बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में चमकी नाम का कहर मासूम बच्चों को अपना शिकार बना रहा है. अब तक 'एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम' नाम के इस बुखार से 100 से ज्यादा बच्चे अपनी जान गवां चुके हैं. 'चमकी बुखार' दरअसल एक तरह का मस्तिष्क ज्वर होता है।
इम्युनिटी कमजोर होने की वजह से करीब 1 से 8 साल के बीच की उम्र के बच्चे इस बीमारी की चपेट में ज्यादा आते हैं। ये तो हुई इस जानलेवा बीमारी की बात पर क्या आप जानते हैं 'एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम' नाम के इस गंभीर रोग को आखिर चमकी बुखार क्यों कहा जाता है?
दरअसल, इस रोग में बच्चे का शरीर बुखार की वजह से तपने लगता है। जिसकी वजह से उसके शरीर में कंंपन और झटके लगते रहते हैं। शरीर में बार-बार लगने वाले इन झटकों की वजह से इसे 'चमकी' बुलाया जाता है।
चमकी बुखार का प्रमुख कारण कुपोषित बच्चों के द्वारा लीची का सेवन करना है। ऐसे बच्चे लीची का ज्यादा सेवन करते हैं, इसमें अधपकी लीची का सेवन भी शामिल है। ये बच्चे घर आने के बाद अक्सर बिना खाना खाए ही सो जाते हैं। दरअसल लीची में प्राकृतिक रूप से हाइपोग्लाइसिन ए एवं मिथाइल साइक्लोप्रोपाइल ग्लाइसिन टॉक्सिन पाया जाता है। अधपकी लीची में ये टॉक्सिन अपेक्षाकृत काफी अधिक मात्रा में मौजूद रहते हैं। ये टॉक्सिन शरीर में बीटा ऑक्सीडेशन को रोक देते हैं और हाइपोग्लाइसीमिया (रक्त में ग्लूकोज का कम हो जाना) हो जाता है एवं रक्त में फैटी एसिड्स की मात्रा भी बढ़ जाती है। चूंकि बच्चों के लिवर में ग्लूकोज स्टोरेज कम होता है, जिसकी वजह से पर्याप्त मात्रा में ग्लूकोज रक्त के द्वारा मस्तिष्क में नहीं पहुंच पाता और मस्तिष्क गंभीर रूप से प्रभावित हो जाता है। इस तरह की बीमारी का पता सबसे पहले वेस्टइंडीज में लीची की तरह ही 'एकी' फल का सेवन करने से पता चला था।
जैसे ही चमकी बुखार के लक्षण दिखाई पड़ें वैसे ही बच्चे को मीठी चीजें खाने को देनी चाहिए। अगर संभव हो तो ग्लूकोज पाउडर या चीनी को पानी में घोलकर दें। जिससे कि रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ सके और मस्तिष्क को प्रभावित होने से बचाया जा सके। इसके बाद तुरंत अस्पताल ले जाएं।
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