जिला प्रशासन का अर्थ एक ऐसे भौगोलिक क्षेत्र से है जो न्यायिक, राजस्व, और प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए गठित किया गया है।
भारत में प्रशासन की क्षेत्रीय इकाई के रूप में ‘जिले’ का लम्बा इतिहास है जो मौर्यकाल के “विषय” से शुरु होता है। मुगल काल के दौरान ‘जिले’ को ‘सरकार’ कहा जाता था और इसके प्रमुख को ‘करोड़ी-फौजदारी’ कहते थे। लेकिन आज का जिला प्रशासन और जिलाधीश के पद का विकास भारत में ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के समय में हुआ था। भारत में कलेक्टर पद का सृजन 1772 ई. में तत्कालीन गवर्नर-जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने किया था।
सन् 1939 में जिला कलेक्टर के कार्य क्षेत्र में ग्रामीण विकास, सहकारिता आंदोलन और ग्राम पंचायत को भी सम्मिलित कर लिया गया था।
संविधान में जिला शब्द का अनुच्छेद-233 को छोड़कर अन्यत्र कहीं नहीं हुआ हैं, अनुच्छेद 233 में जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति के प्रसंग में प्रयोग किया गया है। संविधान के (73वें और 74वें संशोधन) अधिनियम 1992 द्वारा भाग IX और IXA में कई जगह ‘जिला’ शब्द को शामिल किया गया है जो क्रमशः पंचायतों और नगरपालिकाओं के लिए है। पंचायती राज के लिए जिला परिषद का प्रयोग अनुच्छेद-243 में किया गया है। ‘डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन इन इण्डिया’ नामक अपनी पुस्तक में 1979 में एस.एस.खेरा ने जिला प्रशासन के महत्व के संबंध में प्रकाश डाला है। सन् 1985 में जी.वी.के. राव की अध्यक्षता में बनी ‘कार्ड समिति’ ने कलक्टर के विकास तथा नियामकीय पदों (कार्यों) में विभाजन करने की सिफारिश की थी। जिला राज्य प्रशासन की मुख्य इकाई होती है। जिला राज्य सरकार और जनता के मध्य की कड़ी के रूप में कार्य करता है। प्रशासन में सुविधा की दृष्टि से जिले को उपखण्डों में तथा उपखण्ड को तहसीलों में विभाजित किया गया है।
भारत के संविधान के अनुच्छेद-50 में यह प्रावधान किया गया हैं कि - “लोक सेवाओं में राज्य न्यायपालिका को कार्यपालिका से पृथक करने का प्रयास करे।” वर्तमान में भारत के बहुत से राज्यों में जिला कलेक्टर को उपायुक्त या डिप्टी कमिश्नर या DC कहा जाता है। जिला कलेक्टर के पद पर भारतीय प्रशासनिक सेवा (आई.ए.एस.) अधिकारी को, जो 5 से 7 वर्ष का प्रशासनिक अनुभव प्राप्त कर चुका है, नियुक्त किया जाता है। राजस्थान प्रशासनिक सेवा (R.A.S.) से पदोन्नत होकर भारतीय प्रशासनिक सेवा का अधिकारी बने व्यक्ति को भी जिला कलेक्टर के पद पर नियुक्त किया जाता है।
जिला स्तर पर जिला कलेक्टर राज्य सरकार की आँख, कान तथा हाथों के रूप में कार्य करता है। दूसरे शब्दों में जिला कलेक्टर जिला स्तर पर राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व करता है।
जिलाधीश (District Collector) जिला स्तरीय प्रशासन का प्रधान होता है। वह जिले में कानून एवं व्यवस्था बनाये रखने के साथ-साथ विभिन्न विकास कार्यों एवं राजस्व मामलों की देखरेख भी करता है। जिलाधीश के अधीन उपखण्ड (Subdivision) स्तर पर उपखण्ड अधिकारी एवं तहसील स्तर पर तहसीलदार प्रशासनिक नियंत्रण व क्रियान्वयन एवं राजस्व संबंधी मामलों की देखरेख के लिए उत्तरदायी होते हैं।
(1) कानून और व्यवस्था लागू करना, (2) सरकार का भू-राजस्व एकत्रित करना, (3) जिले की नगरीय व ग्रामीण जनता का कल्याण।
भू-राजस्व अधिकारी के रूप में : वह भू-राजस्व का मूल्यांकन करता है तथा कृषि संबंधी सांख्यिकी तैयार करता है। राजस्व, फसलों की क्षति का अनुमान लगाना तथा राहत के लिए सिफारिशें करना, बाढ़, अकाल, आगजनी, अतिवृष्टि आदि प्राकृति विपदाओं के समय राहत कार्य आदि।
