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ऐतिहासिक फैसलों के लिए याद किए जाएंगे सीजेआइ रंजन गोगोई

सीजेआइ रंजन गोगोई

बतौर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई का सुप्रीम कोर्ट में आज आखिरी दिन था। वह 17 नवंबर को रिटायर हो जाएंगे। उन्होंने अक्टूबर 2018 में भारत के 46वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली थी। चीफ जस्टिस के रूप में रंजन गोगोई का कार्यकाल करीब साढ़े 13 महीने का रहा। इस दौरान उन्होंने कुल 47 फैसले सुनाए, जिनमें से राम जन्मभूमि, तीन तलाक जैसे ऐतिहासिक फैसले भी शामिल हैं।

1954 में असम में जन्मे जस्टिस रंजन गोगोई पूवरेत्तर के पहले व्यक्ति बने जिन्हें भारत का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया। उनके पिता केशब चंद्र गोगोई असम के मुख्यमंत्री रहे। गोगोई 1978 में गुवाहाटी बार एसोसिएशन में शामिल हुए। उन्होंने मुख्य रूप से गुवाहाटी हाई कोर्ट में अभ्यास किया। 28 फरवरी, 2001 में गुवाहाटी हाई कोर्ट के स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुए। 9 सितंबर 2010 को उन्हें पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया। 12 फरवरी, 2011 को उन्हें पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया। 23 अप्रैल, 2012 को गोगोई सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत हुए।

13 महीने के अपने कार्यकाल में सीजेआइ रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली पीठ ने कई ऐतिहासिक फैसले सुनाए।

  1. 500 साल से चले आ रहे विवाद का पटाक्षेप करते हुए ऐतिहासिक सर्वसम्मत फैसले में राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण का रास्ता साफ किया। अपनी जन्मभूमि पर मालिकाना हक का मुकदमा लड़ रहे रामलला विराजमान को जन्मभूमि मिल गई। साथ ही गैरकानूनी ढंग से तोड़ी गई मस्जिद के बदले मुसलमानों को वैकल्पिक स्थान पर मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड़ जमीन आवंटित करने का भी आदेश दिया।
  2. देश की सर्वोच्च अदालत का ‘सुप्रीम’ दफ्तर (सीजेआइ कार्यालय) आरटीआइ के दायरे में आएगा।
  3. राफेल लड़ाकू विमान सौदे पर केंद्र सरकार को दोबारा क्लीन चिट दी।
  4. सबरीमाला मंदिर विवाद पर फैसला सात जजों की पीठ को सौंपा।

पारदर्शी न्यायाधीश

रंजन गोगोई सुप्रीम कोर्ट में बैठे 25 न्यायाधीशों में से उन ग्यारह न्यायाधीशों में शामिल रहे जिन्होंने अदालत की वेबसाइट पर अपनी संपत्ति का सार्वजनिक विवरण दिया।

विवादों से भी नाता

सुप्रीम कोर्ट की एक पूर्व महिला कर्मचारी ने सीजेआइ रंजन गोगोई पर अक्टूबर 2018 में यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। उन्होंने आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया था। बाद में इस मामले की जांच कर रही तीन सदस्यीय कमेटी ने उन्हें क्लीन चिट दे दी थी।

सख्त न्यायाधीश

जस्टिस रंजन गोगोई एक सख्त जज के तौर पर जाने जाएंगे। वर्ष 2016 में जस्टिस गोगोई ने सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज माकर्ंडेय काटजू को अवमानना का नोटिस भेज दिया था। अवमानना नोटिस के बाद जस्टिस काटजू सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए और उन्होंने फेसबुक पोस्ट के लिए माफी मांगी। यही नहीं वह उस का पीठ का हिस्सा रहे, जिसने लोकपाल अधिनियम को कमजोर करने के सरकार के प्रयासों को विफल कर दिया था। वह उस पीठ का भी हिस्सा रहे जिसने कोर्ट की अवमानना के लिए कोलकाता हाई कोर्ट के न्यायाधीश सी एस कन्नन को भी पहली बार जेल में डाल दिया।

एनआरसी का किया बचाव

उन्होंने उस बेंच का नेतृत्व किया, जिसने यह सुनिश्चित किया कि असम में एनआरसी की प्रक्रिया निर्धारित समय सीमा में पूरी हो जाए। पब्लिक फोरम में आकर उन्होंने एनआरसी की प्रक्रिया का बचाव किया और उसे सही बताया।

न्यायिक पवित्रता के प्रति समर्पित

रंजन गोगोई एक ऐसे मुख्य न्यायाधीश के रूप में भी याद किए जाएंगे, जो सुप्रीम कोर्ट की पवित्रता की रक्षा करने के लिए अपनों के खिलाफ भी आवाज उठाने में पीछे नहीं रहे। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आंतरिक कामकाज का विरोध करने के लिए तीन अन्य वरिष्ठतम सुप्रीम कोर्ट के जजों के साथ प्रेस कांफ्रेंस की।

जस्टिस शरद अरविंद बोबडे 47वें सीजेआई के तौर पर 18 नवंबर को पद संभाल सकते हैं। वे नागपुर, महाराष्ट्र से हैं।

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