हाल ही में केन्द्रीय कैबिनेट ने लेह में राष्ट्रीय सोवा रिग्पा संस्थान की स्थापना को मंज़ूरी दी है। यह संस्थान केन्द्रीय आयुष मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्त संस्थान होगा। यह देश में सोवा-रिग्पा का सर्वोच्च संस्थान होगा। इस संस्थान के द्वारा सोवा-रिग्पा के अनुसन्धान व शिक्षा को बढ़ावा मिलेगा। इससे भारतीय उप-महाद्वीप में सोवा-रिग्पा औषधि पद्धति पुनर्जीवित हो सकेगी।
सोवा रिग्पा एक तिब्बत्ती औषधि प्रणाली है। यह विश्व की सबसे प्राचीन औषधि प्रणालियों में से एक है। इस प्रणाली की शुरुआत तिब्बत में हुई थी। इसका उपयोग भारत, तिब्बत, नेपाल, भूटान, चीन मंगोलिया और रूस में किया जाता है। भारत में इस पारंपरिक औषधि पद्धति का उपयोग अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, दार्जीलिंग, धर्मशाला, लाहौल-स्पीती तथा लद्दाख में किया जाता है। युथोग योंतेन गोंपो को सोवा रिग्पा का पिता कहा जाता है।
इस पद्धति से भारत में सैकड़ों सालों से इलाज हो रहा है। इस कारण भारत इसे अपना बनाने के लिए जब यूनेस्को पहुंचा, तो चीन भी यूनेस्को पहुंच गया। दोनों देशों ने इलाज की इस पद्धति पर अपना-अपना दावा ठोक दिया है। यूनेस्को में दिए गए आवेदन में भारत सरकार ने कहा कि सोवा रिग्पा भारत की चिकित्सा पद्धति है। इसे इंटेजिबल कल्चरल हेरिटेज ऑफ ह्यूमैनिटी की सूची में शामिल किया जाए। हालांकि, चीन का दावा है कि यह उसकी पुरानी पद्धति है। लिहाजा, इस पर चीन का हक है।
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