अंतरिक्ष खोज में वेधशालाओं का महत्वपुर्ण स्थान रहा है। जयपुर में जंतर-मंतर नामक एक वेधशाला है,जिसका निर्माण जयपुर को बसाने वाले राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने करवाया थाA सवाई जयसिंह एक खगोल वैज्ञानिक भी थेA जिनके योगदान और व्यक्तित्व की प्रशंसा जवाहर लाल नेहरू ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' ('भारत : एक खोज') में सम्मानपूर्वक की है।
सवाई जयसिंह ने इस वेधशाला के निर्माण से पहले विश्व के कई देशों में अपने सांस्कृतिक दूत भेज कर वहां से खगोल-विज्ञान के प्राचीन और महत्वपूर्ण ग्रंथों की पांडुलिपियाँ मंगवाईं थीं और उन्हें अपने पोथीखाने (पुस्तकालय) में संरक्षित कर अपने अध्ययन के लिए उनका अनुवाद भी करवाया था।
महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने हिन्दू खगोल शास्त्र में आधार पर देश भर में पांच वेधशालाओं का निर्माण कराया था। राजा सवाई जयसिंह ने इस तरह की वेधशालाओं की स्थापना जयपुर के अतिरिक्त दिल्ली,बनारस,उज्जैन तथा मथुरा में करवायी थी| सबसे पहले महारजा सवाई जय सिंह (द्वितीय) ने उज्जैन में सम्राट यन्त्र का निर्माण करवाया।उन्होंने 1724 में पहली वेधशाला दिल्ली में बनवाई। 10 वर्ष बाद 1734 में दुसरी वेधशाला जयपुर में बनी। उनके द्वारा बनाई गई पांचों वेधशालाअेां में जयपुर की वेधशाला सबसे बड़ी है। जयसिंह ने तीन नये यंत्रों का भी आविष्कार किया, जिनके नाम सम्राट यंत्र, जयप्रकार यंत्र तथा रामयंत्र रखे गए। इनमें सम्राट यंत्र सबसे बड़ा और ऊंचा है। इसकी चोटी आकाशीय ध्रुव को सूचित करती है। आज लगभग 300 सालों बाद भी यह यंत्र शुद्धतम समय बताने में सक्षम है। इन वेधशालाओं के निर्माण में उन्होंने उस समय के नामी-गिरामी खगोशास्त्रियों की मदद ली थी। यह बाकी के जंतर मंत्रों से आकार में तो विशाल है ही, शिल्प और यंत्रों की दृष्टि से भी इसका कई मुकाबला नहीं है! सवाई जयसिंह निर्मित पांच वेधशालाओं में आज केवल दिल्ली और जयपुर के जंतर मंतर ही शेष बचे हैं, बाकी काल के गाल में समा गए हैं।
यूनेस्को ने 1 अगस्त 2010 को जंतर-मंतर समेत दुनिया भर के सात स्मारकों को " विश्व धरोहर सूची " में शामिल करने की जो घोषणा की थी, उनमें जयपुर का जंतर मंतर भी एक है।
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