गई और श्रीगंगानगर के साधुवाली गांव में गंगनहर से जोड़ा गया है।
यह नहर पश्चिमी यमुना की आगरा नहर से निकाली गई है। भरतपुर नरेश ने सन् 1906 में इस नहर का निर्माण कार्य शुरू करवाया था जो 1963 - 64 में यह बनकर तैयार हुई थी। इसकी कुल लम्बाई 28 कि.मी.(16 उत्तर प्रदेश + 12 राजस्थान) है। इससे भरतपुर में जलापूर्ति होती है।
यह नहर हरियाणा व राजस्थान की संयुक्त नहर है। इस नहर के निर्माण का मुख्य उद्देश्य मानसूनकाल में यमुना नदी के अतिरिक्त जल को उपयोग लाना है। 1966 में इसका निर्माण कार्य शुरू हुआ एवं 1985 में पुरा हो गया।
यह नहर यमुना नदी में उत्तरप्रदेश के औंखला से निकाली गई है। यह डीग जिले की कामा तहसील के जुरेरा(जुटेरा) गांव में राजस्थान में प्रवेश करती है। इससे डीग की कामा व डीग तहसील की जलापूर्ति होती है। इसकी कुल लम्बाई 58 कि.मी. है। आजकल इसे यमुना लिंक परियोजना कहते हैं।
यह डुंगरपुर जिले में हैं इस परियोजना को 2002 में केन्द्रीय जल आयोग ने स्वीकृति प्रदान की। इसमें माही नदी पर साइफन का निर्माण कर यह नहर निकाली गई है। इससे डुंगरपुर जिले में लगभग 21000 हेक्टेयर में सिंचाई सुविधा उपलब्ध होगी।
यह परियोजना 1962 में प्रारम्भ की गई। यह परियोजना चित्तौड़गढ़ - प्रतापगढ़ मार्ग पर अनुपपुरा गांव में बनी हुई है। यह राजस्थान का सबसे ऊंचाई पर स्थित बांध (81 मी) है। इस परियोजना से प्रतापगढ़ के आदिवासी क्षेत्रों को सिंचाई सुविधा व पेयजल आपूर्ति की जाती है, तो वहीं इस बांध परियोजना से उदयपुर और चितौड़गढ़ जिलों को सिंचाई के लिए जलापूर्ति की जाती है।
इसका नाम अब राजीव गांधी नोहर परियोजना है इसका शिलान्यास 5 अक्टुबर 1989 को राजीव गांधी ने भादरा के समीप भिरानी गांव से किया। रावी-व्यास नदियों के अतिरिक्त जल का उपयोग में लेना है, इसके लिए भाखड़ा मुख्य नहर से 275 कि.मी. लम्बी एक नहर निकाली गयी है।
इस परियोजना को आर्थिक सहायता यूरोपीय आर्थिक समुदाय से प्राप्त हुई है। इससे नोहर, भादरा(हनुमानगढ़), तारानगर, सहवा(चुरू) तहसिलों को लाभ मिल रहा है। इस परियोजना का 12 जुलाई 2002 को श्रीमति सोनिया गांधी द्वारा लोकार्पण किया गया। इस परियोजना के लिए पानी भाखड़ा नांगल हैड वर्क से लाया गया है।
यह परियोजना बनास नदी पर टोंक जिले के टोडारायसिंह कस्बे में है। यह पेयजल की परियोजना है। इसका प्रारम्भ 1988-89 में हुआ। यह राजस्थान की सबसे बड़ी पेयजल परियोजना है। इससे दो नहरें भी निकाली गयी है। इससे अजमेर, ब्यावर, किशनगढ़, नसीराबाद, जयपुर तथा सरवाड़- केकड़ी में पेयजल जलापूर्ति होती है। इसे NABRD के RIDF से आर्थिक सहायता प्राप्त होती है।
