सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 15(1) के द्वारा राज्यों में राज्य सूचना आयोग के गठन का प्रावधान किया गया है।
इसकी व्यवस्था राज्यों द्वारा सरकारी गजट (शासकीय राजपत्र) के माध्यम से की है। राज्य सूचना आयोग एक वैधानिक, पूर्ण स्वायत्तशासी एवं उच्च प्राधिकार युक्त स्वतंत्र निकाय है जो राज्य में दर्ज शिकायतों की जाँच करता है और निवारण करता है। यह राज्य सरकार के अधीन कार्यरत सभी सार्वजनिक (सरकारी) कार्यालयों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, वित्तीय संस्थाओं के बारे में प्राप्त शिकायतों एवं अपीलों की सुनवाई कर उचित कार्यवाही करता है।
सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 2(f) के अनुसार सूचना का अर्थ है- ऐसे अभिलेख, दस्तावेज, परिपत्र-आदेश, रिपोर्ट, नमूने, आँकड़े, ज्ञापन, ई-मेल, मत, सलाह या यांत्रिक रूप में उपलब्ध सामग्री जिसकी जानकारी जन प्राधिकारी द्वारा विधिवत् रूप से दी जाती है।
राज्य सूचना आयोग में- एक मुख्य आयुक्त और आवश्यकतानुसार (अधिकतम दस) सूचना आयुक्त होंगे। अधिनियम के अनुसार राज्य सूचना आयोग के सदस्य सार्वजनिक जीवन से संबंध रखने वाले ऐसे व्यक्ति होंगे जिन्हें विधि, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, समाज सेवा, प्रबंध, पत्रकारिता, जनसंचार या प्रशासन में व्यापक ज्ञान और अनुभव प्राप्त हो। ऐसे सदस्य संसद या विधानमण्डल के सदस्य न हो और न ही लाभ के पद पर कार्यरत हों।
राज्य मुख्य सूचना एवं राज्य के अन्य सूचना आयुक्तों के कार्यकाल का निर्धारण केन्द्र सरकार द्वारा, सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक 2019 के नियमों के अन्तर्गत किया जायेगा।
इनका कार्यकाल केन्द्र सरकार द्वारा निर्धारित अवधि (5 वर्ष से घटाकर 3 वर्ष की) 3 वर्ष या 65 वर्ष की आयु जो भी पहले हो के लिए किया जाएगा। इन्हें पुनर्नियुक्ति की पात्रता नहीं होती। सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक 2019 के प्रावधानों के अनुसार राज्य मुख्य सूचना आयुक्त तथा राज्य सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते तथा सेवा शर्तें केन्द्र सरकार द्वारा निर्धारित की जाएँगी।
राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त एवं अन्य राज्य सूचना आयुक्तों के वेतन एवं भत्तों का निर्धारण केन्द्र सरकार द्वारा किया जायेगा।
कार्यकाल के दौरान उनके वेतन एवं भत्तों तथा अन्य सेवा शर्तों में कोई अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता।
राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त को ₹ 2.50 लाख एवं अन्य सूचना आयुक्तों को ₹ 2.25 लाख मासिक वेतन देय होगा।
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 में यह प्रावधान किया गया है कि यदि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त पद पर नियुक्त होने के समय यदि किसी अन्य सरकारी नौकरी की पेंशन या अन्य सेवानिवृत्ति लाभ प्राप्त करता है तो उस लाभ के बराबर राशि को उसके वेतन से घटा दिया जाता है, लेकिन इस नए संशोधन विधेयक (2019) के द्वारा इस प्रावधान को समाप्त कर दिया गया है।
नियुक्ति : राज्यपाल द्वारा एक समिति की सिफारिश पर जिसमें मुख्यमंत्री (अध्यक्ष), विधानसभा में विपक्ष का नेता (सदस्य) एवं मुख्यमंत्री द्वारा मनोनीत एक कैबिनेट मंत्री शामिल होता है।
शपथ : राज्यपाल द्वारा या उसके द्वारा प्राधिकृत व्यक्ति के समक्ष।
त्यागपत्र : राज्यपाल के नाम संबोधित करके।
हटाना :
राज्यपाल द्वारा यदि दिवालिया हो गए हो।
यदि उन्हें किसी नैतिक चरित्रहीनता के अपराध के संबंध में दोषी करार दिया गया हो
यदि कार्यकाल के दौरान अन्य लाभ का पद प्राप्त कर ले तो।
शारीरिक व मानसिक अक्षमता के आधार पर।
