पुराने किले, मौत, हादसों, अतीत और रूहों का अपना एक अलग ही सबंध और संयोग होता है।
भानगढ़ का किला, राजस्थान के अलवर जिले में स्तिथ है। भानगढ़ तीन तरफ़ पहाड़ियों से सुरक्षित है। भानगढ़ किला सत्रहवीं शताब्दी में बनवाया गया था। इस किले का निर्माण मान सिंह के छोटे भाई राजा माधो सिंह ने करावाया था। राजा माधो सिंह उस समय अकबर के सेना में जनरल के पद पर तैनात थे। उस समय भानगढ़ की जनसंख्या तकरीबन 100000 थी। भानगढ़ अलवर जिले में स्थित एक शानदार किला है जो कि बहुत ही विशाल आकार में तैयार किया गया है।
चारो तरफ से पहाड़ों से घिरे इस किले में बेहतरीन शिल्पकलाओ का प्रयोग किया गया है। इसके अलावा इस किले में भगवान शिव, हनुमान आदी के बेहतरीन और अति प्राचिन मंदिर विध्यमान है। इस किले में कुल पांच द्वार हैं और साथ साथ एक मुख्य दीवार है।
भानगढ़ का किला चहारदीवारी से घिरा है जिसके अंदर घुसते ही दाहिनी ओर कुछ हवेलियों के अवशेष दिखाई देते हैं। सामने बाजार है जिसमें सड़क के दोनों तरफ कतार में बनाई गई दोमंजिली दुकानों के खंडहर हैं। किले के आखिरी छोर पर दोहरे अहाते से घिरा तीन मंजिला महल है जिसकी उपरी मंजिल लगभग पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है।
भानगढ से सम्बन्धीत कथा उक्त भानगढ बालूनाथ योगी की तपस्या स्थल था जिसने इस शर्त पर भानगढ के किले को बनाने की सहमति दी कि किले की परछाई कभी भी मेरी तपस्या स्थल को नही छूनी चाहिये परन्तु राजा माधो सिहं के वंशजो ने इस बात पर ध्यान नही देते हुए किले का निर्माण उपर की ओर जारी रखा इसके बाद एक दिन किले की परछाई तपस्या स्थल पर पड गयी जिस पर योगी बालूनाथ ने भानगढ को श्राप देकर ध्वस्त कर दिया, श्री बालूनाथ जी की समाधि अभी भी वहां पर मौजूद है
भानगढ की राजकुमारी रत्नावती अपूर्व सुन्दरी थी जिसके स्वयंवर की तैयारी चल रही थी परन्तु उसी राज्य मे एक तान्तरिक सिंघिया नाम का था जो राजकुमारी को पाना चाहता था परन्तु यह संभव नही था इसलिए उसने राजकुमारी की दासी जो राजकुमारी के श्रंगार के लिये तेल ले जाने बाजार आयी थी उस तेल को जादू से सम्मोहित करने वाला बना दिया, राजकुमारी रत्नावती के हाथ से वह तेल एक चटटान पर गिरा तो वह चटटान तान्तरिक सिंघिया की तरफ लुढकती हुयी आने लगी व उसके उपर गिर कर उसे मार दिया जिस पर सिंघिया ने मरते समय उस नगरी व राजकुमारी को नाश होने का श्राप दे दिया और संयोग से उसके एक महीने बाद ही पड़ौसी राज्य अजबगढ़ से लड़ाई में राजकुमारी सहित सारे भानगढ़ वासी मारे जाते है और भानगढ़ वीरान हो जाता है। तब से वीरान हुआ भानगढ आज तक वीरान है और कहते है कि उस लड़ाई में मारे गए लोगो के भूत आज भी रात को भानगढ़ के किले में भटकते है।क्योकि तांत्रिक के श्राप के कारण उन सब कि मुक्ति नहीं हो पाई थी।
किलें में सूर्यास्त के बाद प्रवेश निषेध फिलहाल इस किले की देख रेख भारत सरकार द्वारा की जाती है। किले के चारों तरफ आर्कियोंलाजिकल सर्वे आफ इंडिया (एएसआई) की टीम मौजूद रहती हैं। एएसआई ने सख्त हिदायत दे रखा है कि सूर्यास्त के बाद इस इलाके किसी भी व्यक्ति के रूकने के लिए मनाही है। इस किले सी कुछ किलोमीटर कि दुरी पर विशव प्रसिद्ध सरिस्का राष्ट्रीय उधान है।
© 2024 RajasthanGyan All Rights Reserved.