यह गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान की संयुक्त परियोजना है। इस परियोजना में राजस्थान के लिए 0.5 एम. ए. फ.(मिलियन एकड़ फीट) निर्धारित की गई है। इस जल को लेने के लिए गुजरात के सरदार सरोवर बांध से नर्मदा नहर(458 कि.मी. गुजरात + 75 कि.मी. राजस्थान) निकाली गई है। यह नहर सांचौर के सीलू गांव में राजस्थान में प्रवेश करती है। फरवरी 2008 को वसुंधरा राजे ने जल प्रवाहित किया। इस परियोजना में सिंचाई केवल फुव्वरा पद्धति से करने का प्रावधान है। परियोजना में तीन लिफ्ट नहरों का निर्माण किया गया है- भादरिया लिफ्ट नहर बाड़मेर के गुडामलानी क्षेत्र में, पनोरिया लिफ्ट नहर बाड़मेर के धोरीमन्ना क्षेत्र में और सांचौर लिफ्ट नहर सांचौर जिले के सांचौर तहसील में जाती है। सांचौर व बाड़मेर की गुढ़ा मलानी तहसील लाभान्वित होती है।
मेधा पाटकर व बाबा आमटे का संबंध 1985 से हो रहे ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ से है। इस आंदोलन के नेता मेधा पाटकर की मांग थी की नर्मदा नदी पर बने सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई अधिक नहीं होनी चाहिए क्योंकि इस बांध की ऊँचाई बढ़ाए जाने से मध्य प्रदेश के 192 गाँव और एक नगर डूब क्षेत्र में आ रहे हैं। इसके चलते 40 हज़ार परिवारों को अपने घर, गाँव छोड़ने पड़ेंगे।
बनास नदी के अतिरिक्त जल को लेने के लिए यह परियोजना सवाई माधोपुर के ईसरदा गांव में बनी हुई है। इससे सवाईमाधोपुर, टोंक, जयपुर की जलापूर्ति होती है।
केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री श्री नितिन गडकरी ने यमुना बेसिन क्षेत्र में 3966.51 करोड़ रुपये की लागत वाली बहुउद्देशीय लखवाड़ बांध परियोजना के निर्माण के लिए छह राज्यों के मुख्यमंत्रियों( उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ, राजस्थान की मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल, दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री जयराम ठाकुर) के साथ नई दिल्ली में एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। इस परियोजना के पूरा हो जाने पर इन सभी राज्यों में पानी की कमी की समस्या का समाधान होगा, क्योंकि इससे यमुना नदी में हर वर्ष दिसंबर से जून के सूखे मौसम में पानी के बहाव में सुधार आएगा। इस परियोजना को 1976 में योजना आयोग ने मंजूरी दी थी। दस साल बाद 1986 में पर्यावरणीय मंजूरी मिलने के बाद 1987 में जेपी समूह ने उत्तर प्रदेर्श सिंचाई विभाग के पर्यवेक्षण में 204 मीटर ऊंचे बांध का निर्माण शुरू किया गया। 1992 में जब लगभग 35 फीसदी काम पूरा हो गया तो जेपी समूह पैसा न मिलने को लेकर परियोजना से अलग हो गया। बाद में 2008 में केंद्र सरकार ने इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया, जिसके तहत 90 फीसद धन केंद्र सरकार खर्च करेगी और बाकी दस फीसदी राज्य करेंगे। लखवाड़ परियोजना के अंतर्गत उत्तराखंड में देहरादून जिले के लोहारी गांव के नजदीक यमुना नदी पर 204 मीटर ऊंचा कंक्रीट का बांध बनना है। परियोजना के तहत बनने वाली पूरी 300 मेगावाट बिजली उत्तराखंड को मिलेगी, जिस पर लगभग 1400 करोड़ रुपये खर्च होंगे। यह खर्च उत्तराखंड उठाएगा। परियोजना के निर्माण का कार्य उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड करेगा। दिल्ली को इससे पेयजल मिलेगा, जबकि अन्य राज्यों को सिंचाई के लिए पानी मिलेगा।
दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान के मुख्यमंत्री 11 जनवरी 2018 को रेणुकाजी बहुद्देश्यीय डैम परियोजना के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किये। डैम का निर्माण इन छह राज्यों में पेयजल आपूर्ति की जरूरतों को देखते हुए किया जा रहा है। समझौते पर हस्ताक्षर केंद्रीय जल स्नोत, नदी विकास और गंगा कायाकल्प मंत्री नितिन गडकरी की उपस्थिति में किया। डैम यमुना और उसकी दो सहायक नदियों गिरि और टोंस पर बनाया जाएगा। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश इसमें शामिल हैं। परियोजना वर्ष 2008 में विचार में आई थी। इस पर आने वाले खर्च के बड़े हिस्से का वहन केंद्र सरकार करेगी, जबकि राज्यों को केवल 10 प्रतिशत देना होगा। सरकार ने एक बयान में कहा, ‘रेणुकाजी बांध की परिकल्पना हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में गिरि नदी पर एक भंडारण परियोजना के रूप में की गई है। 148 मीटर ऊंचे पत्थर के बांध से 23 क्यूबिक मीटर प्रति सेकेंड के हिसाब से पानी दिल्ली और अन्य बेसिन राज्यों को दिया जा सकेगा। इस परियोजना में 40 मेगावाट बिजली भी पैदा होगी।
यह बांध लूनी नदी की सहायक जवाई नदी पर पाली के सुमेरपुर में बना हुआ है। इसका निर्माण जोधपुर के महाराजा उम्मेदसिंह ने 13 मई 1946 को शुरू करवाया, 1956 में इसका निर्माण कार्य पुरा हुआ।
पहले इस बांध को अंग्रेज इंजीनियर एडगर और फर्गुसन के निर्देशन में शुरू करवाया बाद में मोतीसिंह की देखरेख में बांध का कार्य पूर्ण हुआ। इसे मारवाड़ का ‘अमृत सरोवर‘ भी कहते हैं। इससे एक नहर और उसकी शाखाएं निकाली गयी हैं।
जवाई बांध में पानी की आवक कम होने पर इसे उदयपुर के कोटड़ा तहसील में निर्मित सेई परियोजना से जोड़ा गया है। 9 अगस्त 1977 को सेई का पानी पहली बार जवाई बांध में डाला गया। इस बांध के जीर्णोद्धार का कार्य 4 अप्रैल 2003 को सोनिया गांधी ने शुरू किया।
यह बांध भीलवाड़ा के माण्डलगढ़ कस्बे में कोठारी नदी पर है। इससे भीलवाड़ा शहर को पेयजल की आपूर्ति होती है। मेजा बांध की पाल पर मेजा पार्क को ग्रीन माउण्ट कहते हैं। यह माउण्ट फुलों और सब्जियों के लिए प्रसिद्ध है।
करौली जिले के गुड़ला गांव में बालू मिट्टी से निर्मित बांध है। इस बांध में भद्रावती, बरखेड़ा, अटा, माची, भैसावर पांच नदियां आकर गिरती है। इसलिए इसे पांचणा बांध कहते है। यह मिट्टी से निर्मित राजस्थान का सबसे बड़ा बांध है यह अमेरिका के आर्थिक संयोग से बनाया गया है। इससे करौली, सवाईमाधोपुर, बयाना (भरतपुर) में जलापूर्ति होती है।
यह राजस्थान सरकार व हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड की संयुक्त परियोजना है। इसमें 70 प्रतिशत जल का उपयोग उदयपुर व 30 प्रतिशत जल का उपयोग हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड करता है। इस परियोजना में 4.6 कि.मी. लम्बी सुरंग बनी हुई है। यह भारत व राजस्थान की सबसे बड़ी जल सुरंग है।
इस योजना में धौलपुर जिल में पार्वती नदी पर 1959 में एक बांध का निर्माण किया गया। इससे धौलपुर जिले में सिंचाई सुविधा उपलब्ध हो रही है।
