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मीराबाई चानू का रियो से लेकर टोक्यो ओलंपिक तक का पूरा सफर

मीराबाई चानू

मणिपुर की बेटी मीराबाई चानू ने वेटलिफ्टिंग में रजत पदक (49 किलोग्राम भार वर्ग) जीतकर टोक्यो ओलंपिक में पहला पदक भारत के नाम किया। इसके साथ ही मीराबाई ने ओलंपिक में भारतीय आकांक्षाओं का शुरुआती परिचय दे दिया है। स्वर्ण पदक चीन की झिहुई हाउ ने और इंडोनेशिया की कांतिका आयसाह ने कांस्य पदक जीता। मीराबाई चानू वेटलिफ्टिंग में ओलंपिक पदक जीतने वाली दूसरी भारतीय खिलाड़ी बन गई हैं। 21 साल पहले मणिपुर की ही कर्णम मल्लेश्वरी ने वेटलिफ्टिंग में कांस्य पदक जीतकर सिडनी ओलंपिक में तिरंगा लहराया था। इससे पहले मीराबाई ने 2018 के राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदकऔर एशियन चैम्पीयनशिप में कांस्य पदक जीता था।

पिछले पांच सालों में सिर्फ 5-6 दिन ही रहीं घर पर

पिछले 5 साल विशेषकर रियो ओलंपिक के बाद मीराबाई सिर्फ 5-6 दिन के लिए ही घर जा पायीं हैं। वह कहती हैं कि मम्मी से मिलने का बहुत दिल हो रहा है। पूरे परिवार से कब से नहीं मिली हूँ। मन कर रहा है की सीधे यहां से मणिपुर ही चली जाऊं। बहुत याद आरही है उन लोगों की, सब लोगों को देखने का बहुत मन कर रहा है।

मणिपुर से क्यों निकलते हैं वेटलिफ्टिंग के खिलाड़ी

पत्रकार के पूछने पर कि आप लोग ऐसा क्या खाते हैं, जो मणिपुर से देश को एक से एक बेहतरीन खिलाड़ी मिलते रहे हैं। इसपर हंसते हुए मीराबाई चानू कहती हैं कि हम लोग बहुत स्पाइसी(मसालेदार) खाते हैं। वो आगे कहती हैं, मणिपुर की जो लड़कियां हैं वो छोटे से ही बहुत मजबूत रहती हैं। घर या बाहर के ज्यादातर काम लड़कियां ही करती हैं, वो बहुत मेहनत करती हैं। मेरी मम्मी भी घर पर बहुत ताकतवर हैं। उनसे मुझे बहुत प्रेरणा मिलती है। हम जो सोच लेते हैं उसे पूरा करके ही दम लेते हैं।

रियो से लेकर टोक्यो तक का सफर

एक वेटलिफ्टर को ओलंपिक में 6 बार मौका मिलता है। रियो ओलंपिक में मीराबाई चानू 6 में से 5 मौके गंवा देती हैं, सिर्फ 1 में ही सफल हो पाती हैं। वही मीराबाई चानू, टोक्यो ओलंपिक में 6 में से 5 बार सफल होती हैं और सिर्फ एक, अंतिम बार चूक जाती हैं। इस सफलता पर मीराबाई बोलती हैं कि रियो ओलंपिक की अपनी असफलता पर मैं बहुत दुखी हो गई थी। सोचती थी कि इतनी मेहनत की थी उसका कुछ नतीजा नहीं निकला। वो मेरा पहला ओलंपिक था इसलिए मैं ज्यादा नर्वस थी। उस समय भी मेहनत मैंने इस बार जैसी ही की थी। वो दिन मेरा दिन नहीं है। मेरे कोचों ने मुझे समझाया की अभी बहुत कुछ है, जिसमें मैं खुद को साबित कर सकती हूं। उसके कुछ दिन बाद विश्व चैम्पीयनशिप के लिए मैंने अपनी ट्रैनिंग की तकनीक बदली, डाइट बदली और ज्यादा मेहनत की। उसके बाद मेरे प्रदर्शन में सुधार दिखने लगा।

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