जिला प्रशासक के रूप में : जिला स्तरीय 'प्रशासन में समन्वय' स्थापित करने का दायित्व जिलाधीश का होता है।
जिला मजिस्ट्रेट के रूप में : वह अधीनस्थ न्यायालयों का पर्यवेक्षण एवं नियंत्रण तथा जेलों के प्रशासन का निरीक्षण करता है। कानून एवं बनाए रखना, पुलिस नियंत्रण, विदेशियों के पारपत्रों की जांच करना, फौजदारी प्रशासन का संचालन, श्रम समस्याओं एवं हड़ताल देखना, वृक्ष कटाई के परमिट जारी करना, SC/ST संबंधी प्रमाण पत्र देना।
संकटकालीन प्रशासक के रूप में : प्राकृतिक विपदाओं में घायलों के उपचार, निवास, भोजन आदि की व्यवस्था, विस्थापितों के पुर्नस्थापन व उन्हें मुआवजा राशि देना आदि अनेक दायित्व जिलाधीश के है।
विकास अधिकारी के रूप में : सभी विकास कार्यक्रमों के सफल क्रियान्वयन की जिम्मेदारी जिलाधीश की ही है।
अन्य कार्य : जिले में जनगणना करवाना, संसद, विधानसभा और स्थानीय स्वशासन संस्थाओं के चुनाव करवाना, विस्थापितों का पंजीयन और उनका पुनर्स्थापना करवाना, जिले के प्रमुख जनसंपर्क अधिकारी के रूप में कार्य करना।
जिलाधीश के व्यापक और विशद कार्यों को देखते हुए रजनी कोठारी ने उसे ‘संस्थागत करिश्मा’ की उपमा दी।
जिलाधीश के कार्यभार की अधिकता एवं अतिव्यस्तता के कारण रेम्जेमेक्डोनॉल्ड ने कहा “जिलाधीश की तुलना एक कछुए के समान है जिसकी पीठ पर भारत सरकार का हाथी खड़ा है।”
के. के. दास ने कहा है कि “कहीं दूसरी जगह जिलाधीश के समान न तो कोई अधिकारी हुआ है और न ही होगा।”
जब साइमन कमीशन (भारतीय स्टेटयूटरी कमिशन) भारत आया तो उसने जून, 1930 के अपने प्रतिवेदन में अन्य बातों के साथ जिलाधीश की भूमिका के लिए कहा कि “जिलाधीश को एक अधिवक्ता, एक लेखाविद्य, एक सर्वेक्षणकर्त्ता तथा राजपत्रों का तैयार लेखक होना चाहिए।”
मई, 2005 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा कि “जिलाधीश प्रशासन की धुरी है।”
राजस्थान के समस्त जिलों को उपखंडों में विभाजित किया गया है। प्रत्येक उपखंड एक उपखंड अधिकारी (SDO- Sub Dividional Officer) के अधीन होता है। यह राज्य प्रशासनिक सेवा का अधिकारी होता है। उपखंड अधिकारी अपने क्षेत्र के प्रशासन से संबंधित लगभग सभी महत्त्वपूर्ण कार्यों का सम्पादन जिलाधीश के निर्देशन में करते हैं।
उपखण्ड अधिकारी अपने उपखण्ड का भू-राजस्व अधिकारी होता है। इस रूप में उसके प्रमुख दायित्व निम्न है:
उपखण्ड स्तर के नीचे के राजस्व प्रशासन हेतु राज्य में प्रत्येक उपखण्ड को तहसीलों में बाँटा गया है। तहसीलों का प्रमुख अधिकारी तहसीलदार होता है। तहसीलदार की नियुक्ति राजस्व मंडल द्वारा की जाती है। ये राजस्थान तहसीलदार सेवा के सदस्य होते हैं। अधीनस्थ सेवा के अधिकारी होते हुए भी तहसीलदार एक राजपत्रित अधिकारी होता है। राजस्थान तहसीलदार सेवा पर नियंत्रण 1956 में राजस्व मंडल को सौंपा गया था।
राजस्व प्रशासन की मुख्य एवं निम्नतम इकाई ग्राम या गाँव होता है। गाँव का प्रशासक पटवारी होता है। प्रत्येक तहसील विभिन्न पटवार क्षेत्रों में विभाजित होती है। प्रत्येक पटवार क्षेत्र का प्रमुख अधिकारी पटवारी होता है। पटवारी का पद मुगल काल में प्रचलन में आया था। पटवारी का पद राजस्व प्रशासन में सबसे महत्वपूर्ण और निम्नतम पद होता है। ग्राम में पटवारी को सरकार के रूप में जाना जाता है। वह शासन को देय राजस्व की राशि को प्राप्त कर उसे कोषागार में जमा कराता है। वह गाँव में जन्म-मृत्यु का लेखा-जोखा एक रजिस्टर में रखता है। वह गाँव की समस्त सरकारी संपत्ति का संरक्षक होता है। पटवारी का चयन राजस्व मंडल के द्वारा किया जाता है।
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