इसमें चित्तौड़गढ़ जिले में भोपालपुरा गांव के पास ओराई नदी पर एक बांध का निर्माण किया गया। इस बांध से एक नहर निकाली गई है जिसकी लम्बाई 34 कि.मी. है। इस परियोजना से चित्तौड़गढ़ एवं भीलवाड़ा जिले में सिंचाई सुविधा प्राप्त हो रही है।
इस बांध का निर्माण निम्बाहेड़ा (चित्तौड़गढ़) के पास गम्भीरी नदी पर 1956 में किया गया। यह मिट्टी से निर्मित बांध है। इस बांध से चित्तौड़गढ़ जिले को सिंचाई सुविधा उपलब्ध हो रही है।
यह करौली जिले की सबसे बड़ी सिंचाई परियोजना है। इसमें चम्बल नदी के पानी को कसेडु गांव (करौली) के पास 125 मीटर ऊंचा उठाकर करौली, बामनवास (गंगापुर सिटी) एवम् बयाना (भरतपुर) में सिंचाई सुविधा प्रदान की गई।
बाघेरी का नाका बांध राजसमंद जिले के खमनोर की पहाड़ियों के पास बिनोल गांव में बनास नदी पर 2006 में बनाया गया था। इस बांध से राजसमंद और उदयपुर जिलों के 300 से अधिक गांवों को पेयजल की आपूर्ति की जाती है।
हथियादेह सिंचाई परियोजना बारां जिले के किशनगंज तहसील के करवरी खुर्द गांव में कूल नदी पर निर्माणाधीन है। इस परियोजना से बाराँ जिले के 45 गांव के 6885 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी।
चुलीदेह परियोजना गंभीर नदी (उंटगन नदी) की सहायक भद्रावती नदी पर करौली जिले में स्थित है। पांचना बांध के भर जाने पर करौली शहर को बाढ़ से बचाने के लिए चुलीदेह परियोजना का निर्माण किया गया है।
पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ERCP) के तहत नोनेरा (नवनेरा) बांध कोटा जिले दिगोद तेहसील के बूढ़ादीत गांव के पास में कालीसिंध नदी पर 2022 में बनाया गया है। जयपुर और अजमेर सहित 13 जिलों की प्यास बुझाने के लिए कोटा के नोनेरा बांध से टोंक के बीसलपुर बांध में पानी लाया जाएगा।
राजस्थान सरकार की इस परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करवाने का प्रयास कर रही है। राजस्थान के 13 जिले अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, दोसा, सवाई माधोपुर, जयपुर, अजमेर, टोंक, बूंदी, कोटा, बारां, झालावाड़ ईस्ट कैनल प्रोजेक्ट से लाभान्वित होंगे। इन जिलों में मनुष्य व जानवरों के लिए पेयजल सुविधा उपलब्ध कराने के लिए इस परियोजना को 2051 तक पूरा किया जायेगा। इसमें 26 विभिन्न बड़ी व मध्यम परियोजनाओं के माध्यम से 2.8 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई हेतु जल उपलब्ध कराने का प्रस्ताव है। अन्तर बेसिन स्थानांतरण परियोजना के अंतर्गत इस परियोजना से 5 नदियां – चंबल नदी, कुनु नदी, कालीसिंध, पार्वती व कूल नदी आपस में जोड़ी जाएगी। यह प्रोजेक्ट करीब 38000 करोड रुपए का है। राजस्थान सरकार ने इसी राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने के लिए केंद्र सरकार को पत्र लिखा है, ऐसा होने पर 90% राशि केंद्र सरकार वहन करेगी।
बैथली पार्वती नदी की सहायक नदी है, जो बारां जिले में बहती है। इस पर बैथली लघु सिंचाई परियोजना बारां जिले में अवस्थित है।
पीललड़ा (पीपलदा) लिफ्ट नहर सवाईमाधोपुर जिले में चम्बल नदी से निकाली गई है। जबकि पीपलाद सिंचाई परियोजना झालावाड़ जिले में कालीसिंध नदी पर है।
