विजय स्तम्भ(1440-48) राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में स्थित एक स्तम्भ है। इसका निर्माण 1437 में मेवाड़ नरेश राणा कुम्भा ने महमूद खिलजी के नेतृत्व वाली मालवा और गुजरात की सेनाओं पर सारंगपुर युद्ध विजय के स्मारक के रूप में बनवाया था।इसका वास्तुकार राव जैता था।
122 फीट ऊंचा, 9 मंजिला विजय स्तंभ भारतीय स्थापत्य कला की बारीक एवं सुन्दर कारीगरी का नायाब नमूना है, जो नीचे से चौड़ा, बीच में संकरा एवं ऊपर से पुनः चौड़ा डमरू के आकार का है। इसमें ऊपर तक जाने के लिए 157 सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। स्तम्भ का निर्माण महाराणा कुम्भा ने अपने समय के महान वास्तुशिल्पी मंडन के मार्गदर्शन में उनके बनाये नक़्शे के आधार पर करवाया था। इस स्तम्भ के आन्तरिक तथा बाह्य भागों पर भारतीय देवी-देवताओं, अर्द्धनारीश्वर, उमा-महेश्वर, लक्ष्मीनारायण, ब्रह्मा, सावित्री, हरिहर, पितामह विष्णु के विभिन्न अवतारों तथा रामायण एवं महाभारत के पात्रों की सेंकड़ों मूर्तियां उत्कीर्ण हैं।इसके साथ ही देवी मात्रिकाओं,प्रतिमाओं,ऋतुओं,नदियों और जन-जीवन की झांकियों का सुन्दर अंकन किया है।
1852 में इस पर बिजली गिरने से क्षतिग्रस्त होगया तब महाराणा स्वरूप सिंह ने पुनः निर्माण करवाया।
यह भगवान विष्णु को समर्पित है, यह डाॅ. उपेन्द्र नाथ ने कहा था
डाॅ. गर्टज ने इसे भारतीय मुर्ती कला का विश्व कोष कहा।
कर्नल टाॅड ने इसे कुतुबमीनार से बहतरीन बताया।
वेब साइट में नये बदलाव व नयी जानकारी की सुचना पाने के लिए अपना ईमेल और मोबाईल नं. यहां दर्ज करें
© 2024 RajasthanGyan All Rights Reserved.