खगोलविदों ने पहली बार एक ब्लैक होल की तस्वीर जारी की है। 'ब्लैक होल' की पहली तस्वीर जारी होना बेहद बड़ी घटना है, क्योंकि अब तब इसके आकार-प्रकार के बारे में सिर्फ परिकल्पना ही की गई है। पृथ्वी से 5 करोड़ प्रकाशवर्ष दूर एम87 गैलेक्सी में मिले इस ब्लैकहोल के अंदर के हिस्से को गहरे काले रंग के साथ आसपास नारंगी रंग में देखा जा सकता है।
वैज्ञानिकों ने इसके लिए दुनियाभर में मौजूद आठ रेडियो टेलिस्कोप की मदद ली और ब्लैक होल की एक तस्वीर तैयार की। यह टेलिस्कोप एरिजोना, हवाई, स्पेन, मेक्सिको, चिली और दक्षिणी ध्रुव में लगाए गए थे। बुधवार को पांच देशों के छह शहरों- वॉशिंगटन, ब्रसेल्स, सैंटियागो, शंघाई, ताइपे और टोक्यो में खगोलविदों ने ब्लैक होल की तस्वीरें एक साथ रिलीज कीं। तस्वीर टेलीस्कोप के एक ग्लोबल नेटवर्क की मदद से खींची गई है। यह ब्लैक होल धरती से 5.4 करोड़ प्रकाश वर्ष (करीब 9.5 लाख करोड़ किलोमीटर) दूर एम-87 गैलेक्सी में स्थित है। यह उपलब्धि 2012 में शुरू हुए इवेंट होराइजन टेलीस्कोप (ईएचटी) शोध का नतीजा है, जिसका उद्देश्य विभिन्न ब्लैक होल की नजदीक से जानकारी जुटाना है। वैज्ञानिकों को इस अध्ययन से जो जानकारी मिली है, उससे 1915 में अल्बर्ट आइंस्टीन द्वारा दी गई थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी और पुष्ट हुई है। इस उपलब्धि पर वैज्ञानिक शेपर्ड डोलमैन ने कहा,‘हमने वह हासिल कर लिया है, जिसे कुछ पीढ़ी पहले तक असंभव माना जाता था।’ लोगों ने इस मौके पर महान वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग को भी याद किया, जिन्होंने ब्लैक होल पर व्यापक अध्ययन किया था। ब्लैक होल ऐसी रहस्यमयी संरचना है, जिससे कोई भी चीज समा जाती है। प्रकाश भी वापस नहीं आता। ब्लैक होल की एक सीमा(इवेंट होराइजन ) होती है, जिसमें पहुंचते ही कोई भी पिंड उसके केंद्र में समा जाता है। ब्लैक होल में हर पल अनगिनत पिंड समा रहे होते हैं। इस प्रक्रिया में उसके चारों ओर प्रकाश और तरंगों का एक चक्र बन जाता है, जिससे छल्ले जैसी आकृति बनती है। वैज्ञानिकों ने ऐसी ही छल्ले की तस्वीर खींची है। उन तरंगों के बीच दिख रहा काला हिस्सा ही ब्लैक होल है। वैज्ञानिकों ने एम-87 गैलेक्सी में स्थित ब्लैक होल की जो तस्वीर जारी की है वह धरती से 5.4 करोड़ प्रकाशवर्ष दूर है। इसका द्रव्यमान सूर्य से 6.5 अरब गुना है। वैज्ञानिकों ने ब्लैक होल सैजिटेरियस-ए का डाटा भी जुटाया है। धरती से 26 हजार प्रकाशवर्ष दूर इस ब्लैक होल का द्रव्यमान सूर्य से करीब 40 लाख गुना है।
नोबेल पुरस्कार से सम्मानित चंद्रशेखर की गिनती बीसवीं शताब्दी के महान खगोल भौतिक विज्ञानियों में की जाती है। उनके सबसे महत्वपूर्ण काम को श्वेत वामन तारे की 'चंद्रशेखर सीमा' के नाम से जाना जाता है। ये सीमा तब लागू होती है जब किसी तारे का परमाणु ईंधन चुक जाता है। तारे के अंतिम लाखों वर्ष बड़े ही अशांत होते है जब बहुत से तारे अपना अधिकांश द्रव्यमान सौर वायु के रूप में बाहर फेंक देते हैं। जिसके बाद बस एक छोटा क्रोड बाकी रह जाता है। अगर इस क्रोड का द्रव्यमान 'चंद्रशेखर सीमा' से कम हो तो वह श्वेत वामन तारा बन जाता है और अगर अधिक हो तो वह सिकुड़ कर ब्लैक होल बन जाता है। किसी भी तारे के क्रमिक विकास से लेकर उसके अंत होने तक की समीक्षा करने के लिए 'चंद्रशेखर सीमा' बुनियादी है।
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