गंभीर नदी की सहायक जग्गर नदी पर जग्गर बांध करौली जिले में स्थित है।
बजट 2022-23 की घोषणा के अनुसार उदयपुर की कोटड़ा तहसील में बुजा व चक सांडमारिया बांधो का निर्माण 1800 करोड़ की लागत से किया जाएगा, जिससे पाली व सिरोही जिलों में पेयजल के लिए जल आपूर्ति की जा सकेगी।
बिलास नदी पार्वती नदी की सहायक नदी है, जो बारां जिले में बहती है। बिलास सिंचाई परियोजना बारां जिले से सम्बन्धित है।
ल्यासी अंधेरी नदी की सहायक नदी है और अंधेरी पार्वती नदी की सहायक नदी है। ल्यासी सिंचाई परियोजना बाराँ जिले की बड़ौद तहसील के खजुरिया गांव में 2008 से शुरू की गई थी। इस परियोजना से 2539 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई, छबड़ा व छीपाबड़ौद कस्बों को पेयजल और छबड़ा थर्मल पावर प्लांट को जलापूर्ति की जाएगी
28 जुलाई, 2021 को लंबे समय से प्रस्तावित माउंट आबू की पेयजल समस्या के स्थायी समाधान हेतु ‘सालगाँव बाँध परियोजना’ (Salgaon Dam Project) के लिये उक्त परियोजना की नीति निर्धारण समिति द्वारा प्रशासनिक स्वीकृति जारी की गई। सालगाँव बाँध परियोजना 44 साल पहले 27 लाख रुपए की अनुमानित लागत से बनना प्रस्तावित थी जबकि वर्तमान में इस परियोजना की अनुमानित लागत 250 करोड़ रुपए है। सालगाँव बाँध परियोजना, माउंट आबू की पेयजल समस्या के निराकरण हेतु जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग द्वारा प्रस्तावित की गई है।
राजगढ़ सिंचाई परियोजना झालावाड़ जिले में कंथारी व आहू नदी के संगम पर राजगढ़ गांव में स्थित है। इस परियोजना से झालावाड़ जिले के 25 गांवों के 6827 हेक्टेयर भूमि क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा मिल रही है।
परवन वृहद बहुउद्दशीय सिंचाई परियोजना गाँव अकावद कलां खानपुर, जिला झालावाड़ के निकट कालीसिंध नदी की सहायक परवन नदी पर निर्माणधीन है। इस परियोजना का शिलान्यास 17 सितम्बर 2013 को किया गया तथा परियोजना को 2023 में पूर्ण किया जाना है। परियोजना के अंतर्गत 1,821 गाँवो में पेयजल उपलब्ध करवाने के साथ-साथ झालावाड़, बारां एव कोटा जिले के 637 गाँवो की 2,01,400 हैक्टयर में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। इस परियोजना में सिंचाई जल का उपयोग बूंद-बूंद या फव्वारा पध्दति से करना प्रस्तावित है। इस परियोजना में शेरगढ़ वन्य जीव अभ्यारण्य के लिए 17 मिलियन घन मीटर जल आरक्षित है।
सावन-भादो कोटा जिले के सांगोद तहसील में स्थित सिंचाई परियोजना है।
परियोजना | जिला |
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बालापुरा लिफ्ट सिंचाई परियोजना | कोटा |
अंधेरी परियोजना | बाराँ |
छापी सिंचाई परियोजना | झालावाड़ |
चौली परियोजना | झालावाड़ |
तकली परियोजना | कोटा |
गागरिन परियोजना | झालावाड़ |
गरदड़ा परियोजना | बूंदी |
आलनिया सिंचाई परियोजना | कोटा |
जग्गर सिंचाई परियोजना | करौली |
पार्वती बांध परियोजना | धौलपुर (पार्वती -II) नदी पर |
