"तमसो मा ज्योतिर्गमय" अर्थात अंधेरे से प्रकाश की ओर जाइए यह हमारे उपनिषदों की आज्ञा है। और यही हमारा त्यौहार दीपावली भी हमें शिक्षा देता है। दीपावली यानि दीपों की अवली यानि दीपों की पंक्ति। दीपावली को मनाने के बारे में अलग- अलग धर्मो में अलग-अलग मान्यताएं हैं। जिन्हें हम धार्मिक कारण मानते हैं। लेकिन अधिकतर धार्मिक मान्यताएं वैज्ञानिक कारणों से भी जुड़ी होती हैं
हिन्दु धर्म में माना जाता है कि दीपावली के दिन यानि कार्तिक मास कि अमावस्या को अयोध्या के राजा भगवान श्री राम चन्द्र जी अपने चैदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। इसी खुशी में अयोध्या वासियों ने घी के दीपक जला कर उनका स्वागत किया। तब से इस परम्परा को भारतवासी आज तक निभाते आ रहे हैं। यह हिन्दुओं द्वारा मनाया जाने वाला भारत का सबसे प्राचिन और बड़ा त्यौहार है।
जैन धर्म का मानने वालों के अनुसार चैबीसवें तीर्थकर महावीर स्वामी जी को इस दिन मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसलिए जैन धर्म के लोग इसे महावीर स्वामी के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं। इसी दिन उनके प्रथम शिष्य गौतम गणधर को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ था।
सिक्ख धर्म को मानने वालों के अनुसार इसी दिन अमृतसर में 1577 में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था। और इसके अलावा 1619 में दीवाली के दिन सिक्खों के छठे गुरू हरगोबिन्द सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था। इसलिए सिख समुदाय इसे बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाते हंै।
दीपावली को मनाने के पीछे एक वैज्ञानिक कारण भी है। दीपाावली वर्षा ऋतु के बाद आती है। इसलिए यह समय किटों, फफूंदीयों आदि के पोषण का समय होता है। अर्थात इस समय किड़े-मकोड़े अधिक हो जाते क्योंकि इनको सही वातावरण मिलता है। और इतने अधिक किट भयानक बिमारियां पैदा कर सकते हैं। दीपावली के उपलक्ष पर घरों की सफाई की जाती है। जिससे किटों का खतरा कम हो जाता है और घी और तेल के दिपक जलाने से वातावरण शुद्ध होता है। जिससे किड़े मर जाते हैं। आज कल पटाखों से कार्बन डाई आक्साइड और अन्य गैंस इतनी ज्यादा मात्रा में निकलती है कि इससे किड़े- मकोड़े मर जाते है। और त्यौहार के साथ - साथ सभी भयानक बीमारीयों के खतरे से भी बच जाते हैं|
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