सिद्ध कदाचार या अक्षमता के आधार पर भी हटाया जा सकता है। ऐसे मामलों में राज्यपाल मामले की जाँच उच्चतम न्यायालय के पास भेजता है। यदि उच्चतम न्यायालय जाँच के उपरान्त मामले को सही पाता है तो न्यायालय राज्यपाल को सलाह देता है इसके उपरान्त राज्यपाल अध्यक्ष या सदस्य को हटा सकता है।
राजस्थान सूचना आयोग एक ‘वैद्यानिक निकाय’ है जो पूर्णतया स्वायत्तशासी है। सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 15 के अंतर्गत ‘राजस्थान सूचना आयोग का गठन’ किया गया हैं।
राजस्थान में प्रशासन में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से सबसे पहले 30 दिसम्बर,1996 को पंचायती राज में ‘सूचना का अधिकार’ कानून शुरू किया गया। तत्पश्चात् 26 जनवरी, 2000 को पहली बार सूचना का अधिकार कानून लागू किया गया। राजस्थान में इस अधिकार को प्राप्त करने के लिए 6 अप्रैल, 1995 को 'मजदूर किसान शक्ति संघ' की प्रणेता अरूणा राय द्वारा आंदोलन किया गया। इस आंदोलन की शुरूआत ब्यावर से की गई।
सूचना के अधिकार 2005 के अन्तर्गत प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार है कि वह बिना कोई कारण बताये किसी भी सार्वजनिक प्राधिकरण से, सूचना प्राप्त करें। इस हेतु राजस्थान सरकार ने अधिनियम की धारा 27 के अन्तर्गत दिनांक 12 अक्टूबर, 2005 को परिपत्र जारी कर नियम बनाये जो दिनांक 13 अक्टूबर, 2005 को राजपत्र में प्रकाशित होकर प्रभावी हुए।
वर्ष 2005 में बने सूचना का अधिकार अधिनियम के सम्पूर्ण देश में लागू हो जाने पर, राजस्थान ने अपने तत्संबंधी नियम दिनांक 13 अक्टूबर, 2005 को प्रकाशित कर इसे प्रभावी बनाया।
केन्द्रीय कानून के अन्तर्गत 13 अप्रैल, 2006 से राजस्थान में ‘राज्य सूचना आयोग’ का गठन किया गया और राज्य के पहले सूचना आयुक्त की नियुक्ति की गईं। श्री एम.डी कोरानी को 18 अप्रेल, 2006 को राज्यपाल द्वारा राज्य का प्रथम सूचना आयुक्त बनाया गया।
सुधार विभाग के आदेश क्रमांक F.N: 6(1)AR/RT.I/2015 दिनांक 28.01.2020 के अनुसार राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त और अन्य राज्य सूचना आयुक्तों का कार्यकाल पद ग्रहण करने की तिथि से (enters upon his office) 3 वर्ष या 65 वर्ष की आयु जो भी पहले हो होगा।
वेतन भत्ते : सूचना का अधिकार संशोधन अधिनियम, 2019 के द्वारा यह व्यवस्था की गई है कि राज्य मुख्य सूचना आयुक्त व अन्य सूचना आयुक्तों के वेतन एवं भत्ते केन्द्र सरकार द्वारा निर्धारित किए जाएंगे। इससे पूर्व राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त का वेतन निर्वाचन आयुक्त व मुख्य सचिव के समकक्ष निर्धारित किया गया है। वर्तमान में इनके वेतन राज्य के मुख्य न्यायाधीश के समकक्ष होंगे। जबकि अन्य सूचना आयुक्तों के वेतन न्यायाधीशों के तुल्य होंगे।
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 18, 19, 20 एवं 25 में सूचना आयोग के कृत्य एवं शक्तियों का वर्णन है।
राज्य सूचना आयोग में निहित शक्तियों का वर्णन निम्न शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है :
(1) परिवाद संबंधी शक्तियाँ :
आयोग के समक्ष नागरिक निम्नलिखित बिन्दुओं पर परिवाद प्रस्तुत कर सकते हैं-
(क) राज्य लोक सूचना अधिकारी की नियुक्ति नहीं होने के कारण वह आवेदन प्रस्तुत नहीं कर सका है या सहायक राज्य लोक सूचना अधिकारी ने उसके सूचना के आवेदन को लेने से इंकार कर दिया है।
(ख) राज्य लोक सूचना अधिकारी ने उसे आवेदित सूचना देने से इंकार कर दिया है।
(ग) राज्य लोक सूचना अधिकारी से आवेदित सूचना के बारे में निर्धारित समयावधि में कोई उत्तर प्राप्त नहीं हुआ है।
(घ) राज्य लोक सूचना अधिकारी द्वारा उससे मांगा जा रहा शुल्क तर्क संगत नहीं है।
(ड) राज्य लोक सूचना अधिकारी द्वारा दी गई सूचना अधूरी, भ्रामक या मिथ्या लगती है।
(च) सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अधीन अभिलेखों के लिये अनुरोध करने या उन तक पहुंच प्राप्त करने से सम्बन्धित किसी अन्य विषय के सम्बन्ध में।