बांडी – सेन्दड़ा परियोजना | भीनमाल, जालौर बांडी नदी पर |
सूकली- सेलवाड़ा परियोजना | सिरोही (सूकली नदी पर) |
वागन परियोजना | चितौड़गढ़ (वागन बांध पर) |
बांकली परियोजना | जालौर-पाली |
अड़वाना बांध परियोजना | शाहपुरा-भीलवाड़ा |
चवंली सिंचाई परियोजना | झालावाड़ |
गुलण्डी पेयजल परियोजना | झालावाड़ |
सिंगोला पेयजल परियोजना | बाराँ |
भीमनी पेयजल परियोजना | झालावाड़ |
रेवा पेयजल परियोजना | झालावाड़ (रेवा बांध पर) |
झालाजी बराना वृहद पेयजल परियोजना | बूंदी |
कछावन पेयजल परियोजना | बाराँ |
पीपलखुंट हाइ लेवल कैनाल | प्रतापगढ़ |
जीवनधारा योजना गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले SC,ST जाती के लघु व सीमांत कृषकों को कुओं के निर्माण में लघु सिंचाई कार्य हेतु शत-प्रतिशत अनुदान की योजना है, जो वर्ष 1996-97 से स्वतंत्र रूप से क्रियान्वित की जा रही है। इससे पहले यह जवाहर रोजगार योजना की उपयोजना (Million Well Yojana) के रूप में चलाई जा रही थी।
13 मार्च 2020 को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ‘मुख्यमंत्री राजनीर योजना’ लागू करने की घोषणा की थी। जिसके तहत राज्य के शहरी क्षेत्र में घरेलू उपभोक्ताओं की मासिक जल खपत 15 हजार लीटर से कम होने पर जल शुल्क माफ किया जाएगा। इसके लिए खराब पड़े वाटर मीटरों को स्मार्ट वाटर मीटरों से बदला जाएगा।
3 योजनाओं त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम, समन्वित जल ग्रहण प्रबंध कार्यक्रम और खेत पर जल प्रबंध योजनाओं को मिलाकर 2015-16 में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) की शुरुआत की गई। इसमें केंद्र व राज्य का अंश 60:40 का होता है।
इस योजना का शुभारंभ 27 जनवरी 2016 को झालावाड़ के गर्दनखेड़ी गांव में चैची तालाब से किया गया। इस योजना का मुख्य उद्देश्य पेयजल के लिए आत्मनिर्भर होना है।
‘एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन ( IWRM)’ कार्यक्रम के अंतर्गत राजस्थान के 11 जिलों के 85 ब्लॉक और 3182 ग्राम पंचायत शामिल है। 11 जिले है- जैसलमेर, बीकानेर, बाड़मेर, जालौर, पाली, जोधपुर, नागौर, चूरू, राजसमंद, झुंझुनू व सीकर
जल पुरुष के नाम से प्रसिद्ध राजेंद्र सिंह तरुण भारत संघ के संस्थापक है। तरुण भारत संघ (NGO) राजस्थान के अलवर जिले के भीकमपुरा गांव में स्थित है, जिसकी स्थापना 1975 में की गई थी। यह जल संरक्षण के क्षेत्र में काम करने के लिए प्रसिद्ध है। राजेंद्र सिंह को 2001 में जल प्रबंधन के लिए ‘रेमन मैग्सेसे’ पुरस्कार तथा 2015 में ‘स्टॉकहोम जल पुरस्कार’ से नवाजा गया।
अटल भूजल योजना को 25 दिसंबर 2019 को अटल बिहारी वाजपेयी की 95 जयंती पर केंद्रीय कैबिनेट से मंजूरी मिली तथा इसका 1 अप्रैल 2022 को शुभारंभ किया गया। इस परियोजना में 50% हिस्सेदारी भारत सरकार की ओर 50% हिस्सेदारी विश्व बैंक की है। भारत सरकार ने इस योजना के प्रथम चरण (2020-2025) में देश के 7 राज्यों (राजस्थान, मध्य प्रदेश,उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक व हरियाणा) के 78 जिलों को शामिल किया गया है, जिनमें से राजस्थान के 17 जिले शामिल है। इस योजना के अंतर्गत जल संसाधनों का उचित प्रबंधन, संवर्धन और संरक्षण करके भू-जल दोहन को कम किया जाएगा।