राजस्थान राज्य सूचना आयोग में परिवाद की जांच करते समय दीवानी न्यायालय की शक्तियाँ निहित होने के कारण वह सुनवाई प्रक्रिया के दौरान निम्नलिखित कार्यवाही करने में सक्षम है :-
(क) किन्हीं व्यक्तियों को समन करना और उन्हें उपस्थित करना तथा शपथ पर मौखिक या लिखित साक्ष्य देने के लिए और दस्तावेज या अन्य चीजें पेश करने के लिए उनको विवश करना;
(ख) दस्तावेजों के प्रकटीकरण और निरीक्षण की अपेक्षा करना;
(ग) शपथ पत्र पर साक्ष्य को अभिग्रहण करना;
(घ) किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रतियाँ मंगाना;
(ड़) साक्षियों या दस्तावेजों की परीक्षा के लिये समन जारी करना; और
(च) कोई अन्य विषय, जो विहित किया जाए।
राजस्थान राज्य सूचना आयोग किसी परिवाद की जाँच में लोक प्राधिकरण के नियन्त्रण वाले समस्त अभिलेखों का परीक्षण कर सकता है। किसी भी आधार पर कोई अभिलेख छिपाया नहीं जा सकता, चाहे वह प्रकटीकरण से दी गई छूट की श्रेणी में ही क्यों न सम्मिलित हो।
(2) अपीलीय शक्तियाँ :
अधिनियम की धारा 19(1) के अंतर्गत प्रथम अपील प्राधिकारी के द्वारा दिये गये निर्णय के विरुद्ध द्वितीय अपील सुनने का अधिकार धारा 19(3) के अंतर्गत राजस्थान राज्य सूचना आयोग को प्राप्त है।
राजस्थान राज्य सूचना आयोग के समक्ष प्रथम अपील के विनिश्चय के विरुद्ध द्वितीय अपील उस तारीख से, जिसको विनिश्चय किया जाना चाहिए था या वास्तव में विनिश्चय प्राप्त किया गया था या निर्धारित समयावधि में विनिश्चय नहीं होने अथवा विनिश्चय से असंतुष्टि की स्थिति में, 90 दिवस के भीतर की जा सकती है। इस अवधि के गुजरने के बाद भी यदि सूचना आयोग अपीलार्थी के द्वारा बताये गये विलम्ब के कारण से संतुष्ट है तो अपील सुनवाई हेतु दर्ज की जा सकती है।
धारा 19(7) के तहत् सूचना आयोग का आदेश बाध्यकारी होगा।
(3) शास्ति अधिरोपण की शक्तियाँ :
परिवादों की जाँच के बाद निष्पादन तथा अपील में दिये निर्णय के अन्तर्गत सूचना आयोग को शास्तियाँ अधिरोपित करने की शक्तियाँ प्राप्त हैं। अपील का निर्णय करते समय यदि संबंधित सूचना आयुक्त की यह धारणा बनती है कि लोक सूचना अधिकारी ने बिना समुचित कारण-
(क) सूचना का आवेदन लेने से मना कर दिया है, या
(ख) निर्धारित समयावधि में सूचना उपलब्ध नहीं कराई है, या
(ग) सूचना के आवेदन को असद्भावनापूर्वक अस्वीकार कर दिया है, या
(घ) जान-बूझकर अशुद्ध, अधूरी या भ्रामक सूचना उपलब्ध कराई है, या
(ड़) सूचना के आवेदन की विषय-वस्तु को नष्ट कर दिया है, या
(च) सूचना उपलब्ध कराने में किसी प्रकार की बाधा डाली है,
तो वह उस पर आवेदन प्राप्ति से सूचना उपलब्ध कराने तक रुपये 250/- प्रतिदिन की दर से शास्ति अधिरोपित कर सकता है जो अधिकतम रुपये 25000/- हो सकती है।
शास्ति अधिरोपित करने से पूर्व आयोग राज्य लोक सूचना अधिकारी को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर प्रदान करेगा।
राजस्थान राज्य सूचना आयोग के न्यायिक कार्यों के प्रबन्धन के लिए राजस्थान सूचना आयोग (प्रबन्ध) विनियम 2007 बनाये गये हैं।
केन्द्र सरकार ने सूचना का अधिकार संशोधन अधिनियम, 2019 को जुलाई, 2019 में विपक्ष के भारी विरोध के बीच पास कर दिया। सरकार का कहना है कि सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 में कुछ विसंगतियाँ हैं जिन्हें दूर किया जाना जरुरी है अतः केन्द्र सरकार ने एक संशोधन पारित करके निम्नलिखित व्यवस्थाएँ की हैं-
सूचना आयोग की शक्तियाँ एवं कर्त्तव्य
केन्द्रीय सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त व अन्य सूचना आयुक्तों की नियुक्ति, वेतन एवं भत्ते व सेवा शर्तों का निर्धारण केन्द्र सरकार द्वारा किया जायेगा।
राज्य के राज्य सूचना आयुक्तों व अन्य सूचना आयुक्तों के वेतन एवं भत्ते व सेवा की अन्य शर्तें केन्द्र सरकार निर्धारित करेगी।
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