राजस्थान में गिरते भूजल स्तर को रोकने के लिए राजस्थान सरकार द्वारा राज्य में वर्षा जल के अधिकतम संग्रहण, संरक्षण एवं उपलब्ध जल का न्याय उचित उपयोग करने के लिए 20 अगस्त 2019 से ‘राजीव गांधी जल संचय योजना’ शुरू की गई थी।
भविष्य के लिए जल संरक्षण की दृष्टि से 24 अप्रैल 2022 को आजादी का अमृत महोत्सव के तहत ‘मिशन अमृत सरोवर’ शुरू किया गया। इसके तहत देश में लगभग 50000 अमृत सरोवरों का निर्माण किया जाएगा। उनमें से प्रत्येक अमृत सरोवर के पास 10000 घन मीटर की जल धारण क्षमता के साथ लगभग 1 एकड़ का क्षेत्र होगा। मिशन अमृत सरोवर को 15 अगस्त 2023 तक पूरा किया जायेगा। नदियों को जोड़ने का कानून बनाने वाला राजस्थान देश का पहला राज्य है।
भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय (भू संसाधन विभाग) द्वारा विश्व बैंक पोषित ‘राष्ट्रीय वाटर शेड प्रबंधन परियोजना’ (NWMP) / नीरांचल परियोजना 9 राज्यों के 18 चयनित जिलों (प्रत्येक राज्य के 2 जिले) हेतु वर्ष 2015-16 में शुरू की गई थी, जिसमें राजस्थान राज्य के जोधपुर व उदयपुर जिलों को चयनित किया गया है। इसकी लागत की 50% राशि विश्व बैंक ऋण के रूप में देगा। वाटर शेड प्रबंधन के अंतर्गत सतही जल व ग्राउंड वाटर का सही तरह से प्रबंधन आता है। यह परियोजना 6 साल की अवधि (2016-21) के लिए लागू की गई है।
जनता जल योजना जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग की वे पेयजल योजनाऐं है, जिनको जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग द्वारा तैयार करने के उपरान्त संचालन हेतु स्वैच्छिक संगठनों, एनजीओ. व ग्राम पंचायतों को सुपूर्द की जाती है। वर्तमान में राजस्थान के बीकानेर व जैसलमेर को छोड़कर शेष 31 जिलों में 6514 जनता जल योजना संचालित है। जनता जल योजना का संचालन ‘पंचायती राज विभाग’ के माध्यम से किया जाता है।
भुंगरू पद्धति एक जल संचयन की तकनीक है, जिसमें एक छिद्र वाले खोखले पाइप को जमीन के अंदर बोरवेल के रूप में डाला जाता है, जिसमें से बरसात के अतिरिक्त पानी को फ़िल्टर करके भूमि के अंदर प्रवाहित करवाया जाता है। इससे खारापन व मृदा की खराबी से होने वाले पानी के जमाव से छुटकारा पाया जा सकता है। ग्रीष्म काल में इस पानी को निकलकर वापस सिंचाई के उपयोग में लाया जाता है। सिंगापुर विश्वविद्यालय में भुंगरू पद्धति को ‘मोस्ट सक्सेसफुल सोशल एंटरप्राइज’ का पुरस्कार दिया गया है। भुंगरू तकनीक के पायलट प्रोजेक्ट को 5 राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा व असम में सैद्धांतिक मंजूरी प्रदान की गई है। इसमें राजस्थान के 12 जिलों का चयन किया गया है – श्री गंगानगर, हनुमानगढ़, चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़, भीलवाड़ा, बाराँ, कोटा, झालावाड़, बीकानेर, जैसलमेर, जोधपुर व बाड़मेर।
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